लगातार गायब होते सिक्के और दुर्लभ होते नोट

– राकेश अचल


आज का विषय शुष्क जरूर है लेकिन है महत्वपूर्ण। आज हम भारत की उस मौद्रिक प्रणाली की बात कर रहे हैं जिसके चलते हमारे देश से तमाम नोट और सिक्के गायब हो रहे हैं। हम शायद ऐसी आखिरी पीढी के लोग होंगे जिन्होंने अपने देश की सबसे छोटी मुद्रा 1 पैसे के सिक्के या एक रुपए के नोट को बाजार में चलते हुए देखा था। धीरे-धीरे ये सिक्के और नोट चलन से बाहर हो गए। अब 2000 के नोट के बाद 2 रुपए का नोट भी दुर्लभ हो रहा है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा मुद्रा व्यवस्था में बडी बदलाव की गई है। आरबीआई ने 2, 5 और 2000 के नोटों की छपाई बंद कर दी है। इस बदलाव का मुख्य मकसद डिजिटल करेंसी को बढावा देना है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहले 2000 नोटों की छपाई बंद कर चुका है। अब 2 और 5 के नोटों की छपाई पर भी रोक लग जाएगी। अब ऐसे नोट आम लोगों के जेबों से भी गायब हो चुके हैं। इसका चलन लगभग बंद हो चुका है। सिर्फ नोट ही नहीं बल्कि सिक्कों के इस्तेमाल में भी कमी देखने को मिल रही है। छोटे लेन-देन के लिए ही लोग अब 2 या 5 के सिक्कों का इस्तेमाल करते हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बताया कि ऐसे नोटों के छपाई में ज्यादा खर्चा रहा था। हर साल इसके छपाई में लगभग 6372 करोड रुपए तक का खर्च आ जाता था। लेकिन इसका इस्तेमाल बेहद कम किया जाता था, यही वजह है कि ऐसे नोटों को बंद करने का फैसला लिया गया है। आरबीआई ने साफ किया है कि पुराने और गंदे नोटों का रीसायकल किया जाएगा। आज के समय में ऑनलाइन पेमेंट को बढावा दिया जा रहा है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने साफ कर दिया है कि कैशलेस लेनदेन को बढावा दिया जाएगा यही वजह है कि छोटे नोटों को अब बंद किया जा रहा है।
अभी कुछ समय पहले ही रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने 5 रुपए के पुराने सिक्के को बंद करने का फैसला लिया था। इसका मुख्य कारण था ऐसे सिक्कों को छापने में काफी ज्यादा खर्च आ रहा था। अब दो और 5 रुपए के नोटों को बंद करने का भी और आरबीआई ने फैसला किया है और जल्द ही ऐसे नोट मार्केट से पूरी तरह गायब हो जाएंगे।
मुझे याद है कि आज से आधी सदी पहले देश में 1, 2, 3, 5 और 25 पैसे के सिक्के इफरात में चलन में थे। सबसे छोटा नोट एक रुपए का था, जो चल तो अब भी रहा है लेकिन अब बेचारे की कोई हैसियत नहीं है और अब दो, पांच रुपए के नोटों के लजूद पर संकट मंडरा रहा है। नोटों और सिक्कों के प्रचलन से बाहर होने की वजह महंगाई है। नोट और सिक्के बनाने का बढता खर्च है। मजे की बात ये है कि हमारी मौद्रिक प्रणाली जस की तस है, लेकिन सिक्कों और नोटों का वजूद खतरे में है।
मैं उन लोगों में से हूं जिन लोगों ने अधन्नी, एकन्नी, दुअन्नी, चार पैसा, पांच पैसा, दस पैसा, बीस पैसा, चवन्नी (25 पैसे), अठन्नी (50 पैसे) के सिक्के देखे और इस्तेमाल किए हैं। ये सिक्के धीरे-धीरे बंद किए गए, क्योंकि उनकी खरीद शक्ति कम हो गई थी और उत्पादन लागत अधिक थी। उदाहरण के लिए 25 पैसे और उससे कम मूल्य के सिक्के 30 जून 2011 से वैध मुद्रा के रूप में बंद हो गए। एक रुपए, दो रुपए और पांच रुपए के नोट भी धीरे-धीरे सर्कुलेशन से हटा लिए गए, क्योंकि सिक्कों ने इनकी जगह ले ली। एक रुपए का नोट 1994 में बंद हुआ और दो रुपए व पांच रुपए के नोट भी 1990 के दशक में धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गए।
मैंने अपने घर में 1,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट देखे हैं। ये नोट देश आजाद होने के पहले से चलन में थे। इन्हें कुछ समय के लिए बंद किया गया लेकिन 1954 में फिर से शुरू कर दिया गया। साथ ही 5,000 रुपए का नोट भी छापा गया। लेकिन ये सभी नोट 1978 में फिर से बंद हो गए। एक लंबे अरसे के बाद 2005 में नोटों का विमुद्रीकरण फिर हुआ। 2005 से पहले के 500 रुपए के नोटों को मनमोहन सिंह सरकार ने बंद किया था। भारत में नोटबंदी की प्रमुख घटनाएं 1946, 1978, और 2016 में हुईं, जिनमें उच्च मूल्यवर्ग के नोट (500, 1,000, 5,000, 10,000 रुपए) बंद किए गए। 2023 में 2,000 रुपए के नोट को सर्कुलेशन से हटाया गया, लेकिन यह पूर्ण नोटबंदी नहीं थी। सिक्कों में छोटे मूल्यवर्ग (जैसे 25 पैसे, 50 पैसे) और कुछ छोटे नोट (1, 2, 5 रुपए) भी समय के साथ बंद हो गए। इन फैसलों के खिलाफ देश में कभी कोई आंदोलन नहीं हुआ, क्योंकि कभी किसी ने मुद्रा को देश की अस्मिता से नहीं जोडा।
मैंने दुनिया के अनेक देशों मेंज भी छोटे सक्के और नोट प्रचलन में देखे हैं, खासतौर पर इंग्लैंड और अमेरिका में। दुनिया के तमाम देश आज भी अपनी मुद्रा का भरपूर सम्मान करते हैं, एक भारत देश है जहां आपको एक रुपया या पचास पैसे के सिक्के के बदले में चाकलेट, माचिस या च्विंगम थमाई जा सकती है और आप कुछ नहीं कर सकते। विदेशों में आप छोटे सिक्कों को भी वही सम्मान मिलते देख सकते हैं जो किसी बडे नोट को मिलता है। विदेशो में छोटे सिक्कों को आप रुपए में बदल सकते हैं। इसके लिए टेलरिंग मशीनें लगी हैं। वहां लागत की बिनना पर किसी सिक्के या नोट का गला नहीं घोंटा गया। लेकिन भारत में किसी मंच पर इस समस्या पर विमर्श नहीं होता। संसद में भी नहीं। सवाल ये है जब आप प्लास्टिक मुद्रा से पैसे और सिक्के नहीं हटा रहे तो आभासी दुनिया से उन्हें विदा क्यों किया जा रहा है। लागत की आड में सिक्के ही नहीं हमारे पोस्टकार्ड, अंतर्देशी लिफाफे भी गायब हो गए। आने वाले दिनों में पता नहीं है कि लागत बढने के नाम पर और क्या क्या बंद हो सकता है।