भिण्ड, 24 फरवरी। नगर दबोह के वार्ड क्र.15 में विराजमान भुवनेश्वरी मां संकटा देवी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में सभी नगरवासियों के सहयोग से चल रही सात दिवसीय संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन कथा वाचक पं. रमाकांत व्यास ने सभी धर्मप्रेमियों को कथा श्रवण कराते हुए कहा कि यज्ञोपवीत (जनेऊ) में त्रिदेवों का वास होता है, पहले व्यक्तियों के उपनयन संस्कार होता था, जिसमें जनेऊ पहना जाता है और विद्यारंभ होता है, मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी इस संस्कार के अंग होते हैं। सूत से बना वह पवित्र धागा जिसे यज्ञोपवीत धारी व्यक्ति बांए कंधे के ऊपर तथा दांई भुजा के नीचे पहनता है। यज्ञोपवीत एक विशिष्ट सूत्र को विशेष विधि से ग्रंथित करके बनाया जाता है, इसमें सात ग्रंथियां लगाई जाती हैं। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि होती है, तीन सूत्रों वाले इस यज्ञोपवीत को गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है। तीन सूत्र हिन्दू त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं, इसके कई लाभ भी होते हैं, जैसे कि जनेऊ पहनने वाला व्यक्ति ये ध्यान रखता है कि मल-मूत्र करने के बाद खुद को साफ करना है, इससे उसको इंफेक्शन का खतरा कम से कम हो जाता है।
उन्होंने कहा कि गाय को पशु न समझे गाय में तेतीस करोड़ देवता बास करते हैं। जो व्यक्ति गुरु, गाय, संत की सेवा करता है, वह हर प्रकार से धन्यवान रहता है। उसे कोई भी बीमारी नहीं होती हैं। माताओं को गाय के लिए पहला ग्रास निकालना चाहिए, इस से घर में धन, धान बढ़ता है। उन्होंने कहा कि माताओं को महाभारत का श्राप लगा हुआ है कि उनके पेट में कोई बात नहीं छुपती है। इसी के साथ कथा वाचक ने भक्त प्रहलाद, नरसिंह अवतार, हिरण्य कश्यप बध, वामन अवतार एवं राजा बलि की कथा संक्षिप्त में सुनाते हुए रामायण की शुरुआत कर अपनी वाणी को विराम दिया।
हनुमानजी का नाम लेने से छूटता है तामसी भोजन: महंत रामदास जी
संकटा देवी मन्दिर प्रांगण में चल रही भागवत कथा में गुरुवार को दंदरौआ धाम से पधारे संत श्री रामदास जी महाराज ने कथा का श्रवण किया। वहीं उन्होंने कथावाचक रमाकांत व्यास का माल्यार्पण करते हुए कहा कि हनुमान जी का नाम मात्र भर लेने से व्यक्तियों का तामसी भोजन छूट जाता है, हनुमान चालीसा का पाठ करने से बल, बुद्धि एवं विद्या का विकास होता है, इसलिए हर व्यक्ति को हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, भगवान का महत्व बताते हुए बीच-बीच मे महाराजश्री ने कथा वाचक की प्रसंशा करते हुए उनकी विशेषताएं बताईं और कहा कि यह बड़े सुंदर भजन भी लिखते हैं। इन्होंने अभी दंदरौआ के भजन भी लिखे और गाये हैं।