– राकेश अचल
नई सरकार ने पहला अच्छा काम किया है कि दस साल बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का साहस जुटाया। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव तो होंगे लेकिन शायद ये राज्य भी दिल्ली की तरह केन्द्र शासित राज्य बना रहेगा यानि एक और भीगी बिल्ली। जम्मू-कश्मीर के साथ हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव की घोषणा की गई है, लेकिन महाराष्ट्र और झारखण्ड, बिहार के विधानसभा चुनावों की घोषणा को रोक दिया गया है। इनके बारे में घोषणा सरकार की सुविधानुसार की जाएगी।
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव एक दशक पहले हुए थे। पांच साल से इस खण्डित राज्य में केन्द्र का शासन है, यानि एक लाट साहब सूबे की जनता को सम्हाले हुए हैं। इन पांच सालों में केन्द्र की सरकार ने विधानसभा चुनाव क्षेत्रों का मन-माफिक परिसीमन भी कर लिया है। लाट साहब के अधिकार भी अनाप-शनाप बढा दिए हैं, लेकिन न सूबे में शांति आई और न समृद्धि। जम्मू-कश्मीर आज भी हमारे सैनिकों और नागरिकों की बलि ले रहा है और केन्द्र सरकार संत बनी बैठी है। बावजूद सरकार ने यहां विधानसभा चुनाव कराने का साहस जुटाया है इसलिए उसे बधाई दी जाना चाहिए, अन्यथा यहां के लोगों के लिए तो चुनाव एक दिवा-स्वप्न हो चुका था।
दरअसल जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव हमारे देश की बैशाखियों पर टिकी सरकार का भविष्य तय करने वाले होंगे। इन चुनावों के जरिए राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, ये भी तय हो जाएगा। चार महीने बाद चार तारीख को ही एक बार हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी की लोकप्रियता का ‘लिटमस टेस्ट’ होगा। केन्द्रीय चुनाव आयोग ने पता नहीं कैसे चार तारीख को फिर से चुनाव परिणामों के लिए मुकर्रर किया है, जबकि ये तारीख मोदी जी और उनकी भाजपा के लिए मनहूस साबित हुई है। (याद कीजिए चार जून की तारीख) जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में चुनाव होंगे, जबकि हरियाणा की 90 सीटों पर एक चरण में ही चुनाव होंगे। दोनों ही राज्यों के चुनावी नतीजे चार अक्टूबर को जारी किए जाएंगे। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ये पहला मौका है जब बीजेपी और कांग्रेस चुनावी अखाडे में एक बार फिर आमने-सामने होंगे। लोकसभा चुनाव के बाद ये पहला सीधा मुकाबला है।
ऐसा माना जा रहा था कि निर्वाचन आयोग जम्मू कश्मीर और हरियाणा समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और महाराष्ट्र और झारखण्ड में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीखें अभी घोषित नहीं की गईं। हालांकि जम्मू कश्मीर में विधानसभा के चुनाव की घोषणाओं के बाद ही विपक्षी दलों ने राज्य के दर्जे का मुद्दा उठाया है। केन्द्र की सरकार जम्मू-कश्मीर को दोबारा से पूर्ण राज्य बनाने के मुद्दे पर मौन साधकर बैठी हुई है। स्वाभाविक भी है, केन्द्र के पास अभी इतना साहस नहीं है कि वो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे सके। हालांकि यदि सरकार ऐसा करती तो उसे वाहवाही मिल सकती थी, लेकिन जैसा मैंने पहले कहा कि केन्द्र जम्मू-कश्मीर को दिल्ली की तरह भीगी बिल्ली बनाकर रखना चाहता है, ताकि यहां से धारा 370 उठाने के उसके फैसले को न्यायोचित ठहराया जा सके।
केन्द्र ने महाराष्ट्र और बिहार चुनाव टालकर अपनी कमजोरी जाहिर कर दी है। इस फैसले से केंचुआ की हैसियत पर भी सवाल उठेंगे कि जो केंचुआ पूरे देश में चुनाव करने में सक्षम है क्या वो चार राज्यों में एक साथ चुनाव नहीं करा सकता। लेकिन हमारे यहां एक कहावत है कि बकरे की मां आखिर कब तक खैर मनाएगी? एक न एक दिन तो उसे हकीकत का सामना करना ही पडेगा। सवाल ये भी है कि क्या केंचुआ सरकार के इशारों पर कथक कर रहा है? क्या उसके पास इतनी सामथ्र्य नहीं बची कि वो एक साथ चार राज्यों के विधानसभा चुनाव करा सके?
आपको याद होगा कि केंचुआ ने जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा सीटों को लेकर नए सिरे से परिसीमन भी कराया था। लिहाजा राज्य में विधानसभा की सीटें बढकर 90 हो गई हैं। राज्य के पुनर्गठन से पहले यहां विधानसभा की कुल 87 सीटें थीं, लेकिन लद्दाख-कारगिल के अलग होने से यहां विधानसभा की कुल 83 सीटें ही रह गई थीं। परिसीमन में यहां विधानसभा की सात नई सीटें बनी थीं। राज्य की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 74 सीटें सामान्य हैं, जबकि एसटी के लिए नौ और एसटी के लिए सात सीटें आरक्षित हैं। यही नहीं, अब राज्य में विधानसभा का कार्यकाल पांच वर्ष का होगा जो पहले छह वर्ष का होता था। आपको ये भी याद रखना चाहिए कि दुनिया की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने हाल में हुए लोकसभा चुनावों में घाटी में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे, ऐसे में यह देखना भी रोचक होगा कि विधानसभा में भाजपा क्या रणनीति अपनाती है। ये चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस चुनाव में 87 वर्षीय डॉ. फारुख अब्दुल्ला भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, हालांकि उनकी उम्र हज करने की हो चुकी है।
हरियाणा में पिछले दस वर्षों से भाजपा सत्ता में है। ऐसे में उसके सामने राज्य में सत्ता पर फिर से काबिज होना एक बडी चुनौती है। हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा को करारी पराजय का न सिर्फ सामना करना पडा अपितु राज्य में नेतृत्व परिवर्तन भी करना पडा। वहीं बदले समीकरण में राज्य में कांग्रेस व आप जैसे दल भी मजबूती से मैदान में दिखने की जिद्दोजहद में जुटे हैं। इन दो राज्यों के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और फिर बिहार में विधानसभा के चुनाव कराए जाना हैं। यानि अब देश लगातार चुनावी मोड में रहने वाला है। अब देश की जनता को आने वाले कुछ महीनों तक विकास की बात भूल जाना चाहिए। अब हर दिन उसे टीवी चैनलों पर कहीं न कहीं माननीय नेताओं के सजीव भाषण सुनने को मिलेंगे। नई गारंटियां मिलेंगी। नए जुमले मिलेंगे। लेकिन जो होगा सो होगा, उसे टाला नहीं जा सकता। अब नारी शक्ति वंदन और वक्फ बोर्ड की बात भूल जाइये। याद रखिये सिर्फ और सिर्फ चुनाव। हम चुनाव प्रधान देश में रहते जो हैं।