– राकेश अचल
आने-जाने को मोहताज हुआ बेटा
जबसे मैं खुद से नाराज हुआ बेटा
लिखने से बेहतर था, चाय बेचता मैं
गलती की मैंने, फैयाज हुआ बेटा
वेश बदलकर ठग सत्ता पर बैठ गए
सब समझे ये अपना राज हुआ बेटा
लोकतंत्र ही बदनसीब है इस युग का
लूटतंत्र का हर अंदाज हुआ बेटा
बेटा मेरी बात अन्यथा मत लेना
इस्तीफा तक अब इक राज हुआ बेटा
कुछ भी समझ नहीं आता है आंखों को
जबसे गूंगा हर खगराज हुआ बेटा
बोलो तो खतरा है दिल्ली वालों को
चुप बैठा तो दिल नासाज हुआ बेटा
कोई क्या कर सकता है, करके देखे
श्वेत कपोत हमारा बाज हुआ बेटा