जगदीशपुर बनाम इस्लाम नगर : पूर्व इतिहास

अशोक सोनी ‘निडर’


कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश सरकार ने भोपाल के पास स्थित इस्लाम नगर का नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया, जो इसका मूल नाम था। अफगानों के यहां स्थापित होने से पहले कई छोटे-छोटे राजा यहां शासन किया करते थे, जो मूलत: राजपूत थे और कुछ गौड़ भी थे। इनमें से सर्वप्रमुख थे जगदीशपुर के देवड़ा (चौहान)। दोस्त मोहम्मद खान एक अफगान था जो मुगल फौज में था, मालवा में लगातार मराठों के आक्रमण और मुगलों की कमजोर सत्ता के कारण वह यहां खुद को स्थापित करने लगा, जिसके कारण स्थानीय राजाओं से उसका संघर्ष होने लगा, जगदीशपुर में उस समय नरसिंह देवड़ा का शासन था, दोस्त मोहम्मद खान नरसिंह देवड़ा से पराजित हो गया और जान बचाकर भाग गया और पास के ही एक गांव बरखेड़ा के पटेल के यहां शरण ली।
राजा नरसिंह को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने पटेल को दण्ड देने का निश्चय किया। लेकिन इसी बीच दोस्त मोहम्मद खान ने राजा से समझौता करने का प्रस्ताव दिया, जिसे राजा ने मान लिया। बाणगंगा नदी के तट पर संधि का शामियाना लगाया गया, निर्धारित किया गया कि दोनों तरफ से 16-16 लोग बिना हथियार के आएंगे। लेकिन खान ने यहां राजपूतों को धोखा दिया और खाने में नशीला पदार्थ मिलवा दिया, जिससे राजा और उनके सहयोगी बेहोश हो गए, परिणामस्वरूप राजा और दूसरे राजपूतों की हत्या कर दी। जिस नदी के तट पर यह हत्याकाण्ड हुआ था उसे तब से हलाली नदी नाम से जाना जाने लगा। अब दोस्त मोहम्मद जगदीशपुर की तरफ बढ़ा, इधर युवराज को यह बात पता चली तो वह भी अपनी सेनाओं के साथ आगे बढ़ा, राजपूतों और अफगानों के मध्य घाटी में बड़ा जोरदार युद्ध हुआ, अफगान जब कमजोर पडऩे लगे तो दोस्त मोहम्मद ने युवराज से माफी मांगने की बात की और उनके नजदीक आया और धोखे से उनकी हत्या कर दी। तब से यह घाटी लालघाटी के नाम से जानी जाने लगी।
दोस्त मोहम्मद ने जगदीशपुर को अपनी राजधानी बनाई और नाम बदलकर इस्लामनगर कर दिया। यहां आस-पास अफगानों ने दोस्त मोहम्मद के नेतृत्व में खुद को बड़ा मजबूत कर लिया। सवाई जयसिंह जब मालवा के सूबेदार बने तो उन्होंने इन अफगानों का दमन करना चाहा, इसीलिए वह तब मालवा की राजधानी उज्जैन से विदिशा की तरफ बढ़े, लेकिन उन्हें सूचना मिली कि मराठों ने नर्मदा नदी पार कर ली है, इसीलिए वह तब कंपेल की तरफ चले गए। भोपाल तब तक आबाद नहीं हो पाया था, लोगों को यह भ्रम होता है कि भोपाल को राजा भोज ने बसाया था। राजा भोज ने भोपाल नहीं भोजपुर नगर की स्थापना की थी, उन्होंने बेतवा और उसकी सहायक नदियों पर बांध बना एक बहुत बड़े कृत्रिम जलाशय का निर्माण करवाया था, जिसे भोजताल कहा जाता था, उसी के किनारे भोजपुर नगर और शिव मन्दिर की भी स्थापना की थी। उस बांध और तालाब का जिक्र 15वीं शताब्दी तक हुआ है। बाद में मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने इस बांध को तोड़वा दिया था, कहते हैं बांध को तोडऩे में एक महीना लगा था और सरोवर को सूखने में 30 साल। होशंगशाह ने बांध क्यों तुड़वाया यह ठीक ठाक तो पता नहीं चलता, लेकिन संभवत: यहां का धार्मिक महत्व के कारण ऐसा किया हो। एक कहानी का पता चलता है जिसके अनुसार राजा भोज एक बार अत्यंत बीमार पड़े थे, उन्हें ज्योतिषियों ने सलाह दी कि वह 365 जल स्त्रोतों के जल से एक सरोवर का निर्माण कर उसमें स्नान करें तो वह ठीक हो जाएंगे। खैर यह केवल एक कहानी है, लेकिन उस समय शायद यह प्रचलन में जिसके कारण इसका धार्मिक महत्व था। बाद में 18वीं शताब्दी में सूखे हुए तालाब की ही भूमि में आज के भोपाल की बसाहट शुरू हुई। जिसे बाद के नवाबों ने अपनी राजधानी बनाई। लेकिन नरसिंह देवड़ा और उन राजपूतों को के नाम से शायद ही किसी रेलवे स्टेशन का नाम हो या कोई अन्य स्मारक हो क्योंकि ऐसा करके कोई राजनीतिक फायदा जो नहीं होने वाला है।