– राकेश अचल
हे! अजगर तुम खुशनसीब हो
क्योंकि तुमने
किसी की चाकरी नहीं की
हे! पंछी
तुम खुशकिस्मत हो जो तुमने
कोई काम नहीं किया
बदनसीब तो हम हैं
जिन्हें चाकरी मिली लेकिन
काम नहीं मिला
हम सुनते थे
मलूक दास की वाणी
और भरोसा कर बैठे कि
सबके दाता राम होते हैं
हमारी धारणा। हमारा यकीन
गलत था
अब अजगर तो छोडिए
केंचुआ तक चाकरी करता है
सत्ता प्रतिष्ठान की
मतदाता सूची से नाम काट देता है
और कुछ नहीं कर पाता निषाद
ठगी सी रह जाती है जानकी।
अजगर! तुम खुशनसीब थे
खुशनसीब हो।