– राकेश अचल
अयोध्या के राम एक बार फिर निशाने पर हैं। पूरे 45 साल पहले राम नाम को चुनावी बाजार में उतारने वाली भाजपा देश के शेष 10 राज्यों पर सत्तारूढ होने के लिए एक बार फिर रामायुध लेकर निकल पडी है। इस बार भाजपा का लक्ष्य दक्षिण के साथ पूरब का बंगाल जीतने का भी है। भाजपा ने अपने वानर-भालू इन दोनों ही दिशाओं में तैनात कर दिए हैं। रामनवमी से ये अभियान शुरू हो गया है।
सत्तारूढ होने के लिए राम को साधन और साध्य बनाने वाली भाजपा का दुस्साहस देखिये कि वो एक ओर बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से मोर्चा ले रही है, तो दक्षिण में तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन से भाषा के मुद्दे पर मोर्चा खोल चुकी है। सबसे पहले बंगाल की बात करते हैं। बंगाल में रामनवमी पर जो कुछ दिखा, वह ममता की धडकनें बढाने वाला है। भाजपा नेता अब खुलेआम ‘70 फीसदी हिन्दू राम की सेना’ की बातें करने लगे हैं। उधर, आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद भी अब सिर्फ बंगाल ही बंगाल का जाप कर रही है। भाजपा चौतरफा जोर लगाकर बंगाल में सत्ता का खेल बदलने की तैयारी में है।
भाजपा हमेशा से ध्रुवीकरण को जीत का अमोघ अस्त्र मानती है। रामनवमी पर भाजपा ने आरएसएस और वीएचपी के साथ मिलकर पूरे बंगाल में दो हजार से ज्यादा शोभा यात्राएं निकालीं। भाजपा का दावा है कि इस बार एक करोड से ज्यादा लोग सडकों पर उतरे, यह हिन्दू ध्रुवीकरण की दिशा में एक बडा कदम माना जा रहा है, आपको ज्ञात ही होगा कि पश्चिम बंगाल की आबादी में हिन्दुओं की हिस्सेदारी करीब 70 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम आबादी लगभग 27 प्रतिशत है। वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 38.15 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 77 सीटें जीती थीं। वहीं टीएमसी ने 48 फीसदी वोटों के साथ 215 सीटों पर कब्जा किया था। वोट शेयर में दोनों पार्टियों के बीच करीब 10 प्रतिशत का अंतर है। भाजपा का मानना है कि अगर वह हिन्दू वोटरों के अतिरिक्त 5-7 प्रतिशत को अपने पक्ष में कर ले तो खेल बदल सकता है, यानि खेला हो सकता है।
इसी एजेंडे के तहत पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने रविवार को रामनवमी के अवसर पर पूर्वी मेदिनीपुर के सोनचूरा में राम मन्दिर की आधारशिला रखी। यह मन्दिर नंदीग्राम में बनाया जाएगा। सुवेंदु अधिकारी नंदीग्राम से ही भाजपा विधायक हैं। 2007 में तृणमूल कांग्रेस ने ममता बनर्जी के नेतृत्व में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ नंदीग्राम में ही बडा आंदोलन किया था। 6 जनवरी 2007 को भूमि अधिग्रहण आंदोलन के दौरान सोनाचुरा गांव में गोली लगने से सात लोगों की जान गई थी।
आइये अब आपको तमिलनाडु ले चलते हैं। रामनवमी को ही तमिलनाडु में प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने रामेश्वरम में नए पंबन ब्रिज का उदघाटन किया और आठ हजार करोड रुपए से अधिक की लागत वाली अन्य विकास योजनाओं का शुभारंभ किया। लेकिन मुख्यमंत्री स्टालिन मोदी जी के इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। आपको बता दें कि भाजपा और स्टालिन में परिसीमन के मुद्दे पर ठनी हुई है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रस्तावित परिसीमन प्रक्रिया को लेकर राज्य के लोगों की आशंकाओं को दूर करना चाहिए। स्टालिन ने कहा कि मोदी को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि संसद में एक प्रस्ताव पारित किया जाए ताकि तमिलनाडु के अधिकारों पर अंकुश नहीं लगे।
प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु के रामेश्वरम में 700 करोड की लागत से बने एशिया के पहले वर्टिकल सी ब्रिज का उदघाटन करने गए थे, उन्होंने और रामेश्वरम-तांबरम (चेन्नई) नई ट्रेन सेवा को हरी झंडी दिखाई। लेकिन मोदी यहां भी राजनीति करने से बाज नहीं आए। उन्होंने त्रिभाषा फार्मूले से जुडे विवाद पर तमिलनाडु की स्टालिन सरकार पर तंज कसा और कहा कि केन्द्र सरकार के पास चेन्नई से रोज कई चिट्ठियां आती हैं, लेकिन हैरत होती है कि उन पर तमिलनाडु के नेता तमिल में हस्ताक्षर भी नहीं करते। पीएम ने स्टालिन सरकार से आग्रह किया कि तमिलनाडु में भी मेडिकल की पढाई स्थानीय तमिल भाषा में कराने का प्रबंध होना चाहिए, ताकि अंग्रेजी नहीं जानने वाले गरीब बच्चों को भी डॉक्टर बनने में सहूलियत हो। मोदी जी ने तमिलनाडु में भी राम-नाम का जाप किया और कहा कि कुछ घंटे पहले ही अयोध्या के भव्य मन्दिर में सूर्य की किरणों ने श्रीराम को तिलक किया है। उपस्थित जनसमूह से उन्होंने जय श्रीराम के नारे भी लगवाए। मोदी जी जय हिन्द नहीं कहते वे जय श्रीराम कि नारे लगवाते हैं, क्योंकि वे नहीं मानते की भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। उनकी नजर में भारत हिन्दू राष्ट्र था और हिन्दू राष्ट्र है।
भाजपा कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि सभी नेता भी आज-कल जमुहाई भी लेते हैं तो राम का नाम लेते हुए लेते हैं। भाजपाइयों ने पढ लिया है कि
राम-राम कह जे जमुहाई
तिन्ह न पाप-पुंज समुहाई।
भाजपा राजसत्ता हासिल कर जन कल्याण करने से पहले देश में राम राज का लेबल लगाकर संघराज लाना चाहती है। उसकी कोशिश की जिसे सराहना करना है वो सराहना करे, जिसे विरोध करना है वो विरोध करे। हमारा काम तो सियासत में राम नाम के दुरूपयोग के प्रति आपको आगाह करना है। राम हमारे भी आराध्य हैं, लेकिन सियासत के लिए नहीं। अपने राम को सियासी दलदल से बाहर निकालिये। क्योंकि राम कभी सत्ता के पीछे नहीं भागे जबकि भाजपा की हर कोशिश सत्ता हासिल करने के लिए है।