रामराज को आइना दिखाने की कोशिश

– राकेश अचल


लोक लाज से बहुत से लोग नहीं डरते, लेकिन बहुत से लोगों को लोकलाज कभी-कभी डराती भी है। देश की सबसे बडी अदालत कानून के इकबाल को बनाए रखने के लिए कभी-कभी ऐसे फैसले भी करती है, जो लोक को भाते हैं और राम राज को आईना दिखाते हैं। बिलकिस बानो मामले के आरोपियों को दोबारा जेल भेजने के बडी अदालत के फैसले से यही साबित होता है। बिलकिस बानो इस देश में रामाश्रित सरकारों के यहां होने वाली मनमानी और अराजकता का सबसे बडा जीता-जागता उदाहरण है।
बिलकिस बानो गुजरात के दाहोद जिले के रंधिकपुर गांव की रहने वाली वो बदनसीब युवती है जो 2002 में गुजरात में कायम राम राज के दौरान हुए दंगे की सबसे बडी शिकार बनी थी। तीन मार्च 2002 को बिलकिस का परिवार छप्परवाड गांव पहुंचा और खेतों मे छिप गया। इस मामले में जो चार्जशीट दायर की गई उसमें कहा गया है कि 12 लोगों समेत 20-30 लोगों ने लाठियों और जंजीरों से बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर हमला कर दिया। बिलकिस और चार महिलाओं को पहले मारा गया और फिर उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। इनमें बिलकिस की मां भी शामिल थीं। इस हमले में रंधिकपुर के 17 मुसलमानों में से सात मारे गए। ये सभी बिलकिस के परिवार के सदस्य थे, इनमें बिलकिस की भी बेटी भी शामिल थी। इस नृशंस घटना के कम से कम तीन घण्टे के बाद तक बिलकिस बानो बेहोश रहीं। होश आने पर उन्होंने एक आदिवासी महिला से कपडा मांगा। इसके बाद वह एक होमगार्ड से मिलीं जो उन्हें शिकायत दर्ज कराने के लिए लिमखेडा थाने ले गया। वहां कांस्टेबल सोमाभाई गोरी ने उनकी शिकायत दर्ज की। बाद में गोरी को अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन साल की सजा मिली।
बिलकिस बानो को न्याय पाने के लिए ताउम्र चट्टान की तरह खडे रहना पडा। उसे डराया, धमकाया गया, प्रलोभन दिए गए, लेकिन बिलकिस पीछे नहीं हटी, नतीजा ये हुआ कि सीबीआई की विशेष अदालत ने जनवरी 2008 में 11 लोगों को दोषी करार दिया। इन लोगों पर गर्भवती महिला के दुष्कर्म, हत्या और गैरकानूनी तौर पर एक जगह इकट्ठा होने का आरोप लगाया गया था। सात लोगों को सबूत के अभाव में छोड दिया गया। जबकि एक अभियुक्त की मुकद्दमे की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। 2008 में फैसला देते हुए सीबीआई ने कहा कि जसवंत नाई, गोविन्द नाई और नरेश कुमार मोढडिया ने बिलकिस का दुष्कर्म किया जबकि शैलेश भट्ट ने सलेहा का सिर जमीन से टकराकर मार डाला। दूसरे अभियुक्तों को रेप और हत्या का दोषी करार दिया गया था।
राम राज में यकीन करने वाली गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत 15 अगस्त को जसवंत नाई, गोविन्द नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, विपिन चन्द्र जोशी, केशरभाई वोहानिया, प्रदीप मोढडिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना को गोधरा उप कारागर से छोड दिया गया। गुजरात सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो मामले के 11 दोषियों को जेल से रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला रद्द कर दिया है। गैंगरेप और सात लोगों की हत्या के सभी दोषी एक बार फिर कानून के शिकंजे में आ गए, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, दोषियों की सजा माफी का फैसला गुजरात सरकार नहीं कर सकती। दोषियों को महाराष्ट्र में सजा मिली थी, इसलिए रिहाई पर फैसला देने का अधिकार भी महाराष्ट्र सरकार का है।
देश में जहां भी डबल इंजन की सरकारें हैं वहां ये माना जाता है कि राम राज आ चुका है। लेकिन दुर्भाग्य ये है कि राम में आस्था रखने वाली सभी डबल इंजन की सरकारें अपराधियों के प्रति बेहद उदार है। गुजरात की ही तरह उत्तर प्रदेश में जहां 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है, वहां हत्या के मामले में उम्र कैद की सजा पाए अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी को भी ठीक इसी तरह रिहा किया गया, जिस तरह की बिलकिस बानो के साथ दुष्कर्म और उसकी बेटी की हत्या के मामले में सजायाफ्ता आरोपियों को रिहा किया गया था।
बिलकिस बानो मामले में आए इस नए मोड के बाद कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल राम राज की स्थापना में लगी भाजपा और भाजपा की डबल इंजन की सरकारों की आलोचना कर रहे हैं। उन्हें ऐसा करने का पूरा अधिकार है, लेकिन इस मामले में देश की जनता को अभी अपने अधिकार का इस्तेमाल करना सीखना चाहिए। मान लीजिए यदि बिलकिस के मामले में सुप्रीम कोर्ट गुजरात सरकार के फैसले को न रद्द करती तो उसके साथ तो अन्याय हो ही चुका था! देश में न जाने ऐसी कितनी बिलकिस बानो होंगीं जिनके खिलाफ जघन्यता करने वाले अपराधी अदालतों से सजा पाने के बाद भी सरकारों की दरियादिली की वजह से जेलों के बाहर आजाद घूम रहे हैं।
देश में 14 जनवरी 2024 से एक न्याय यात्रा शुरू होने जा रही है। क्या इस यात्रा के जरिए भी राम राज में अपराधियों के साथ दिखाई जाने वाली रामभक्त सरकारों के व्यवहार को भी एक मुद्दे के रूप में शामिल किया जाएगा? क्या इन दो नजीरों के बाद इस बात पर पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए कि राज्यों के हाथों से सजायाफ्ता अपराधियों के प्रति उदारता दिखने के अधिकार को वापस ले लिया जाए! लेकिन देश में ऐसा विमर्श शायद ही हो, क्योंकि सरकारों का चरित्र एक जैसा होता है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी गुजरात सरकार को न अपने फैसले पर कोई क्षोभ है, न कोई लज्जा है और न भाजपा के किसी नेता में इतना साहस है कि वो सरकार की गलती के लिए बिलकिस से, अदालत से माफी मांगे। पूरी भाजपा राम-राम करने में लगी है, भले ही उसके राज में कानून का ‘राम नाम सत्य’ हो रहा हो। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले कानून सम्मत होते हैं, उनसे कभी सहमत और असहमत हुआ जाता है, लेकिन बिलकिस बानो के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सिर्फ फैसला ही नहीं किया है बल्कि रामभक्त सरकार की निर्लज्जता पर भी प्रहार किया है। ऐसे फैसलों का स्वागत किया जाना चाहिए। कानून कभी सच का साथ भी देता है और कभी इसका लाभ झूठ भी उठा लेता है। यानि अपवाद सब जगह मौजूद होते हैं।