धार्मिक आयोजनों पर प्रतिबंध, राजनैतिक कार्यक्रमों में खुली छूट क्यों?

क्या धार्मिक आयोजनों में होने वाली भीड़ से ही होता है कोरोना

भिण्ड, 12 सितम्बर। जिले में बुढ़वा मंगल पर लगने वाले दंदरौआ धाम के आयोजन पर जिला प्रशासन ने प्रतिबंधात्मक आदेश जारी कर दिया है लेकिन रविवार को जिला मुख्यालय पर आयोजित होने वाले एक निजी कार्यक्रम में केन्द्रीय मंत्री सहित प्रदेश सरकार के दो मंत्री शामिल हुए, जहां भारी भीड़ उमड़ी लेकिन जिला प्रशासन कोरोना को भूलकर मंत्रियों की तीमारदारी में जुट गया। सरकार को राजनैतिक कार्यक्रमों में कोरोना नहीं आने की जानकारी है लेकिन मन्दिरों एवं धार्मिक आयोजनों से कोरोना वायरस क्या जल्दी आ जाता है, यह सोचनीय तथ्य है।
देशभर में चल रहे कोरोना के प्रकोप की तीसरी लहर से बचने की सरकार की तैयारी भी पक्षपातपूर्ण नजर आ रही है। एक ओर जहां धार्मिक कार्यक्रमों में भीड़ होने की वजह से ऐसे सभी कार्यक्रमों पर रोक लगा दी है, वहीं राजनैतिक कार्यक्रमों को नजरअंदाज किया जा रहा है या फिर सरकार ये मानती है कि धार्मिक स्थलों पर होने वाली भीड़ ही सिर्फ कोरोना संक्रमण फैलाती है? लॉकडाउन एवं कोरोना काल में एक चीज जो नहीं रुकी वह है राजनीति, जिसे हमारे देश के नेतागण अपने-अपने तरीकों से अंजाम देते आए हैं। अब भी राजनैतिक दलों के कार्यक्रम जारी हैं। सरकार आए दिनों केवल हवाबाजी एवं शिगूफेबाजी करती हुई अपनी पीठ थपथपाने में लगी हुई हैं। कोरोना से बचाव एवं सुरक्षात्मक तौर पर नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति एवं संस्था की नैतिक एवं अनिवार्य जिम्मेदारी है, जिसका पालन हर हाल में किया जाना चाहिए। इन सबके बावजूद जिस प्रकार से आर्थिक मोर्चे को गति देने के लिए सभी क्षेत्रों यथा-होटल-रेस्टोरेंट, उद्योग एवं निर्माण क्षेत्र, यातायात एवं परिवहन, बाजार सहित लगभग सभी क्षेत्रों को संचालित किया जाने लगा। लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते मन्दिरों एवं धार्मिक आयोजनों पर पाबंदियां लगभग यथावत जारी हैं।
जैसे ही कोई भी हिन्दू त्यौहार या पूजन की बात आती है तो सरकार का प्रतिबंधात्मक आदेश आ जाता है। इन घटनाक्रमों को देखते हुए क्या यह माना जाए कि सरकार यह मानती है कि कोरोना का प्रसार धार्मिक आयोजनों एवं मन्दिरों से ही होगा? जब सभी जगह सोशल डिस्टेंसिंग की बात करते हुए संचालन की बात की जाती है, तो ऐसे में मन्दिरों एवं धार्मिक संस्थानों, हिन्दू त्यौहारों एवं श्रृद्धालुओं के आने-जाने पर ही प्रतिबंध एवं रोक क्यों लगाई जाती है? अगर सरकार यह मानती है कि सभी व्यवस्थाओं के संचालित होने से कोरोना के संक्रमण में नियंत्रण है, तब ऐसे में मन्दिर, धार्मिक संस्थान, त्यौहारों को भी क्या दिशा-निर्देशों के पालन के साथ नहीं मनाया जा सकता है? आखिर! लोग तो वही हैं, जो विभिन्न व्यवस्थाओं के संचालन में भागीदारी निभा रहे हैं, तब ऐसे में धार्मिक पर्वों, अनुष्ठानों के आयोजन से क्या समस्या है?
सरकार लगातार धार्मिक आयोजनों, अनुष्ठानों, पर्वों के मनाने पर प्रतिबंध लगा रही है। जब देश में सारी व्यवस्थाएं बड़े ठसक एवं सरकार के अनुसार दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए ही संचालित हो रही हैं, तब ऐसे में धार्मिक आयोजनों एवं मन्दिरों में श्रृद्धालुओं के आने-जाने पर प्रतिबंध सरकार एवं प्रशासनिक प्रबंधन के किसी तुगलकी फरमान से कम नहीं हैं। हिन्दुओं की आस्था एवं धार्मिक परंपराओं तथा पद्धतियों के साथ देश की सरकारें वैसे भी दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा ही व्यवहार करती हैं।
वहीं गणेशोत्सव और बुढ़वा मंगल पर होने वाले आयोजनों पर प्रशासन ने सख्ती से रोक लगा रखी है। सवाल यह है कि कोरोना के इस दौर में जब सभी व्यवस्थाएं चालू हैं तो सिर्फ मन्दिरों, धार्मिक आयोजनों एवं हिन्दुओं के त्यौहारों पर ही प्रतिबंध क्यों? सरकार जब चाहे तब मजमा लगा सकती है। मंत्री विकास की गाथा गाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग एवं सुरक्षात्मक उपायों को जैसे चाहें तैसे धता बता सकते हैं, लेकिन पूजन अर्चन के लिए देव उपासना की बात कोई भी नहीं कह रहा है। उन्हें लगता है कि मंदिरों में आने वाली भीड़ से कोरोना का संकट बढ़ जाएगा।