पंच कल्याणक का मंगलाचरण ध्वजारोहण से किया जाता है : विहसंत सागर

कलश यात्रा व ध्वाजारोहण के साथ पंच कल्याणक का शुभारंभ

भिण्ड, 08 जून। मेडिटेशन गुरू उपाध्याय विहसंत सागर महाराज, मुनि विश्वसाम्य सागर महाराज के ससंघ सानिध्य में आठ से 13 जून तक निराला रंग विहार मेला ग्राउण्ड में होने वाले 1008 मज्जिनेन्द्र जिनबिंब शांतिनाथ पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के शुभारंभ के अवसर पर कलश यात्रा महावीर चौक पाश्र्वनाथ दिगंबर जैन मन्दिर से बैण्डबाजों के साथ निकाली गई।
इस अवसर पर एक हाथी पर भगवान के माता-पिता एवं अन्य नौ बग्घियों पर सौधर्म इन्द्र, कुबेर, यज्ञनायक, सानत इन्द्र, महेन्द्र इन्द्र आदि बग्घियों में सवार थे एवं माता-बहिनें लाल रंग के परिधान पहनकर हाथों में कलश लेकर भक्ति करते हुए चल रही थीं। कलश यात्रा महावीर चौक से परेड चौराहा, सदर बाजार, बताशा बाजार होते हुए इटावा रोड, देवनगर कॉलोनी, महावीर गंज से निराला रंग बिहार पहुंची। वहां पर पण्डाल शुद्धि एवं ध्वजारोहण रतनलाल भारौली के दामादों ने किया।

इस अवसर पर मेडिटेशन गुरू उपाध्याय विहसंत सागर महाराज ने कहा कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का शुभारंभ ध्वजारोहण से किया जाता है। ध्वजा का फहराना चारों तरफ धार्मिकता फैल जाना है। जैन दर्शन में पंच वर्ण के ध्वज की परिकल्पना भी की गई है, जो पंचपरमेष्ठी का प्रतीक हैं। जैन ध्वज के पांच रंग ऊपर से नीचे की ओर क्रमश: सफेद, लाल, पीला, हरा और नीला है। जैसे धार्मिक अनुष्ठा, विधि-विधान, पंच कल्याणक आदि में केसरिया ध्वज ही फहराया जाता है और इसी रंग के परिधान धारण करके इन्द्र-इन्द्राणी भगवान की पूजा विधान करते हैं। केसरिया रंग पीतलेस्या का प्रतीक होने से शुभ माना गया है, ऐसे शुभ और सुखद संदेहवादी ध्वज को देखकर जिन शासन के प्रति सहज ही श्रृद्धा उमड़ती है, जिसकी शीतल छांव में सारा समाज अपने आपको निरापद और आनंदमय महसूस करती है। यही कारण है कि धर्म ध्वज को शिवपुर पथ परिचायक, दुख हारक, सुखकारक, दयाप्रभावक, भविजनतारक, कर्मविदारक, चिरसुख, शांतिविदायक आदि विशेषणों से संबोधित किया जाता है।