बलात्संग एवं अपराध का षडय़ंत्र करने वाले मां-बेटे को आजीवन कारावास

सागर, 03 दिसम्बर। तृतीय अपर-सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश (पाक्सो एक्ट 2012) जिला-सागर सुश्री नीलम शुक्ला की अदालत ने नाबालिग को बहला फुसलाकर बलात्संग एवं अपराध का षडय़ंत्र करने वाले आरोपी मां-बेटे को दोषी करार देते हुए धारा 366, 120बी, 376(2)(एन) भादंवि, सहपठित धारा 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत आजीवन सश्रम कारावास की सजा से दण्डित किया है। प्रकरण में पीडि़ता को क्षतिपूर्ति के रूप में चार लाख रूपये प्रतिकर दिलाये जाने का आदेश प्रदान किया गया। प्रकरण की पैरवी सहायक जिला अभियोजन अधिकारी श्रीमती रिपा जैन ने की।
मीडिया प्रभारी जिला लोक अभियोजन सागर के अनुसार घटना का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है कि शिकायतकर्ता/ बालिका के पिता ने पुलिस थाना बीना में रिपोर्ट दर्ज कराई कि अभियुक्त ‘प्र’ बालिका से जान-पहचान बढ़ाकर बालिका को बहला फुसलाकर भगा ले गया है। उक्त शिकायत के आधार पर बालिका की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज की गई, विवेचना के दौरान बालिका को दस्तयाव कर उसके कथन लिए गए, बालिका द्वारा उसे बहला-फुसलाकर शादी का झांसा देकर भगा कर ले जाने तथा अभियुक्त द्वारा अपनी मां के घर ले जाकर 20 दिन तक उसे रखने तथा उसकी मां ‘अभियुक्त अ’ की सहमति से उसके साथ बार-बार दुष्कर्म करने एवं मारपीट करने के कथनों के आधार पर अभियुक्तगण के विरुद्ध 344, 376, 120बी, 34 भादंवि एवं धारा 5/6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 का इजाफा किया गया एवं विवेचना के दौरान पीडि़त के आयु संबंधी दस्तावेज एकत्रित किए गए पीडि़ता का मेडीकल परीक्षण कराया गया, आरोपी का भी मेडीकल परीक्षण कराया गया। अन्य साक्ष्य एकत्र करने के उपरांत धारा 363, 366, 376, 344, 120बी, 34 भादंवि एवं धारा 5/6 लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 एवं धारा 3(2)(5)(क) एससी/ एसटी एक्ट के अंतर्गत अभियोग पत्र न्यायालय में पेश किया गया। विचारण के दौरान पीडि़ता ने विरोधाभसी कथन किए। अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया एवं अंतिम तर्क के दौरान न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किए और अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। जहां विचारण उपरांत तृतीय अपर-सत्र न्यायाधीश/ विशेष न्यायाधीश (पाक्सों एक्ट 2012) जिला सागर नीलम मिश्रा के न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुए अभियुक्त ‘प्र’ एवं ‘अ’ को आजीवन सश्रम कारावास की सजा से दण्डित किया हैं। प्रकरण की परिस्थितियों के कारण अभियुक्तगण के नाम का उल्लेख न्यायालय द्वारा निर्णय में न किया जाकर अभियुक्त ‘प्रÓ एवं अभियुक्त ‘अÓ के द्वारा संबोधित किया गया है।