नर्मदा नदी के जल का संपूर्ण उपयोग करने में राज्य सरकार असफल साबित हुई : डॉ. गोविन्द सिंह

भिण्ड, 04 अप्रैल। मप्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविन्द सिंह ने कहा कि मप्र की लाईफ लाईन एवं जीवित इकाई नर्मदा नदी के जल का संपूर्ण उपयोग मप्र सरकार की उदासीनता के चलते प्रदेश में नहीं हो पा रहा है। राज्यों के बीच नर्मदा के मप्र कछार के जल बंटवारे के लिए भारत सरकार द्वारा सन् 1968 में गठित नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा वर्ष 1979 में मप्र, गुजरात, महाराष्ट्र एवं राजस्थान के मध्य जल का बंटवारा किया था, जिसके अनुसार मप्र को 18.25 मिलियन एकड़ फीट, गुजरात को 9.00 मिलियन एकड़ फीट, महाराष्ट्र को 0.25 एकड़ फीट एवं राजस्थान को 0.50 मिलियन एकड़ फीट कुल 28.00 एकड़ मिलियन एकड़ फीट का बंटवारा किया गया था।
नेता प्रतिपक्ष डॉ. सिंह ने कहा कि नर्मदा नदी पर मुख्य सहायक नदियां, जिनकी संख्या 41 है। इनमें से 19 सहायक नदियां दांए तट से तथा 22 सहायक नदियां बांए तट के नर्मदा से मिलती है। कुल 41 सहायक नदियों में से 39 सहायक नदियां मप्र में है। केवल दो सहायक नदियां नर्मदा से गुजरात में मिलती है। नर्मदा की उक्त सहायक नदियों पर अभी तक बांधों का निर्माण नहीं किया गया है, जिससे नर्मदा नदी का पानी बहकर गुजरात जा रहा है। मप्र शासन द्वारा जुलाई 1981 में पृथक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया था। नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा नर्मदा जल के समय सीमा में उपयोग सुनिश्चित करने के लिए मप्र शासन द्वारा नर्मदा घाटी विकास विभाग के अंतर्गत नर्मदा नियंत्रण मंडल तथा नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है।
एनडब्ल्यूडीटी के क्लॉज 10 के अनुसार मप्र सरदार सरोवर डेम के लिए 8.12 मिलियन एकड़ फीट पानी छोडऩे के लिए कानूनी रूप से बाध्य है, जबकि महेश्वर डेम का कार्य अपूर्ण है, जिससे मप्र के हिस्से का पानी निरंतर गुजरात में जा रहा है। वर्तमान में मप्र उसके हिस्से का आवंटित 18.25 मिलियन एकड़ फीट में से 9.20 मिलियन एकड़ फीट पानी का ही उपयोग कर पाया है। न्यायाधिकरण द्वारा संबंधित राज्यों को आवंटित जल का पुनरीक्षण अवार्ड पारित होने के 45 वर्ष पश्चात अर्थात सात दिसंबर 2024 के बाद प्राधिकरण के निर्णय पर पुनर्विचार करने का प्रावधान है, क्योंकि उक्तावधि की स्थिति में जो राज्य नर्मदा जल का जितना उपयोग करेगा, उस जल पर संबंधित राज्य का अधिकार होगा। इस तरह सात दिसंबर 2024 के बाद नर्मदा नदी के अधिकांश जल पर गुजरात का अधिकार स्थापित हो जाएगा।
डॉ. सिंह ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य सरकार की उदासीनता एवं लापरवाही के चलते नर्मदा नदी की सहायक नदियों पर बांध बनाकर मप्र को आवंटित पूरी जल की मात्रा का उपयोग नहीं किए किया गया है, जिससे प्रदेश के नर्मदा कछार के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में जल का संकट उत्पन्न हो जाने से भूमिगत जल का स्तर भी अत्यंत नीचे चला जाएगा। साथ ही जल की कम उपलब्धता के कारण जलाशयों के जलीय जीवों के जीवन पर संकट उत्पन्न होने के साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित होगा और सिंचाई हेतु पर्याप्त पानी नहीं मिलने से कृषि उत्पादन घट जाएगा, जिससे रोजी रोटी की समस्या उत्पन्न होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।