महाकुंभ का न्यौता देने वाले आप कौन?

– राकेश अचल


बेसिर-पैर की राजनीति करने में दक्ष हमारे राजनैतिक दल और सरकारें अपना असली काम छोडकर रोजाना नए-नए विवाद खडे करने में सिद्धहस्त हो चुकी हैं। अब देश में ताजा विवाद महाकुंभ का न्यौता है। उत्तर प्रदेश की सरकार इस आयोजन के निमंत्रण पत्र बांट रही है, समाजवादी पार्टी ने इसी पर सवाल खडे किए हैं। प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ को लेकर तैयारियां लगभग अंतिम चरण पर है। महाकुंभ के लिए उप्र की सरकार ने निमंत्रण पत्र बांटना शुरू कर दिया है।
उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित कई गणमान्य लोगों से मिलकर उन्हें महाकुंभ में शामिल होने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं। इसको लेकर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीएम योगी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ के लिए निमंत्रण नहीं दिए जाते हैं, कुंभ में लोग खुद आते हैं, हमने अपने धर्म में यही सीखा है। यूपी के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने पलटवार करते हुए कहा कि अखिलेश यादव आप भी आएं, अपने पापों को धो लें और पुण्य प्राप्त करें।
जहां तक मेरी स्मृति है कि देश में किसी भी धार्मिक आयोजन के लिए कभी निमंत्रण पत्र बांटे नहीं जाते फिर चाहे कुंभ हो, सिंघस्थ हो या चारधाम यात्रा हो। हमारे पुरखे पंचांग के हिसाब से तिथियां देखकर इन आयोजनों में अपने आप आते-जाते रहे हैं। ये धार्मिक आयोजन देश में चुनी हुई सरकारें बनने से हजारों साल पहले से होते आ रहे हैं और होते भी रहेंगे, लेकिन ये किसी की बेटी या बेटे की शादी नहीं है जो घर-घर जाकर निमंत्रण पत्र बांटे जाएं। जिसे आना है वो आए और जिसे नहीं आना वो अपने घर बैठे। इन आयोजनों में सरकारों की भूमिका एक संरक्षक की तो है किन्तु वे इसे अपना आयोजन या उपलब्धि नहीं बना सकतीं।
धार्मिक आयोजनों को हडपने का पुण्यकार्य भाजपा ने शुरू किया है। सबसे पहले राम मन्दिर में प्राण प्रतिस्ठा समारोह में शामिल होने के लिए भेजा और संघ के स्वयं सेवकों ने घर-घर जाकर पीले चावल बांटे और सरकार ने लिखित निमंत्रण पत्र अब उप्र की सरकार महाकुंभ के निमंत्रण पत्र बांट रही है। सरकार के फैसले पर ऊँगली उठाना जिनका काम है वे उठा रहे हैं, लेकिन मेरा सवाल ये है कि निमंत्रण पत्र बांटने की जरूरत क्या है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भी इस धार्मिक आयोजन के लिए निमंत्रण पत्र देना ठीक नहीं। यदि इन महानुभावों के मन में महाकुंभ के प्रति श्रृद्धा है तो ये खुद अपना दौरा तय करें और राज्य सरकार इन महानुभावों के लिए सभी आवश्यक इंतजाम करे।
उप्र की भाजपा सरकार ही नहीं, बल्कि भाजपा की सभी डबल और सिंगल इंजिन की सरकारें धार्मिक आयोजनों को हडप कर उन्हें राजनीतिक और पार्टीगत आयोजन बना देने में लगी हैं। मप्र में सिंघस्थ का आयोजन भी सरकार करती है, लेकिन भाजपा ने इसका भी भाजपाई यानि भगवाकरण कर दिया है। धार्मिक ही नहीं बल्कि दूसरे सांस्कृतिक, सांगीतिक कार्यक्रम भी भगवा बनाए जा चुके हैं। मप्र के ग्वालियर शहर में होने वाले तानसेन संगीत समारोह भी अब भाजपा का अपना कार्यक्रम है। इस समारोह के शताब्दी वर्ष समारोह में भी किसी संगीतज्ञ को उदघाटन के लिए नहीं बुलाया गया, यहां भी मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री और जिला स्तर के भाजपा नेता मंच पर जमे रहे।
समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कहा कि जो करोडों लोग आएंगे, क्या उन्हें निमंत्रण दिया जाता है? यह सरकार अलग है। उन्होंने कहा कि सरकार को कठघरे में खडा करने की हमारी जिम्मेदारी है। जब सपा सरकार में कुंभ हुआ था, उसकी स्टडी हॉवर्ड यूनिवर्सिटी ने की थी। महाकुंभ का अच्छे से आयोजन हो, इसके लिए सपा सहयोग के लिए तैयार है। लेकिन अखिलेश यादव ये नहीं जानते कि भाजपा की सरकारें सबका साथ, सबका विकास का नारा केवल दिखने के लिए लगाती हैं, हकीकत में उन्हें न सबका साथ चाहिए और न वे सबका विकास करना चाहती हैं। उन्हें अपना और अपनी पार्टी का विकास करना है और उन्हीं का साथ चाहिए।
भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकारों ने जितना ध्यान धार्मिक आयोजनों और धार्मिक स्थलों के विकास पर दिया है उतना विज्ञान और शोध कार्यों पर नहीं दिया। हमारी सरकारों और नेताओं को विज्ञान से ज्यादा धार्मिक अनुष्ठान प्रिय हैं। पिछले 10 साल में देश में जितने धार्मिक कॉरिडोर बने और जितनी विशाल प्रतिमाएं बनवाई गई उतना पहले कभी नहीं हुआ। हमारी सरकारें हर धार्मिक आयोजन को पर्यटन में बदल देना चाहती हैं, हमारी सरकारों की होड विज्ञान और शोध में नहीं है, हमारी सरकारें दिये जलने का विश्व रिकार्ड बनाकर अभिभूत होती हैं। अब इस प्रवृत्ति के लिए कोई क्या कर सकता है?
महाकुंभ के लिए उप्र सरकार ने अम्बानी के बेटे अनंत अम्बानी को न्यौता दिया है, जाहिर है कि सरकार महाकुंभ में भी धनकुबेरों को महत्व देकर निवेश के अवसर तलाश रही है, अन्यथा अनंत क्या कोई शंकराचार्य हैं। अभी तक योगी जी का कोई चित्र किसी शंकराचार्य को निमंत्रण देते हुए नहीं आया, क्योंकि योगी जी जानते हैं कि जिसकी अटकी होगी वो तो महाकुंभ में आएगा ही, लेकिन जिसकी अटकी नहीं है उसे न्यौता देकर लाना पडेगा। बेहद हास्यास्पद है, निमंत्रण पत्र बांटते हुए तस्वीरें उतरवाना और फिर उनका प्रचार करवाना। मेरा तो सुझाव है कि भाजपा और संघ को महाकुंभ में अपने भी शिविर लगा लेना चाहिए दूसरे अखाडों की तरह। इस महाकुंभ में पार्टी का सदस्यता अभियान भी शुरू कर देना चाहिए। वैसे भी देश के प्रधानमंत्री जी त्रिपुण्ड लगाकर किसी महामंडलेश्वर से कम आकर्षक तो नहीं लगते। मुझे चूंकि योगी जी ने महाकुंभ का निमंत्रण पत्र खुद आकर नहीं दिया है इसलिए मैंने तो फिलहाल अपना मन बनाया नहीं है। आपकी आप जानें। आपको बिना निमंत्रण पत्र के जाना है तो शौक से जाएं।