दु:ख का पर्यायवाची ही संसार है : पाठक

श्रीमद् भागवत कथा के शुभारंभ अवसर पर निकली कलश यात्रा

भिण्ड, 01 फरवरी। श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिवस के शुभारंभ पर भिण्ड शहर में कलश यात्रा निकाली गई, जो वाटर वक्र्स राम मन्दिर से आरंभ होकर कुम्हरौआ गायत्री मन्दिर होते हुए शा. क्र.दो विद्यालय के पास स्थित महारानी अवंतीबाई मांगलिक भवन पर समाप्त हुई।
कथा के प्रथम दिवस पर कथा व्यास संत श्री अनिल पाठक महाराज ने बताया कि जिस प्रकार दुख का पर्यायवाची संसार है, ठीक उसी प्रकार सुख का पर्यायवाची भगवान है। जब हम कथा अमृत का पान करते हैं तब हमें कितना आनंद आता है, यह आवश्यक नहीं कि आपके चेहरे पर मुस्कान हो आप प्रसन्न हो तभी आप आनंद में हों, बल्कि जब आपको अंदर से जो शांति प्राप्त होती है वह आनंद केवल भगवान के नाम और सुमिरन से ही आता है। यदि ऐसा आनंद ऐसी शांति यदि घर पर भी बनी रहे तो मानो कि आपको आत्मज्ञान हो गया, आपका मन वास्तव में भगवान के भजन में लगने लगा। क्योंकि भगवान ही है जो आनंद स्वरूप है। उन्होंने कहा कि यहां एक प्रश्न यह बनता है कि जब भगवान आनंद स्वरूप है, सब जगह हैं, कण-कण में व्याप्त हैं फिर दुख क्यों बनता है, आज के समय में सबके पास दु:ख ही दुख है? तो बताया की ईश्वर तो सबको एक जैसा ही बनाता है परंतु व्यक्ति स्वयं ही अपने कर्मानुसार अपने दुख की सृष्टि का निर्माता स्वयं ही बनता है। जिस दिन से मनुष्य अपने कर्म को जो साधन बना लेता है वहीं से उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।