राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है

– राकेश अचल


राम आखिर राम हैं। हमारे, आपके, सबके राम। अयोध्या के राम, ओरछा के राम। लेकिन राजनीति के राम सबसे अलग हैं। वे राजनीति में डूबती नौकाओं के उद्धारक हैं। उनका नाम लेकर की अक्षम व्यक्ति भी सक्षम बन सकता है। इस धारणा को मैं लगातार मजबूत होते हुए देख रहा हूं। दुनिया की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी इसीलिए किसी भी सूरत में राम का नाम लेना नहीं छोडना चाहती, और ये अच्छी बात है। क्योंकि इधर राम का नाम लेना छोडा और उधर राजनीति में राम नाम सत्य हुआ।
हमारे चिरगांव वाले दद्दा मैथिलीशरण गुप्त थे तो राष्ट्रकवि, लेकिन वे राम के भी अनन्य भक्त थे। वे कहते थे कि ‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई कवि बन जाये सहज सम्भाव्य है’। वे यदि आज ‘साकेत’ लिखते तो शायद लिखते कि ‘राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है, कोई नेता बन जाये सहज सम्भाव्य है’। राम का अनन्य भक्त होना आसान नहीं है। मैं खुद रामजी का अनन्य भक्त हूं और कभी-कभी सोचता हूं कि पिछले साथ साल में मैंने जितनी बार राम चरित मानस का वाचन किया है, उसमें से मैं यदि जरा भी कटौती करता तो अब तक कम से कम 100-200 दूसरे ग्रंथ पढ लेता, लेकिन ये हो न सका। ‘ऐसी लागी लगन, पंडित हो गया मगन’। लेकिन रामजी की महती कृपा है मेरे ऊपर कि मैं नेता नहीं बन पाया। रामजी से सत्तारूढ भाजपा की लौ भी खूब लगी है। भाजपा की समावेशी केन्द्र सरकार आगामी आम चुनावों से पहले अयोध्या में बन रहे भव्य-दिव्य मन्दिर में रामलला विराजमान को पुन: प्राण-प्रतिष्ठित कर देना चाहती है।
देश में नई लोकसभा का गठन होने से पहले रामजी नए मन्दिर में विराजमान हो जाएं इसके लिए मन्दिर के न्यासियों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को न्यौता दे दिया है। तमाम संत-महंत चाहते हैं कि रामजी की प्राण-प्रतिष्ठा का काम प्रधान जी के कर-कमलों से ही हो, क्योंकि रामजी का मन्दिर उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है। रामजी तो वैसे असंख्य भक्तों के मन-मन्दिर में युगों-युगों से प्राण प्रतिष्ठित हैं ही, लेकिन सियासत के लिए उन्हें एक बार फिर से प्रतिष्ठित किया जाना है। राजनीति का काम या तो किसी को प्रतिष्ठित करना है या किसी का मान-मर्दन करना। इस कलिकाल में रामजी की प्राण-प्रतिष्ठा के लिए कोई संत, महंत, महामण्डलेश्वर, शकंराचार्य करे ये उचित नहीं लगता, चूंकि मन्दिर एक राजनीतिक दल के एजेण्डे के तहत बना है, इसलिए प्राण-प्रतिष्ठा का काम भी उसी दल के नेता के कर कमलों से होना आवश्यक है। अब किसी को ये बुरा लगे तो लगता रहे। मुझे तो अच्छा लग रहा है।
इतिहास गवाह है, साक्षी है, चश्मदीद है कि इस देश को लोकतंत्र से ज्यादा राम मन्दिर की जरूरत थी। ये देश 500 से ज्यादा साल से मन्दिर के लिए तरस रहा था। कैकेयी ने तो रामजी को केवल 14 वर्ष का वनवास दिया था, लेकिन कलियुग के राम तो 500 से ज्यादा साल से बिना मन्दिर के रह रहे थे। ये इस देश में शासन करने वाले गोरों के लिए भी शर्म की बात थी और कालों के लिए भी। वो तो प्रभु कृपा हुई कि भाजपा सत्ता में आ गई और राम मन्दिर बन गया। अब जब मन्दिर बन गया है तो देश भी बन ही जाएगा। जिस देश में मन्दिर नहीं होते, वो देश देश नहीं होते। लोकतंत्र के लिए मन्दिर पहली शर्त है और आखरी शर्त भी। हमारे पंत प्रधान ने पहली और आखरी शर्त पूरी कर दी है, इसलिए देश को चाहिए कि देश भी उनकी आखरी ख्वाहिश पूरी कर दे और उन्हें जून 2024 से पहले लोकतंत्र के मन्दिर में एक बार यानि तीसरी बार प्राण प्रतिष्ठित कर दे।
हमारे यहां महाराज जीवाजी राव सिंधिया के नाम पर विश्वविद्यालय बना तो परिसर में महाराज जीवाजी राव सिंधिया की प्रतिमा लगाई गई, मैं चाहता हूं कि इसी तरह राम मन्दिर के प्रवेश द्वार पर या परिसर में कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक स्वर्ण प्रतिमा लगाई जाए। आखिर उन्होंने एक इतिहास लिखा है, वो भी स्वर्ण अक्षरों वाला इतिहास। यदि राम मन्दिर के न्यासी ऐसा कर सकें तो सोने में सुहागा हो जाए। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ मोदीजी की भी प्राण प्रतिष्ठा हो जाए। आज-कल वैसे भी मोदीजी के प्राण और प्रतिष्ठा दोनों लगातार कम हो रहे हैं। वे हालांकि विश्व गुरू हैं, किन्तु गुरू घण्टाल रूस और इजराइल उनकी बात सुन ही नहीं रहा। बरसाए जा रहा है बम पर बम, यूक्रेन और फिलिस्तीन के ऊपर।
बहरहाल इस बार देश में 26 जनवरी से ज्यादा यादगार 22 जनवरी रहने वाली है, क्योंकि उस दिन भगवान राम की नए मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा होगी। 26 जनवरी को तो संविधान की प्राण-प्रतिष्ठा होती है। वैसे भी हमारे संविधान के प्राण तो पहले कंठगत हैं। उसकी परवाह कौन करता है। परवाह तो रामजी की की जा रही है और की जाना चाहिए। संविधान और रामजी में जमीन-आसमान का भेद है। इन दोनों की कोई तुलना भी नहीं है। कलिकाल में रामजी की प्रतिष्ठा के सामने संविधान की प्रतिष्ठा कहां लगती है। संविधान तो अब धज्जियां उडाने के काम आता है। उसकी भी नए सिरे से रचना की जाएगी। ये काम भी मान्यवर मोदीजी ही कर सकते हैं। इसलिए उन्हें एक मौका और दिया जाना चाहिए।
आपको याद दिला दूं कि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के फैसले में अयोध्या में विवादित जगह पर एक ट्रस्ट द्वारा राम मन्दिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। इसके अलावा अदालत ने केन्द्र सरकार को नई मस्जिद के निर्माण के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक पांच एकड का जमीन आवंटित करने का निर्देश दिया था। अदालत ने फैसला सुनाया था कि विवादित भूमि की 2.77 एकड जमीन जहां 16वीं सदी की ध्वस्त बाबरी मस्जिद थी, वह केन्द्र सरकार के रिसीवर के पास रहेगी और फैसले के तीन महीने के भीतर मन्दिर के निर्माण के लिए मन्दिर ट्रस्ट को सौंप दी जाएगी।