आखिर क्या है उपराष्ट्रपति धनकड के इस्तीफा का सच

– राकेश अचल


जगदीप धनकड ने उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में सेहत का हवाला दिया है, जबकि सोमवार को मानसून सत्र के पहला दिन वह पूरी तरह सक्रिय दिखे। उन्होंने पूरे दिन सदन को अच्छे से चलाया भी। मगर अचानक शाम को जगदीप धनकड ने इस्तीफा दे दिया? उनके इस्तीफे ने सभी को चौंकाया है। सत्ता पक्ष के तमाम सांसदों को भी इसकी भनक नहीं लगी। धनखड के पीछे सच में सेहत है या इसके पीछे सत्तारूढ दल की कोई सियासत ये कहना बहुत कठिन है।
दरअसल, जगदीप धनकड के इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष से लेकर तमाम लोगों को उनके अचानक इस्तीफे की बात पच नहीं रही। देश के इतिहास में पहली बार हुआ है कि संसद के चलते सत्र में किसी उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दिया हो। चलते सत्र में केन्द्रीय मंत्रियों के इस्तीफे तो हुए हैं, लेकिन कोई उपराष्ट्रपति इस्तीफा देकर घर जा रहा हो, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
देश इस्तीफे का इंतजार तो लंबे अरसे से कर रहा है, लेकिन ये इस्तीफा प्रधानमंत्री का होना था, वे न देते तो गृहमंत्री या रक्षामंत्री या विदेश मंत्री का होना था, लेकिन ये सब आलोचनाओं के बवंडर के सामने टिके हैं, किंतु धनकड साहब ने इस्तीफा दे दिया। संसद के मानसून सत्र के पहले दिन के समापन के कुछ घण्टों बाद आए जगदीप धनकड के इस्तीफे ने राजनीतिक हलकों में हलचल है। विपक्ष को क्या किसी भी पक्ष को धनखड का इस्तीफा हजम नहीं हो रहा है। जगदीप धनकड के इस फैसले की टाइमिंग को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल है कि आखिर उन्होंने पहले दिन के सत्र के बाद इस्तीफा क्यों दिया? अगर उन्हें अपनी सेहत की चिंता थी तो संसद के मानसून सत्र से पहले भी दे सकते थे? उन्होंने अगर अपना इस्तीफा देने का मन बना भी लिया था तो उन्होंने मानसून सत्र का पहला दिन ही क्यों चुना?
धनखड ने घाट-घाट का पानी पिया है। वे दो दल छोडकर भाजपा में आए हैं, भाजपा ने उन्हें पहले बंगाल का राज्यपाल और बाद में देश का उपराष्ट्रपति बनाया। धनखड ने दोनों ही पदों पर भाजपा प्रचार कर प्रवक्ता की तरह तमाम बेशर्मी के साथ काम किया। आलोचनाएं सहीं और आगे बढते रहे। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति धनखड की निष्ठा पर कोई संदेह नहीं कर सकता, लेकिन अब लग रहा है कि दाल में कुछ काला जरूर है। केवल सेहत इस इस्तीफे की इकलौती वजह नहीं हो सकती।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड की आत्मा पिछले एक दशक से बेशर्मी के पत्थरों के नीचे दबी कराह रही थी। मुझे नहीं लगता कि धनखड ने अपनी आत्मा और शरीर को बचाने के लिए इस्तीफा दिया होगा। निश्चित ही धनखड बलि का बकरा बनाए गए हैं। क्यों बनाए गए हैं ये तत्काल उदघाटित करना संभव नहीं है। अन्यथा पद पर रहकर धनखड की जितनी बेहतर देखभाल हो सकती है वो पद से हटने के बाद संभव नहीं है।
कांग्रेस का मानना है कि उपराष्ट्रपति धनकड स्वस्थ हैं। कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह, प्रमोद तिवारी और जयराम रमेश ने उपराष्ट्रपति से सोमवार की शाम 5.45 बजे जगदीप धनकड से मुलाकात की थी। उनके अनुसार उपराष्ट्रपति स्वस्थ थे। जगदीप धनकड के सेहत वाले दावे पर कई विशेषज्ञ और विपक्षी नेता संदेह जता रहे हैं। खास बात ये है कि जगदीप धनकड का 23 जुलाई को जयपुर प्रस्तावित दौरा भी रद्द नहीं किया गया। अटकलें लगाई जा रही हैं कि यह शीर्ष नेतृत्व के साथ किसी टकराव का नतीजा हो सकता है। अटकल ये भी है कि उपराष्ट्रपति भी पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक की तरह किसानों के मुद्दे पर सरकार से नाराज थे?
आपको बता दूं कि जगदीप धनकड की उम्र 74 साल है। धनकड ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था और उनका कार्यकाल 2027 तक था। इससे पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे थे। उनके कार्यकाल में उनके बेबाक बयानों और विपक्ष के साथ तनाव ने कई बार सुर्खियां बटोरीं। विपक्ष ने उन पर राज्यसभा में पक्षपात का आरोप भी लगाया था। धनखड का इस्तीफा मंजूर होगा ही, क्योंकि ये इस्तीफा वापस लेने के लिए नहीं दिया गया है। मुझे लगता है कि संघ, भाजपा और प्रधानमंत्री के लिए धनकड की उपयोगिता ही समाप्त हो गई थी। धनखड में इतना नैतिक साहस नहीं है कि वे अपने इस्तीफे की असली वजह देश को बता सकें। वे भी देश की आम जनता और दूसरे लोगों की तरह सरकार से भयभीत हैंं। धनखड ने दुर्गति से बचने के लिए ही रणछोड बनना पसंद किया है, मेरी उनके प्रति पूरी सहानुभूति है।