गांवों में खत्म होती चरनोई की भूमि, साजिश या फिर मिली भगत..

जागो…जिला प्रशासन, ग्रामीण स्तर की चरनोई की भूमि को अतिक्रमण मुक्त कराओ

भिण्ड, 06 फरवरी। बात अकेले अटेर क्षेत्र की ही नहीं बल्कि पूरे जिले की चरनोई भूमि पर नजर डाली जाए तो निश्चित तौर पर चरनोई की भूमि ज्यादातर गायब ही मिलेगी, इसके पीछे तमाम अज्ञात कारण हैं, परन्तु मजे की बात तो यह है जिले का सुध लेने वाला जिला प्रशासन ही मौन है, तो बताओ कार्रवाई कौन करे, इस समय का सबसे बड़ा सवाल है, जो हर व्यक्ति इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है।
जानकारी के अनुसार अटेर, मेहगोव, भिण्ड, लहार, गोहद आदि क्षेत्रों का राजस्व रजिस्टर खंगाला जाए तो उसमें कई हैक्टेयर जमीन चरनोई की दर्ज होगी, परन्तु और आज का रजिस्टर खंगाला जाए तो उस चरनोई की भूमि पर सरेराह फसल उगाई जा रही होगी या फिर बहुमंजिला इमारतें खड़ी होंगी, ये भिण्ड में हो क्या रहा है, पटवारी व तहसीलदार जो निचले अधिकारी होते हैं क्या उनके संरक्षण में चरनोई की भूमि का रकवा घट रहा है? ग्रामीण क्षेत्रों की चरनोई भूमि पर आज तक कभी भी कार्रवाई नहीं हुई, उसका लाभ उठाने में ये सहभागी हैं। कुछ भी हो दाल तो पूरी की पूरी काली ही है और आज के दौर में जो दुर्दशा पशुओं की हो रही है उसके पीछे चरनोई की भूमि का गायब होना सबसे बड़ी समस्या है।

चरनोई भूमि उगता था पशुओं का चारा

जानकार बताते हैं कि जिन क्षेत्रों में चरनोई की भूमि हुआ करती थी, उस पर जो चारा उगता था, उसको ये जानवर खाकर अपना पेट भरते थे, परन्तु चरनोई की भूमि को सांठ-गांठ कर खुर्द-बुर्द करने के पीछे इन पटवारियों ने जो साजिश रची है, उसके पीछे तमाम अज्ञात कारणों की फेहरिस्त है।

भूमि को करानी होगी खाली

जिला कलेक्टर को समय रहते सतर्क होकर ग्रामीण स्तर की चरनोई भूमि पर जो दबंगों ने कब्जा कर रखा है, उसका रिकार्ड पटवारियों से खंगालकर चरनोई की भूमि को पशुओं के विचरण के लिए अतिक्रमण मुक्त करानी होगी।