सच्चा सुख उनके जीवन में है, जिनके जीवन में धर्म है : देवी संध्या जी

खेरीधाम हमीरपुर में चल रही है नौ दिवसीय श्रीराम कथा

खेरीधाम/हमीरपुर (हिप्र), 06 अप्रैल। सच्चा सुख उनके जीवन में जिनके जीवन में धर्म है। बड़ा उपकार है कि मानव जीवन मिला, मनुष्य जीवन को सार्थक बनाना है तों संत की संगत करो। यह उद्गार भागवताचार्य देवी संध्या जी ने हिमाचल प्रदेश के खेरीधाम हमीरपुर में चल रही नौ दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिवस गुरुवार को व्यक्त किए। यह कथा 12 अप्रैल तक चलेगी।
भागवताचार्य देवी संध्या जी ने कहा कि श्रीराम भाव के भूखे हैं, शबरी के झूठे बेर खाए, जो राम ने किया, ऐसा कोई भारत का पुत्र कर सकता है क्या? श्रीराम जब वन से लौटकर आए, सबसे पहले कैकेयी को गले लगाया। सत्य को स्थापित करने के लिए राम धरती पर आए। सच के लिए अकेला खड़ा होता है, साहसी लोग बाद में खड़े होते हैं। जलंधर राक्षस था, पत्नी वृंदा धार्मिक थी। वृंदा का भगवान ने सतीत्व भंग किया, क्योंकि जलंधर ने हजारों सतियों की रक्षा के लिए यह कड़वा निर्णय लिया। वृंदा के सतीत्व को जब भंग किया, तब राक्षस जलंधर की मृत्यु हुई। नारद जी ने भगवान को श्राप दिया था इसलिए धरती पर आए। भक्त भला क्यों भगवान को श्राप देगा, किंतु दिया। इसको भी राम जन्म से जोड़ा जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इन्द्र कुर्सी पर बैठा हुआ फिर भी डरा है, क्योंकि उसे अपने सिंहासन न चला जाए, भयभीत रहता है, दिलीप ने 99 यज्ञ सफल किए, सौ यज्ञ करने पर इन्द्र बन जाता है, तो इन्द्र ने ही यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया, तब दिलीप ने सौंवा यज्ञ छोड़ ही दिया, क्योंकि ऐसे पद पर बैठने से क्या लाभ, सेवा की बागडोर उनको देना चाहिए, जिनकों सेवा का भाव होना चाहिए। राजनीति सेवा के लिए है, स्वार्थ के लिए नहीं। निज स्वार्थ के लिए कुछ तथाकथित लोग रामायण की प्रतियां जला रहे हैं। चंद स्वार्थ के लिए नहीं, सेवा के लिए है। जो धर्म, संस्कृति के लिए काम कर रहे हैं, सदा सम्मानीय हैं।
देवी संध्या जी ने कहा कि जब भूख बढ़ जाती है, तब भ्रष्ट आचरण खड़ा हो जाता है। दुर्योधन ने पाण्डवों के हिस्से का खाना चाहा, क्या कर पाता, रावण की सोने की लंका ध्वस्त हो गई, धृतराष्ट्र की दुर्गति हुई, धर्म का आचरण करना चाहिए, दुर्गति से बचना चाहिए। विचारों में मिलावट कैसे आ गई है, सिर्फ लालच के कारण, जो उदार है, वह कभी दरिद्र नहीं है। भक्त लोलुप नहीं होता, वह काल की परवाह कभी नहीं करता है। काम, क्रोध, लोभ व्यक्ति के तीन दुश्मन हैं। नारद जी ने काम को जीत लिया, अब नारद जी को अभिमान होने लगा। प्रशंसा सबसे बड़ा राक्षस है, लगेगा मीठे-मीठे ज्यादा प्रशंसा न सुनें।
श्रीराम ने जब हनुमान जी के कामों की प्रशंसा की तब हनुमानजी श्रीराम के पैरों में गिर कर कहा कि प्रभु इससे ही डर लगता है। प्रशंसा की गोली मीठी जरूर होती है, किंतु वह कभी-कभी कड़वी हो जाती है। प्रशंसा मिले तो पहले प्रभु को परोस दो। नारद जी शंकर जी के पास पहुंचते हैं, कहते हैं कि मैंने काम को जीत लिया है। अपनी प्रशंसा नारद जी खुद करने लगे। शंकर जी ने नारद जी से कहा यह प्रशंसा हरि से नहीं करना, किंतु नारद जी नहीं माने और अपनी प्रशंसा करने लगे। भगवान ने लीला की और एक नगर बना दिया, नारद जी भी विवाह रूप मण्डप पहुंचे। नारद जी को मोहिनी से शादी की कामना जागी। प्रभु से कहा अपना रूप दे दो। विश्व मोहिनी ने भगवान के गले में माला डाल दी। नारद जी को बंदर का रूप दे दिया। नारद जी ने जब तालाब में मुंह देखा तो क्रोधित हो गए, मुझे बंदर बना दिया। नारद जी ने भगवान को श्राप देना शुरू कर दिया। नारद ने कहा बानर ही आपके साथ में होंगे। पत्नी के वियोग में जीना पड़ेगा। नारद जी को बाद में प्रभु की लीला समझ में आ गई। संतों की वाणी को भगवान को पूरा करना पड़ता है।

खेरीधाम में चल रही श्रीराम कथा का यह आध्यात्मिक कार्यक्रम ब्रह्मलीन बहिन साध्वी पूर्णमा देवी महाराज के सानिध्य में प्रति वर्ष आयोजित किया जाता है। कथा आयोजक संतोष रागड़ा हैं। भागवताचार्य देवी संध्या जी की कथा में भक्तों का अपार जनसमूह शामिल हो रहा है। इसमें प्रमुख रूप से श्री स्वामी नारायण पुरी जी महाराज हीरा आत्म आश्रम पंजोआ हिमाचल प्रदेश शामिल हुए। श्रीराम कथा में प्रतिदिन लंगर (भण्डारा) चलता है। इस अवसर पर कर्नल संतोष रांगड़ा एवं समस्त गांव वासियों ने रामकथा आयोजन में बाहर से आए लोगों को सम्मानित कर कथा में आने के लिए प्रेरित किया।