मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर एमजेएस कॉलेज में कार्यशाला आयोजित

भिण्ड, 01 अगस्त। प्रधानमंत्री कॉलेज ऑफ एक्सीलेंस शा. एमजेएस महाविद्यालय भिण्ड में मुंशी प्रेमचंद जयंती के अवसर पर स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ के तत्वावधान में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन प्राचार्य डॉ. आरए शर्मा के मार्गदर्शन और निर्देशन में किया गया।
इस अवसर पर स्वामी विवेकानंद कैरियर मार्गदर्शन प्रकोष्ठ प्रभारी ने मंच संचालन करते हुए प्रो. मोहित कुमार दुबे ने मुंशी प्रेमचंद के जीवन चरित्र का उल्लेख किया। प्रेमचंद की कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। उन्होंने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की, किन्तु प्रमुख रूप से वह कथाकार हैं। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आरए शर्मा ने बताया प्रेमचंद की रचना-दृष्टि, विभिन्न साहित्य रूपों में, अभिव्यक्त हुई। वह बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। प्रेमचंद की रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में जन साधारण की भावनाओं, परिस्थितियों और उनकी समस्याओं का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कृतियां भारत के सर्वाधिक विशाल और विस्तृत वर्ग की कृतियां हैं। अपनी कहानियों से प्रेमचंद मानव-स्वभाव की आधारभूत महत्ता पर बल देते हैं।
तत्पश्चात हिन्दी विभाग के विभाग अध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र बिसारिया ने मुंशी प्रेमचंद के जीवन के बारे में उनकी कहानी उपन्यास को विद्यार्थियों के समक्ष चरित्रार्थ किया। साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद की लोकप्रियता दिनों दिन देश-विदेश में भी बढ रही है। चूंकि उनके साहित्य का सबसे बडा आकर्षण यह है कि वह अपने साहित्य में ग्रामीण जीवन की तमाम दारूण परिस्थितियों को चित्रित करने के बावजूद मानवीयता की अलख को जगाए रखते हैं। इनके उपन्यासों और कहानियों में कृषि प्रधान समाज, जातिप्रथा, महाजनी व्यवस्था, रूढिवाद की जो गहरी समझ देखने को मिलती है, उसका कारण यह है कि ऐसी बहुत-सी परिस्थितियों से प्रेमचंद का स्वयं गुजरना था।
डॉ. कमला नरवरिया ने बताया कि प्रेमचंद जी के लेखन की शुरुआत उर्दू उपन्यास कहानियों के लेखन से हुई। सन् 1907 ई. को आपका ‘सोजे वतन’ उर्दू कहानियों का संग्रह प्रकाशित हुआ, जो अगले वर्ष जब्त कर लिया गया। अभी तक प्रेमचंद (घर का नाम धनपतराय) ‘नवाब राय’ के नाम से लिखा करते थे। किंतु ‘सोजे वतन’ की जब्ती के बाद से ‘प्रेमचंद’ नाम से लिखने लगे। प्रेमचंद जी के साहित्य-जगत में प्रवेश के साथ ही हिन्दी उपन्यास में एक नया मोड आता है। उनमें सनातनधर्मी प्रतिक्रियावादी मनोवृत्तियां पर्दाप्रथा का समर्थन, थोथे पातिव्रत्य का अनुमोदन, सहशिक्षा तथा विधवा-विवाह का विरोध स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। प्रेमचंद जी ने इस भूलभूलैया और प्रतिक्रियावादी स्थितियों से बाहर निकाल कर हिन्दी उपन्यासों को वास्तविकता की जमीन पर खडा किया।
महाविद्यालय के प्राध्यापक प्रो. अभिषेक यादव ने बताया कि प्रेमचंद ने अपने जीवन के कई अदभूत कृतियां लिखी हैं। तब से लेकर आज तक हिन्दी साहित्य में ना ही उनके जैसा कोई हुआ है और ना ही कोई और होगा। अपने जीवन के अंतिम दिनों के एक वर्ष को छोडकर उनका पूरा समय वाराणसी और लखनऊ में गुजरा, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे। डॉ. आशीष गुप्ता ने आभार प्रदर्शन किया। इस अवसर पर समस्त महाविद्यालय स्टाफ उपस्थित रहा।