राष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा काव्य संध्या आयोजित
ग्वालियर, 07 नवम्बर। शहर की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था राष्ट्रीय साहित्य कला मंच द्वारा रविवार की शाम को काव्य संध्या का भव्य आयोजन गंगादास की बड़ी शाला में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महंत श्री रामदास जी महाराज ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. रविन्द्र नाथ मिश्र, विशिष्ट अतिथि अंशु भदौरिया एवं डॉ. मनीषा गिरी थीं। कार्यक्रम का संचालन ख्याति प्राप्त राष्ट्रीय कवि रविन्द्र रवि ने किया। इस अवसर पर ग्वालियर शहर के अतिरिक्त अन्य राज्यों के भी लब्ध प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी मनमोहक प्रस्तुतियां दीं।
काव्य संध्या में आगरा से डॉ. राजकुमार रंजन और धौलपुर से रजिया बेगम ने गजल और गीत गाकर देर रात तक समा बांधा। कवि रविन्द्र रवि ने अपनी कविता यूं सुनाई- प्रीत के गीत गाती रहे जिंदगी, फूल सी मुस्कुराती रहे जिंदगी। जगमगाते हुए दीपकों की तरह आपकी जगमगाती रहे जिंदगी।।
कवियित्री डॉ. ज्योत्स्ना सिंह राजावत ने अपनी पंक्तियां यूं प्रस्तुत कीं- पाषाणों का हृदय भेद कर्तव्यों का करूं निर्वहन। सूरज की लाली लेकर करूं धरा का नित आचमन।। कवियित्री डॉ. निशि भदौरिया ने अपनी प्रस्तुति यूं दी- कभी तो दिन बीतेंगे सीते, कभी तो रघुवर आएंगे। मेरे मन की व्यथा को कभी तो बे पढ़ जाएंगे।। कवियित्री अर्चना अर्पण ने कहा- शब्द स्वर से मिले और मधुर हो गए। भाव तुमसे मिले और मुखर हो गए।। आरती अक्षत ने अपनी पंक्ति यूं सुनाई- सभी कुछ साथ में मिलना नहीं आसान होता है, मिले जो साथ में सब कुछ वही वरदान होता है।। पुष्पा मिश्रा आनंद ने अपनी प्रस्तुति में कहा- न राधा बनाना, न मीरा बनाना। मुझे मेरे कान्हा सुभद्रा बनाना।। अंशु भदौरिया ने अपनी कविता यूं सुनाई- मत कहो मन की व्यथा तुम हर किसी से, लोग समझेंगे नहीं उपहास की बातें करेंगे।
कवि डॉ. राजकुमार रंजनी की बानगी देखिए- तन की डिबिया में धरो है एक मोती मन को छिन-छिन बीते भोर दोपहरी श्याम सलोनी रतिया।। रजिया बेगम ने कहा- वह जिंदगी में आए लम्हे संवर गए, दिल की लगी जताने उनके शहर गए। रचना पटवर्धन ने अपनी कविता यूं सुनाई- हर बार मैं सोचा करूं अब की बार मैं क्या लिखूं कविता है शब्द कविता है शब्द भाव हैं।। सीता चौहान ने कहा- जिसको जितना मिलना था उसने उतना पाया, किसी को सुख की धूप मिली तो किसी को दुख की छाया।। उमा उपाध्याय ने अपनी पंक्तियां कुछ यूं सुनाईं- अश्क मेरे तुझसे पूछें, आहे पीड़ा पालती। मुझ में भी संभावनाएं, क्यों नहीं पहचानती। मुझको भी आकार दो, मेरा पिघलना रोक लो।। डॉ. मनीषा गिरि ‘मनमुग्धÓ ने अपनी कविता में कहा- याद जब-जब शहीदों की आती मुझे। आंखे रोए बिना ही रुलाती मुझे।। अमर सिंह यादव ने अपनी कविता यूं सुनाई- मिले सारी खुदाई की बद्दुआ जो मन बेचते हैं नर्क भी ना पा सके में जो अपना तन बेचते हैं।।
डॉ. रमेश त्रिपाठी मछण्ड ने देशभक्ति का समा यूं बांधा- देश की माटी का कण-कण प्राणों से भी प्यारा है। हिन्दुस्तान हमारा है हिन्दुस्तान हमारा है। इसके अलावा शहर के अन्य कवियों ने भी बहुत श्रेष्ठ काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में रविन्द्र नाथ मिश्र, रामचरण चिराड़, डॉ. मनीषा गिरी, एमएल सिंघल, राज, अशोक बित्थारिया, किंकरपाल सिंह, राजहंस त्यागी, उमा उपाध्याय एवं अन्य साहित्य प्रेमी श्रोतागण कार्यक्रम में उपस्थित रहे।