– राकेश अचल
इन दिनों रजतपट पर विक्की कौशल और ‘छावा’ दोनों ही धमाल मचा रहे हैं। ऐतिहासिक फिल्म ‘छावा’ बॉक्स ऑफिस पर पूरे जोश में आगे बढ रही है और इसकी रफ्तार धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही है। सिनेमाघरों में नौ दिनों तक चलने के बाद, अब यह फिल्म 300 करोड रुपए की बडी कमाई करने की ओर बढ गई है। खचाखच भरे सिनेमाघरों, जोरदार तालियों और रिकार्ड तोड कमाई के साथ ‘छावा’ ने खुद को साल की सबसे बडी हिट फिल्मों में से एक बना दिया है। लेकिन सवाल ये है कि भारतीय राजनीति का ‘छावा’ कौन है?
भारतीय राजनीति में भी इतिहास बदलने की होड में लगे अनेक किरदार हैं लेकिन असली ‘छावा’ का पता नहीं चल पा रहा है। कभी छावा की भूमिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आते हैं तो कभी अमित शाह। कभी योगी आदित्यनाथ तो कभी राहुल गांधी। कभी एकनाथ शिंदे तो कभी शरद पंवार। सियासत में हर कोई छावा बनकर छा जाना चाहता है। लेकिन देश की फिक्र किसी सियासी छावा को नहीं है। सबको अपनी-अपनी पडी है।
कहते हैं कि ‘छावा’ में औरंगजेब बने अक्षय खन्ना ने 27 साल में 22 फ्लॉप फिल्में दी हैं। उनकी फीस भी 2.5 करोड रुपए है, अक्षय की नेटवर्थ विक्की कौशल से अधिक है। अक्षय खन्ना ‘छावा’ में औरंगजेब का रोल करके हर किसी की नजर में एक बार फिर से आ गए हैं। अक्षय के काम की खूब तारीफ हो रही है। औरंगजेब के किरदार में उनकी कलाकारी को देखकर हर कोई दंग रह गया है और उन्हें बेस्ट एक्टर्स में से एक के तौर पर काउंट किया जा रहा है। लक्ष्मण उटेकर के निर्देशन में बनी ‘छावा’ महान मराठा शासक छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित एक पीरियड ड्रामा है। विक्की मराठा साम्राज्य के संस्थापक के सबसे बडे बेटे छत्रपति संभाजी महाराज के रोल में हैं। रश्मिका मंदाना उनकी पत्नी येसुबाई भोंसले का किरदार निभा रही हैं। अक्षय खन्ना, आशुतोष राणा और दिव्या दत्ता भी लीड रोल में हैं।
आइये अब बात करते हैं भारतीय सियासत के छावा और औरंगजेब की। भारतीय राजनीति में भाजपा ने प्रधामनंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को छावा और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को औरंगजेब बना दिया है। दोनों अपने-अपने किरदार में जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं। दुर्भाग्य से सियासी छावा में कोई येशुबाई भैंसले नहीं है। मोदी रणछोड दास हैं और राहुल ने अभी तक घर नहीं बसाया है। पिछले एक दशक से सियासी छावा और औरंगजेब में ठनी हुई है। मोदी खुद चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते हैं, लेकिन राहुल गांधी बीच-बीच में उनका रथ रोक लेते हैं। लेकिन मैदान किसी ने भी नहीं छोडा है।
भारतीय सियासत की फिल्म छावा में मोदी और गांधी के अलावा दूसरे किरदार भी हैं। आप इन्हें ए-1 और ए-2 कह सकते हैं और अडानी तथा अम्बानी भी कह सकते हैं, इन किरदारों की धूम भारत की सीमाओं के बाहर भी है। एक को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया जाता है तो दूसरे के खिलाफ अमेरिका की अदालत से वारंट जारी किए जाते हैं। भारतीय सियासत के छावा की नींद 21 करोड अमेरिकी डॉलर की कथित अमेरिकी मदद की खबर भी उडा देती है। पहले इस मदद को लेकर कांग्रेस निशाने पर थी अब ये निशाना बदल गया है। निशाने पर मोदी थे किन्तु वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी ने ट्रम्प की तोप का मुंह दूसरी और मोड दिया।
बैशाखियों और तांगों के सहारे दिल्ली और महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाली भाजपा के लिए औरंगजेब केवल राहुल गांधी ही नहीं बल्कि दूसरे भी हैं। बिहार में डिप्टी चीफ मिनिस्टर ने मोदी-शाह की जोडी को साफ ढका दिया है कि उन्हें हल्के में न लिया जाए। मोदी जी को तांगे वाले से बचने के लिए महाराष्ट्र की राजनीती के बूढे छावा शरद पांवर के समाने विनम्रता का स्वांग करना पड रहा है। वे कभी शाह की कुर्सी पीछे खिसकाते दिखाई देते हैं तो कभी उनका गिलास भरते नजर आ रहे हैं। कोशिश ये है कि बिहार विधानसभा चुनाव तक कोई औरंजेब सर न उठा पाए, फिर चाहे वो राहुल गांधी हो या एकनाथ शिंदे।
सत्ता में बने रहने के लिए सभी को साधना आज के सियासत के छावा की मजबूरी है। उसे मसखरा शास्त्री भी साधना पड रहा है और अपनी ताकत बढाने के लिए कांग्रेस के असंतोष पर नजरें रखना पड रही हैं। सीएसी छावा को शास्त्री भी चाहिए और थरूर भी। सिहायसि फिल्म में बिदूषक न हो तो मुश्किल होती है। एक अकेला हीरो और खलनायक तो बन सकता है, किन्तु उसे बिदूषक की जरूरत क्यों पडती है। बिना बिदूषक के कोई सियासी फील या ड्रामा कामयाब नहीं हो सकता।
भाजपा की मैं इस बात के लिए हमेशा तारीफ करता हूं कि भाजपा भ्रम फैलाकर सियासत करती है। इस भ्रमजाल में जो फंस गया उसका लोप हो जाता है। उमा भारती, शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा इस बात के ज्वलंत उदाहरण हैं। फिलहाल भाजपा की सियासी फिल्म छावा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम सबसे ऊपर है, उन्होंने कुम्भ को महाकुम्भ बनाकर फिल्मी कारोबार को भी पीछे छोड दिया है। उन्हें इस समय न राम से काम है और न राम की गंगा के मैलेपन से। उन्हें डुबकियों से मतलब है। वे देश की आधी आबादी को कुम्भ में डुबकियां लगवा चुके हैं। इसमें वे लोग शामिल हैं की नहीं, जो पांच किलो मुफ्त के राशन पर पल रहे हैं। रजतपट की छावा सियासी छावा को गति देने का एक उपक्रम मात्र है। पहले भी भाजपा फिल्मों के माध्यम से ये कोशिश कर चुकी है।