जन-जन की है यह अभिलाषा, प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा

(21 फरवरी विश्व मातृभाषा दिवस पर विशेष)

– राजेन्द्र ठाकुर

21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। मातृभाषा से आशय वह बोली या भाषा जो बच्चे को जन्म से ही मां के मुख से सुनाई पड़ती है जिस घर परिवार में जो बोली या भाषा बोली जाती है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा बिन व्यर्थ है, दुनिया का सब ज्ञान। भारत मां की बोली हिन्दी, इसका करो सम्मान।। बच्चों के भाव प्रकाशन का मातृभाषा एक सर्वश्रेष्ठ साधन है, वहीं मातृभाषा में शिक्षा की वकालत करते हुए गांधीजी कहते हैं कि शिक्षा मातृभाषा में ही दी जानी चाहिए, क्योंकि अंग्रेजी भाषा के माध्यम से शिक्षा देने से बालक में परिचित भाषा की दुरुहता के कारण विचारों की स्पष्टता नहीं होतीहै। भारत देश हमारा, हिन्दी हिन्दुस्थान इसे हम कहते हैं। राष्ट्रभाषा है अपनी हिंदी मातृभाषा इसे हम कहते हैं।
मातृभाषा को बच्चा जन्म से ही वातावरण से सीख लेता है उस भाषा में अपने विचारों को स्पष्टता से व्यक्त कर सकता है। इस दृष्टि से कुछ प्रदेश की सरकारें अपनी मातृभाषा को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही हैं। मातृभाषा के प्रचार-प्रसार से सदाचार को किसी विचित्र तथा विलक्षण मानसिक प्रभाव के कारण अत्यंत लाभ होता है। मातृभाषा के द्वारा हम जो सीखते हैं वह संसार की अन्य किसी भाषा के द्वारा नहीं सीख सकते। शिक्षाविद जानते हैं कि छह वर्ष की उम्र तक बच्चों के 80-85 प्रतिशत मस्तिष्क का हो जाता है। दो से आठ वर्ष की उम्र के बीच कई भाषाएं आसानी से सीख लेने की क्षमता बच्चों में सबसे प्रबल होती है।

मन की भाषा प्रेम की भाषा, हिन्दी अपनी मातृभाषा।
प्यार की है वो अभिलाषा, हिन्दी है हमारी मातृभाषा।।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा है कि निज भाषा (मातृभाषा) उन्नति ही सब उन्नति को मूल। पं. गिरधर शर्मा कहते हैं- विचारों का परिपक्व होना भी तभी संभव होता है जब शिक्षा का माध्यम मातृभाषा हो। वे कहते हैं कि देश तथा जाति का उपकार उसके बालक तभी कर सकते हैं, जब उन्हें उनकी मातृभाषा के द्वारा शिक्षा मिली हो। एक फ्रेंच स्कूली छात्रा कहता है कि यदि आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो स्कूल की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा कर दें। गोविन्द शास्त्री दुगवेकर कहते हैं- बिना मातृभाषा की उन्नति के देश का गौरव कभी बढ़ नहीं सकता।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा को अनिवार्य किया गया है। अब कक्षा नर्सरी से कक्षा पंचमी तक की शिक्षा संपूर्ण भारत में केवल मातृभाषा में ही दी जाएगी। भारत सरकार का मातृभाषा के प्रचार-प्रसार का यह एक सकारात्मक प्रयास है।