डॉक्टर होकर आप कैसी बात करते हैं। इस देश में लोग जहर से नहीं दवाईयों से मरते हैं।।

डॉ. अन्नपूर्णा भदौरिया स्मृति सम्मान समारोह एवं पुस्तक विमोचन कार्यक्रम आयोजित

ग्वालियर 16 दिसम्बर। ग्वालियर की प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. अन्नपूर्णा भदौरिया स्मृति में चेंबर ऑफ कॉमर्स सभागार सम्मान समारोह एवं पुस्तक विमोचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राजीव शर्मा आईएएस, एवं अध्यक्षता कुलपति प्रो. विनय पाठक ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में एबीपी न्यूज के संपादक विकास भदौरिया, संस्था मार्गदर्शक जगदीश तोमर, डॉ. अरुण कुमार यदु एवं ग्वालियर पूर्व के विधायक डॉ. सतीश सिकरवार मौजूद रहे।
सर्वप्रथम सरस्वती वंदना के पश्चात अतिथियों द्वारा डॉ. अन्नपूर्णा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पुस्तक का विमोचन किया गया। डॉ. अन्नपूर्णा कल्चर एवं सोशल वेलफेयर फाउण्डेशन के तहत रंजना सिंह को सम्मान पत्र शॉल एवं 11 हजार रुपए राशि प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की संयोजिका अंशु सिंह ने अतिथि स्वागत उदबोधन के साथ संस्था का परिचय दिया। अतिथियों का स्वागत डॉ. सुखदेव सिंह सेंगर, ज्योति परिहार, रमेश कटारिया पारस, लोकेश तिवारी, सीता चौहान, मंजूलता आर्य, धैर्य, देवेन्द्र तोमर, आकाश शर्मा, मनीराम शर्मा, उदयभान रजक, सोनू सेंगर, सरस्वती सिंह, सुरेश सरल, गिरिराज सिंह, बॉबी शर्मा, डॉ. सरिता सिंह, लखन यादव, धर्मेंद्र शर्मा, निशि भदौरिया आदि उपस्थित साहित्यकारों, कवियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. ज्योत्सना सिंह राजावत ने किया। कार्यक्रम में शहर के वरिष्ठ कविगण सुरेश सम्राट, साजन ग्वालियरी, चेतराम, कुंदा जोगलेकर, सुबोध चतुर्वेदी, राजरानी शर्मा, भगवान स्वरूप चैतन्य उपस्थित रहे। इसी क्रम में काव्यांजलि का शुभारंभ रविन्द्र रवि द्वारा किया गया।
सर्वप्रथम कोरबा छत्तीसगढ से पधारे हीरामणि वैष्णव ने सुंदर पंक्तियों के साथ अपना काव्य पाठ आरंभ किया, उनकी बानगी देखिए- ‘मैं हूं यौवन सा उलझा हुआ, इश्क अल्हड सी है तू प्रिये! गर मैं सुनसान इक द्वार हूं, भीड नुक्कड की है तू प्रिये! दास कबीरा सा मैं हूं अगर, नेहा कक्कड सी है तू प्रिये! मैं बनारस का इक घाट हूं, चाय कुल्हड की है तू प्रिये! इसके बात कवि मनोहर मनोज कटानी ने अपनी कविता यूं सुनाई- डॉक्टर होकर आप कैसी बात करते हैं। इस देश में लोग जहर से नहीं दवाईयों से मरते हैं।। डॉ. श्लेष गौतम प्रयागराज की पंक्तियां देखिए- ‘याद तुम्हारी लहरों पर पतवार दिसंबर में, डूब रहे मन को जैसे त्योहार दिसंबर में, सिहरन नहीं छुअन होती थी आंच थी मीठी-मीठी, साथ तुम्हारा उस सर्दी में जैसे नर्म अंगीठी।’
कवियित्री शिवांगी प्रेरणा भोपाल ने अपनी कविता यूं सुनाई- ‘तकलीफों का लिए पिटारा बैठी हूं। टूटे मन का लिए सितारा बैठी हूं। मां कहती है तुम सबके दु:ख हरते हो, राम तुम्हारा लिए सहारा बैठी हूं।’ डॉ. प्रवीण राही मुरादाबाद उप्र ने अपनी प्रस्तुति कुछ यूं दी- ‘अभी गर्दिशों से हारा नहीं हूं, जुगनू हूं टूटा सितारा नहीं हूं, हसीनों से नजर मिलाऊं कैसे, शादी शुदा हूं कुंआरा नहीं हूं।। रविन्द्र रवि की पंक्तियां देखिए- तेरी खातिर कोई आंसू बहाना याद तो रक्खे। तेरा लिक्खा हुआ कोई तराना याद तो रक्खे।। भले थोडे सही लेकिन हमेशा काम ऐसे रख। कि तेरे बाद भी तुझको जमाना याद तो रक्खे।। डॉ. मुक्ता सिकरवार ने अपनी कविता यूं सुनाई- गिरते गिरते संभाल देता है, मेरे कदमों को चाल देता है। कुछ भला दूं तो कैसे दूं उसको, वो सलीके से टाल देता है।।