नाग पंचमी का इतिहास

– दीप्ति शर्मा


बचपन से दादी द्वारा इस तरह दीवार पर नागों के चित्र बनाकर पूजा करते आए हैं, वह परंपरा आज भी जीवित है। मुझे लगता है उत्तर प्रदेश वाले लोग आज भी बनाते होंगे।
नाग पंचमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से सर्पों (नागों) की पूजा के लिए जाना जाता है। इस दिन लोग नाग देवता की पूजा करके उनसे सुरक्षा, समृद्धि और संतोष की कामना करते हैं। भारत के विभिन्न भागों में इस दिन की अलग-अलग मान्यताएं और परंपराएं हैं। कहीं मिट्टी के सांप बनाकर उनकी पूजा की जाती है, तो कहीं चित्रों या मूर्तियों के माध्यम से नागों का पूजन होता है। कुछ स्थानों पर सांपों को दूध पिलाने की भी परंपरा है। इस दिन महिलाएं अपने भाई की लंबी उम्र और परिवार की सुख-शांति के लिए व्रत रखती हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार, सागर मंथन के दौरान नागों ने अपनी माता की बात नहीं मानी थी, जिसके चलते उन्हें श्राप मिला था। नागों को कहा गया था कि वो जनमेजय के यज्ञ में जलकर भस्म हो जाएंगे। घबराए हुए नाग ब्रह्माजी की शरण में पहुंच गए और उनसे मदद मांगने लगे। तब ब्रह्माजी ने कहा कि नागवंश में महात्मा जरत्कारू के पुत्र आस्तिक सभी नागों की रक्षा करेंगे। ब्रह्माजी ने यह उपाय पंचमी तिथि को ही बताया था। वहीं, आस्तिक मुनि ने सावन मास की पंचमी तिथि को नागों को यज्ञ में जलने से बचाया था। इन्होंने नागों के ऊपर दूध डालकर उन्हें बचाया था। उस समय मुनि ने कहा था कि जो भी पंचमी तिथि को नागों की पूजा करेगा उसे नागदंश से कोई डर नहीं रहेगा।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब समुंद्र मंथन हुआ था तब किसी को भी रस्सी नहीं मिल रही थी। इस समये वासुकि नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल किया गया था। जहां देवताओं ने वासुकी नाग की पूंछ पकडी थी वहीं, दानवों ने उनका मुंह पकडा था। मंथन में पहले विष निकला था जिसे शिव भगवान में अपने कंठ में धारण किया था और समस्त लोकों की रक्षा की थी। वहीं, मंथन से जब अमृत निकला तो देवताओं ने इसे पीकर अमरत्व को प्राप्त किया। इसके बाद से ही इस तिथि को नाग पंचमी के पर्व के तौर पर मनाया जाता है।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन के लोगों की जानक नाग को हराकर बचाई थी। श्रीकृष्ण भगवान ने सांप के फन पर नृत्य किया था। जिसके बाद वो नथैया कहलाए थे। तब से ही नागों की पूजा की परंपरा चली आ रही है।
नाग पंचमी का महत्व
हिन्दू धर्म में नागों का विशेष महत्व है। इनकी पूजा पूरी श्रद्धा से की जाती है। बता दें कि नाग शिवशंकर के गले का आभूषण भी हैं और भगवान विष्णु की शैय्या भी। सावन के महीने में हमेशा झमाझमा बारिश होती है और नाग जमीन से बाहर आ जाते हैं। ऐसे में मान्यता के अनुसार, नाग देवता का दूध से अभिषेक किया जाता है और उनका पूजन किया जाता है। इससे वो किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। कहा तो यह भी जाता है कि अगर कुण्डली दोष हो तो उसे दूर करने के लिए भी नाग पंचमी का महत्व अत्यधिक होता है।
यह पर्व प्रकृति और जीव-जंतुओं के प्रति सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है। नाग पंचमी हमें यह संदेश देती है कि हर जीव का अपने तरीके से इस धरती पर महत्व है और हमें सभी जीवों के प्रति करुणा और सह-अस्तित्व की भावना रखनी चाहिए।