सत्य, साहस और सेवा की त्रिवेणी के प्रेरक स्मरण थे लक्ष्मी नारायण शर्मा

– स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शर्मा की 32वीं पुण्यतिथि पांच जून पर विशेष

भिण्ड, 04 जुलाई। भारत माता के एक सच्चे सपूत, स्वतंत्रता संग्राम के अप्रतिम योद्धा, समाज सुधारक और लोकतंत्र के प्रहरी लक्ष्मी नारायण शर्मा को उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर 5 जुलाई को पूरे सम्मान और श्रद्धा भाव के साथ स्मरण कर रहे हैं। ग्राम अतरसूमा, जिला भिण्ड की यह विभूति अपने विचारों, कार्यों और सिद्धांतों के कारण आज भी क्षेत्रवासियों के हृदय में जीवित है।
जन्म से लेकर स्वतंत्रता तक एक राष्ट्रभक्त की यात्रा
पं. लक्ष्मी नारायण शर्मा का जन्म वर्ष 1918 में हुआ। उन्होंने वर्ष 1934 में फूप के बीएम विद्यालय से मिडिल परीक्षा में द्वितीय श्रेणी से सफलता प्राप्त की और अंक गणित में विशेष योग्यता से बचपन में ही अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। छोटी उम्र से ही राष्ट्रसेवा का भाव उनके भीतर इतना प्रबल था कि उन्होंने कभी नौकरी या व्यक्तिगत सुख-सुविधा की चिंता नहीं की। उनका जीवन पूरी तरह स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित रहा।
1942 आंदोलन में भूमिगत योद्धा
भारत छोडो आंदोलन के दौरान वे भूमिगत रहकर चंबल घाटी, ग्वालियर रेजिडेंसी और यूनाइटेड प्रोविंस जैसे क्षेत्रों में आजादी की अलख जगाते रहे। हजारों युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में जोडकर उन्होंने आंदोलन को ऊर्जा दी। भारत सरकार ने उनके योगदान को 22 अक्टूबर 1992 को तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह के हाथों सम्मान पत्र देकर नमन किया। उनका नाम स्वतंत्रता सेनानी रजिस्टर भिण्ड में क्र.73 पर दर्ज है।
आपातकाल में 19 माह की जेल-लोकतंत्र का सजग प्रहरी
25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा से कुछ ही घण्टे पहले उन्हें उनके भिण्ड निवास (नवयुग गृह निर्माण सोसाइटी, अब कुशवाह कॉलोनी) से यह कहकर ले जाया गया कि एसपी साहब ने याद किया है। लेकिन कुछ ही समय बाद उन्हें मीसा कानून के तहत ग्वालियर सेंट्रल जेल में निरुद्ध कर दिया गया, जहां वे पूरे 19 माह लोकतंत्र की रक्षा के लिए जेल में बंद रहे।
दूरदृष्टा पिता, त्याग और मूल्यों की मिसाल
इसी दौरान उनके पुत्र डॉ. रामबाबू शर्मा को लीड्स विश्वविद्यालय (इंग्लैंड) में फेलोशिप मिली। पंडितजी ने विषम परिस्थिति में भी उन्हें जाने की अनुमति दी और स्पष्ट कहा कि बहू को साथ लेकर जाओ। जब पत्राचार बंद हो गया तो उन्होंने स्वयं विश्वविद्यालय को पत्र लिखकर संचार की व्यवस्था करवाई। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय पीपी कॉल के बावजूद जेल प्रशासन ने बात नहीं कराई, फिर भी यह प्रसंग उनकी ममता, विवेक और सहनशक्ति की अमिट मिसाल बन गया।
जन-आंदोलनों के अमिट सूत्रधार
आजादी के बाद भी पंडितजी का संघर्ष थमा नहीं। 1960 के दशक में गजईं बघेले के साथ हुए पुलिस अत्याचार के विरुद्ध उनका नेतृत्व प्रदेशव्यापी आंदोलन में बदल गया। वे प्रारंभ में कांग्रेस पार्टी से जुडे थे, जब भिण्ड में कोई अन्य राजनीतिक दल अस्तित्व में नहीं था। बाद में उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) का दामन थामा और डॉ. राममनोहर लोहिया व थानू पिल्लई जैसे नेताओं के निकट सहयोगी बने।
ग्राम सुधार और सर्वोदय की दिशा में कार्य
ग्राम सुधार संगठन, अटेर के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने डॉ. सरदार सिंह भदौरिया, आशाराम शर्मा जैसे साथियों के साथ मिलकर ग्रामीण क्षेत्रों में कई समस्याओं का समाधान किया। वे सर्वोदय संत लल्लू दद्दा और चंबल के डाकुओं- मानसिंह, लाखन सिंह, रूपराम आदि से भी संपर्क में रहकर टकराव को टालने में सफल रहे।
किसानों के सच्चे हितैषी
कृषि उपज मण्डी समिति भिण्ड के उपाध्यक्ष और सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक भिण्ड में जनप्रतिनिधि रहते हुए उन्होंने किसानों की भलाई के लिए अथक प्रयास किए। भ्रष्टाचार या अनुशासनहीनता पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया, चाहे सामने कोई भी हो।
समाज निर्माण में अग्रणी भूमिका
ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने भिण्ड में परशुराम छात्रावास की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई। उनका नेतृत्व समन्वयकारी और दूरदर्शी था, जिसे समाज के हर वर्ग ने सम्मान दिया।
प्रेरणा के स्त्रोत- युगपुरुष के साए
उनके साथी- रघुवीर सिंह कुशवाह, श्रीनाथ गुरूजी, त्रियुगी नारायण शर्मा, हजूरी सिंह कुशवाह, रामेश्वर दयाल दांतरे, लालसिंह कुशवाह वकील, सत्य नारायण बोहरे, विजय सिंह सिकरवार, रक्षपाल सिंह तोमर आदि अब उनके साथ नहीं हैं, पर उनकी स्मृतियां आज भी लोगों की आंखें नम कर देती हैं।
एक आदर्श जीवन की विरासत
पं. लक्ष्मी नारायण शर्मा का जीवन भारत के लिए एक सजीव पाठशाला है- जहां सत्य, साहस, और सेवा जैसे मूल्य न केवल पढे जाते हैं, बल्कि जिए जाते हैं। आज उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर भिण्ड ही नहीं, पूरा क्षेत्र, समाज और राष्ट्र उन्हें नमन करता है। श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं उस युगपुरुष को, जिनकी धडकनें आज भी भारत के हर संघर्षशील हृदय में गूंजती हैं।