भक्ताम्बर विधान में इन्द्रा-इन्द्राणियों भगवान के समक्ष समर्पित किए महाअघ्र्य
भिण्ड, 10 अगस्त। संसारी प्राणी दु:खों से घबराता है, और सुख की कामना करता है, परंतु सारे कार्य दु:ख प्राप्ति के ही करता है। दु:खों से मुक्ति का उपाय है प्रभु भक्ति, पूजा। भगवान ने स्वयं के कर्मों को नष्ट कर दिया है, इसलिए वे धन्य हो गए और हमें धन्यता प्राप्ति का मार्ग बता गए। भगवान ने अपने अंदर सुप्त पडी अनंत शक्ति को जागृत कर परम सुख को प्राप्त किया है। मानव में भी वह अनंत शक्ति है, पर अपने प्रमाद के कारण वह उसे प्रकट नहीं कर पा रहा है। उक्त उदगार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने संस्कारमय पावन वर्षायोग समिति एवं सहयोगी संस्था जैन मिलन परिवार के तत्वावधान में गुरुवार को महावीर कीर्तिस्तंभ में आयोजित 48 दिवसीय भक्ताम्बर महामण्डल विधान में धर्मसभा को सांबोधित करते हुए व्यक्त किए।
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि भगवान जानते देखते हैं, परंतु उस पर प्रतिक्रिया नहीं करते है, मनुष्य जानने देखने के बाद राग-द्वेष रूप प्रतिक्रिया करता है, इस कारण से उसका संसार समाप्त नहीं हो रहा है। आचार्य भगवंत कहते हैं कि जानो-देखो पर कूलों मत अर्थात् उसमें राग-द्वेष मत करो। भगवान मुक्ति रूपी स्त्री के स्वामी बन गए और वे अधोलोक, मध्य लोक और उध्र्व लोक तीनों लोकों के ऊपर मुकुट के समान शोभायमान हो रहे हैं। अर्थात भगवान तीनों के ऊपर भाग में स्थित सिद्धालय में अनंत सुख का अनुभव कर रहे हैं। मनुष्य में भी उस अनंत शक्ति प्राप्त करने की क्षमता है, उसे वह स्वयं के पुरुषार्थ से प्राप्त कर सकता है। भगवान की भक्ति उस पुरुषार्थ का प्रारंभ है और भगवान सुख प्राप्ति में निमित्त मात्र है। भगवान ने मार्ग दिया, मार्ग पर कैसे चलना बता दिया और चलना व्यक्ति को स्वयं पडेगा तभी वह अपने मंजिल पर पहुंच पाएगा।
इन्द्रों नें कलशों से भगवान जिनेन्द्र का किया महामस्तकभिषेक
प्रवक्ता सचिन जैन आदर्श कलम ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य एवं विधानचार्य पं. शशिकांत जैन ग्वालियर के मार्गदर्शन में जैन धर्म के 24वें तीर्थकार भगवान महावीर स्वामी का सौधर्म इन्द्रा दिलासा जैन, सुनील जैन, नीरज जैन, गोपाल जैन, अमर जैन, आजाद जैन ने सिर पर मुकुट लगाकर व पीले वस्त्र धारण कर भक्ति भाव के साथ कलशों से महामस्तकभिषेक किया। जैसे ही भगवान का प्रथम महामस्तकभिषेक हुआ तो पूरे पण्डाल में उपस्थित जैन समाज के लोगों जयकारों के साथ सभागार गूंज उठा। श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के मुखारबिंद से मंत्रों के उच्चरण के साथ शांतिधार श्रृद्धालुओं ने की।
इन्द्रों ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में चढ़ाए महाअघ्र्य
श्रमण मुनि विनय सागर महाराज के सानिध्य में विधानचार्य शशिकांत शास्त्री ने भक्ताम्बर महामण्डल विधान में दिलासा जैन सुनील जैन (पचासा) व नीरज जैन, गोपाल जैन, अमर जैन, आजाद जैन देव नगर कॉलोनी भिण्ड परिवार एवं इन्द्रा-इन्द्राणियों ने भक्ताम्बर मण्डप पर बैठकर अष्टद्रव्य से पूजा अर्चना कर संगीतमय भजनों पर भक्ति नृत्य करते हुए महाअघ्र्य भगवान आदिनाथ के समक्ष मण्डप पर समर्पित किए।