भागवत कथा में गजमुक्ति और समुद्र मंथन की कथा

डोंडरी में वह रही ज्ञान गंगा की रसधार, श्रोता हुए भाव विभोर

भिण्ड, 03 फरवरी। मेहगांव क्षेत्र के ग्राम डोंडरी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दौरान पं. रामगोविन्द शास्त्री ने गुरुवार को गजराज मुक्ति और समुद्र मंथन की कथा सुनाई। कथा का श्रवण कर श्रोता भाव विभोर हो गए।
श्रीमद् भागवत का वाचन करते हुए पं. रामगोविन्द शास्त्री ने कहा कि गजराज ने भगवत नाम के मंत्र का जाप किया और वह ग्राह से मुक्त हो गए तथा ग्राह को भी मुक्ति मिल गई। उन्होंने कहा कि गजराज को भी मंत्र का ज्ञान था, जो संकट के समय याद करते हुए भगवत मंत्र का जाप किया। व्यास जी कहते हैं कि ज्ञान और कर्म कभी नहीं मरते यह शास्वत सत्य है, गजराज पूर्व जन्म में भगवान के मंत्र का जाप करता था। उस जप के प्रभाव से संकटकाल में उसे भगवत नाम याद आया और ओम भगवते बासुदेवाय नम: मंत्र का जप करने लगा। उसी समय भगवान कमल पुष्प स्वरूप होकर सरोवर में तैरने लगे। गज ने कमल पुष्प को सूंड में लेकर भगवान को समर्पित करते हुए प्रार्थना करते हुए कहा कि हे प्रभो भगवान नारायण आपका निवास जल में है और मैं आपके घर जल में दुष्ट ग्राह द्वारा प्रताडि़त किया जा रहा हूं ग्राह मेरे प्राण लेना चाहता है। अपने घर में कभी कोई भी किसी के साथ अनर्थ नहीं होने देता, इसलिए हे प्रभो मेरी रक्षा करो। गज ने डूबते हुए जब भगवान वासुदेव का स्मरण किया तो उन्होंने अपने हाथों से गज को ऊपर उठा लिया और ग्राह को चक्र के प्रहार से समाप्त कर ग्राह को बैकुण्ठ धाम पहुंचा दिया।
उन्होंने कहा कि भगवान की अदुभुत लीला है, भगवान अपने भक्तों को तो तारते हुए परमपद प्रदान करते ही हैं, मगर जो भक्त संत के पैर पकड़ लेता है भक्त बत्सल भगवान उसे भी परमपद प्रदान करते हैं। संत भगवत नाम का जप करते हुए अपने जीवन का कल्याण करते हुए परोपकार भी करते रहते हैं। संतों के चरण पकडऩे वाले परमपद को प्राप्त होते हंै। कथा विश्राम समय के बीच पुरुषोत्तम राजौरिया पत्रकार ने जेष्ठ भ्राता सहित कथा वाचक पंडितजी वरण सहित परीक्षत भगवती प्रसाद शर्मा को पुष्पहार शॉल श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद लिया।