– राकेश अचल
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती और गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के बाद आज आपको देश के एक ऐसे नाकाम कृषि मंत्री का किस्सा बताता हूं जो मोदी सरकार की नाक नीची कराने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर को प्रधानमंत्री ने इसी नाकामी की सजा देते हुए मप्र विधानसभा चुनाव लडने के लिए चंबल वापस भेज दिया है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां नामांकन पत्र भरने के बाद चुनाव प्रचार के लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र में नहीं जाते, वहीं केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के लिए उनका विधानसभा क्षेत्र रात-दिन चिंता का विषय बना रहता है।
ठीक 40 साल पहले ग्वालियर नगर निगम के पार्षद का चुनाव लडकर राजनीति में कदम रखने वाले नरेन्द्र सिंह तोमर को 40 साल बाद एक बार फिर विधानसभा का चुनाव लडने के लिए मैदान में उतारा गया है। वे मुरैना जिले की दिमनी सीट से भाजपा के प्रत्याशी हैं। मजे की बात ये है कि वे भाजपा चुनाव अभियान समिति के प्रमुख भी हैं और पार्टी के स्टार प्रचारक भी। मोदी जी ने अपनी इस तलवार से सुई का काम लेने का प्रयोग किया है, क्योंकि उनकी ये तलवार दो साल पहले देश में हुए किसान आंदोलन के समय मौथरी साबित हुई थी। मोदी सरकार को जितना नीचा कभी संसद के दोनों सदनों में नहीं देखना पडा था, उससे ज्यादा नीचा इस किसान आंदोलन को समाप्त कराने में असफल रहे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की वजह से तीन कृषि विधेयक वापस लेने की वजह से देखना पडा था।
मप्र विधानसभा के चुनावी रण में उतारे गए तीन केन्द्रीय मंत्रियों और सात सांसदों में से नरेन्द्र सिंह तोमर अकेले ऐसे हैं जिनके लिए अपना विधानसभा क्षेत्र छोडना टेढी खीर साबित हो रहा है। मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की तरह विधानसभा क्षेत्र अपने बेटों और कार्यकर्ताओं के भरोसे छोडना न नरेन्द्र सिंह तोमर के लिए आसान है और न प्रहलाद पटेल के लिए। फग्गन सिंह कुलस्ते के लिए तो बिल्कुल नहीं। पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की भी यही दशा है। विजयवर्गीय इंदौर शहर से चुनाव लड रहे हैं। वे भी कहने को पार्टी की तलवार हैं, लेकिन उनका इस्तेमाल सुई की तरह ही किया जा रहा है। विजयवर्गीय को उनके बेटे आकाश विजयवर्गीय की जगह चुनाव लडने के लिए विवश किया गया है।
भाजपा के राज में मप्र ऐसा अजब प्रदेश बन गया है जहां बेटे अपने बाप के लिए जनता से वोटों की भिक्षा मांग रहे हैं। जबकि होना उलटा था। इन सभी को अपने बेटों के लिए जनता से वोट मांगना थे, लेकिन मोदी जी हैं तो सब कुछ मुमकिन है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके हनुमान केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अकेले नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते की पीठ पर बस्ते नहीं लादे, बल्कि 73 साल की श्रीमती मायासिंह और 81 साल के नागेन्द्र सिंह और जयंत मलैया को भी भजन करने की उम्र में चुनावी समर में उतार दिया। ये सभी उम्र दराज नेता अपने बेटों के सहारे हैं।
चंबल के औरेठी गांव में जन्मे केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर का नसीब हमेशा से अच्छा रहा। वे 1983 में पार्षद का चुनाव लडे और जीते। उन्हें नसीब से भाजयुमो के अध्यक्ष पद से लेकर पार्टी की मप्र इकाई के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी भी मिली। वे 1998 में विधायक बने और 2003 में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही मंत्री भी बने। उन्हें 2009 में निर्विरोध राज्यसभा भेजा गया। वे 2009 में ही मुरैना से लोकसभा के लिए चुने गए। 2014 में वे ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव लडकर जीते। 2019 में उन्हें दोबारा मुरैना से लोकसभा चुनाव लडाया और जिताया गया। तोमर को पिछले दस साल में केन्द्र में एक छोड दस विभागों में काम करने का मौकका मिला, लेकिन इतने होनहार और काबिल नेता को मोदी जी ने अचानक विधानसभा चुनाव लडने के लिए दिल्ली सी दिमनी भेज दिया। कारण मैं आपको बता ही चुका हूं कि मोदी जी अपने अपमान का हिसाब पूरा कर रहे हैं।
नरेन्द्र सिंह तोमर को उनके प्रशंसक मुन्ना के नाम से पुकारते हैं। जैसा मैंने पूर्व के लेखों में बताया था कि ग्वालियर चंबल की भाजपाई राजनीति में अन्ना, मुन्ना और गन्ना तीन प्रमुख युवा तुर्क हैं। गन्ना यानि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के भांजे अनूप मिश्रा को पार्टी ने विधानसभा का टिकिट नहीं दिया। गन्ना यानि मप्र के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा दतिया से विधानसभा का चुनाव लड रहे हैं। और मुन्ना को भी दिमनी में फंसा दिया है। भाजपा नेतृत्व को उम्मीद है कि मुन्ना भैया इस बार भी इस अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण होकर बाहर आएंगे, लेकिन मुन्ना भैया के आस-पास के लोगों को मुन्ना भैया के भविष्य को लेकर चिंता हैं। हालांकि मुन्ना भैया के दोनों होनहार बेटे सपरिवार दिमनी में मोर्चा सम्हाले हुए हैं। उन्हें हाथ के साथ हाथी ने भी घेर रखा है।
मुन्ना के समथकों का मानना है कि यदि मुन्ना भैया जीते और मप्र में भाजपा की सरकार बनी तो वे प्रदेश के मुख्यमनत्री होंगे और न जीते तो पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाएंगे। मुमकिन है कि विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें तीसरी बार मुरैना से ही लोकसभा का चुनाव लडने को कह दिया जाए। आखिर मुन्ना संघ परिवार का आशीर्वाद प्राप्त नेता जो हैं। कहने का मतलब मुन्ना अभी खाली बैठने वाले नहीं है।