भिण्ड, 19 जून। दंदरौआ सरकार 1008 महामण्डलेश्वर रामदास महाराज के सानिध्य में एवं सिद्धेश्वर सरकार मन्दिर के पीठाधीश्वर गोपालकृष्ण शास्त्री द्वारा आयोजित 31 कुण्डीय विशाल श्रीराम महायज्ञ का दबोह कस्बे में आयोजन किया जा रहा है।
हनुमंत कथा के चतुर्थ दिवस कथा व्यास हरिओम थापक महाराज (दंदरौआ धाम) ने कहा कि भगवान शंकर के एक अंश से, वायु के माध्यम से, कपिराज केसरी की पत्नी अंजना में हनुमान का जन्म हुआ। पवन कुमार जी भगवान श्रीराम की सेवा करने के लिए उनके अवतार में आए, क्योंकि भगवान शंकर अपने रूप से इस सेवा का आनंद नहीं ले सकते थे, इसलिए उन्होंने अपने 11वें रुद्र रूप को वानर के रूप में अवतरित किया। हनुमान जी का जन्म होते ही,वे उगते हुए सूर्य को एक लाल-लाल फल समझकर निगलने के लिए आकाश की ओर दौड पडे, उस दिन सूर्यग्रहण का समय था और राहु ने देखा कि कोई अन्य व्यक्ति सूर्य को पकडने की कोशिश कर रहा है, इस पर राहु ने उस आने वाले व्यक्ति को पकडने का प्रयास किया, लेकिन जब वायु पुत्र हनुमान उसके पास पहुंचे, तो राहु डर कर भाग गए, राहु ने इन्द्र से बुलाया जब वह ऐरावत पर आए, तो पवन कुमार ने उसको देखकर एक बडा सफेद फल समझकर उसको पकड लिया, इस पर देवराज घबरा गए और उन्होंने ऐरावत पर वज्र (वज्रायुद्ध) से हमला किया, वज्र से उनकी हनु पर चोट लगने से वह थोडी सी टेढी हो गई, इसके कारण उन्हें हनुमान कहा जाने लगा जब वज्र लगा, तो हनुमान जमीन पर गिर पडे, इसको देखकर वायु देव बहुत रोषित हो गए और उन्होंने अपनी गति बंद कर ली, इससे देवता भी बेहद चिंतित हो गए अंत में सभी लोकपालों ने हनुमान को अमरता और अग्नि-जल-वायु आदि से सुरक्षित रहने का वरदान दिया, जिससे वायु देव खुश हो गए। कथा व्यास ने कहा कि हनुमंत कथा मात्र श्रवण नहीं यह आत्मा को झकझोर कर जाग्रत करने वाला चेतना का पर्व है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हनुमान जी महाराज केवल शक्ति के प्रतीक नहीं हैं वो समर्पण, सेवा और पूर्ण विनम्रता की साक्षात प्रतिमा हैं और जब तक हम अपने भीतर के रावण को नहीं मारते है, तब तक राम को पा सकने की पात्रता नहीं आती।
कथा व्यास हरिओम थापक ने भीतर की यात्रा का महत्व बताते हुए कहा कि जो बाहर की दुनिया जीतना चाहता है उसे पहले अपने भीतर उतरना होगा, क्योंकि भीतर की शांति के बिना कोई भी विजय स्थाई नहीं होती। उन्होंने हनुमानजी महाराज के चरित्र का सार यह कहकर व्यक्त किया कि हनुमानजी की सबसे बडी विशेषता उनकी शक्ति नहीं थी, बल्कि वो शक्ति का समर्पण थी। उनकी भक्ति, सेवा और विनम्रता ही उन्हें अमरत्व प्रदान करती है। आत्मविजय की परिभाषा देते हुए कहा कि जो अपने क्रोध को जीत ले, अपनी वासना को पहचान कर त्याग दे और मोह व अहंकार के दलदल से बाहर निकल आए वही सच्चा विजेता है। तप नहीं कर सकते सेवा तो करो सेवा नहीं कर सकते त्याग में जियो और अगर वह भी कठिन लगे तो कम से कम अपने दोषों को ईमानदारी से स्वीकार तो करो यही आत्मविजय की शुरुआत है जैसे जनमानस के हृदय में स्थायी रूप से गूंज उठे। गुरुदेव ने पुन: चेताया कि हनुमंत कथा केवल स्मरण नहीं यह आत्मा को परमात्मा के निकट ले जाने वाली सीढी है, यह जीवन को देवत्व की ओर मोडने वाला पथ है। थापक जी ने प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन का सबसे कठिन युद्ध स्वयं की कमजोरियों से होता है और जो इस युद्ध को जीत लेता है, वही सच्चा भक्त है, वही सच्चा वीर है। हनुमंत कथा सुनकर पण्डाल पूरी तरह भक्तिमय हो गया।