कांवड यात्रा का इतना विद्रुप चेहरा!

– राकेश अचल


भक्ति और आस्था में सराबोर कांवड यात्रा शुरू तो हो गई है लेकिन इस बार ये यात्रा और यात्री पहले से ज्यादा उग्र तथा अराजक हैं। दिल्ली से हरिद्वार जाने वाले इन भक्तों में कुछ एक बार फिर हिंसा और उपद्रव के जरिए इस धार्मिक यात्रा को हिन्दू उग्रवाद की पहचान देने की कोशिश कर रहे हैं। पूरे कांवड पथ पर कांवडियों द्वारा हिंसा, उपद्रव और मारपीट की घटनाएं चर्चा में हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कांवडिये मासूम लगते हैं, उनकी नजर में उपद्रवी कोई दूसरे लोग हैं, दूसरे लोगों से उनका आशय आप समझ सकते हैं। कांवड यात्रा को एक राजकीय आयोजन बनाने वालों को नजर नहीं आता कि उपद्रवी कोई कांग्रेसी, सपाई या बसपाई नहीं बल्कि वे संगठन हैं जो हिन्दुत्व के ठेकेदार बन बैठे हैं। जिन्होंने कांवड पथ पर एक अलग हंगामा खडा कर दिया है। कांवडियों के रास्ते में पडने वाले ढाबों और ठेलों पर लगी नेम प्लेट और उनके मालिकों की धार्मिक पहचान उजागर करने को लेकर विवाद पैदा किया जा रहा है। घटना 28 जून की है जब मुजफ्फरनगर के ‘पंडित जी’ ढाबे पर कथित तौर पर एक कर्मचारी की पैंट उतरवाकर धर्म जानने की कोशिश की गई। वहीं 8 जुलाई को मुजफ्फरनगर के ही बाबा बालकनाथ ढाबे पर कावडियों ने तोडफोड की। बाबा बालकनाथ ढाबे में एक कांवडिये के खाने में गलती से प्याज का टुकडा निकल आया था, जिसके बाद आक्रोशित कांवडियों ने ढाबे में पडी कुर्सिया, मेज, फ्रिज, पंखे और ग्लास पैनल इत्यादि तोड डाले। ढाबा संचालक साधना देवी ने बताया कि तोडफोड के दौरान हमलावर बोल रहे थे कि ‘यह मुसलमानों का ढाबा है जिसे हिन्दू नाम से चलाया जा रहा है’ नशे में धुत कावडियों ने ढाबे में बर्तन धोने वाले 40 वर्षीय पिंटू का हॉकी से पीट-पीट कर पैर तोड दिया।
पागलपन का आलम ये है कि मुजफ्फरनगर में ही बाबा स्वामी यशवीर महाराज अपने समर्थकों के साथ दुकानों के क्यूआर कोड चेक कर रहे हैं। ऐसा करके वह दुकान मालिकों के धर्म का पता लगा रहे हैं। यशवीर महाराज ने मुजफ्फरनगर से लेकर गाजियाबाद तक कांवड पथ पर हिन्दू दुकानदारों को भगवान वराह का एक चित्र और झण्डा वितरित किया है। उन्होंने कहा है कि दुकानदार इसे अपनी दुकान पर लगाएं, ताकि हिन्दू दुकानों की पहचान स्पष्ट हो सके। 50 वर्षिय स्वामी यशवीर महाराज पहली बार में 2015 में चर्चा में आए, जब उन्होंने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की और उत्तर प्रदेश सरकार ने उन पर रासुका लगा दिया था। गत वर्ष भी कांवड यात्रा के दौरान उन्होंने ढाबों पर नेम प्लेट लगाने को लेकर काफी विवाद किया था। कांवड यात्रा के मद्देनजर मेरठ में भी मुसलमानों द्वारा संचालित नॉन वेज ढाबे पूरी तरह से बंद करा दिए गए हैं।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर रेलवे स्टेशन पर कुछ कांवडियों ने एक वर्दीधारी सीआरपीएफ जवान की बेरहमी से पिटाई कर दी। जिस जवान को पीटा गया, वह मिर्जापुर से मणिपुर जाने के लिए ब्रह्मपुत्र एक्सप्रेस ट्रेन पकडने स्टेशन पहुंचा था। उसी समय कांवडियों के एक समूह से किसी बात पर बहस हो गई, जो देखते ही देखते मारपीट में बदल गई। घटना के दौरान स्टेशन पर मौजूद लोगों ने इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया, लेकिन अफसोस की बात यह रही कि किसी ने जवान को बचाने या बीच-बचाव की कोशिश नहीं की।
दूसरी तरफ कांवड यात्रा में तोडफोड और उपद्रव करने वालों के योगी सरकार पोस्टर चस्पा करने जा रही है। कांवड यात्रा संपन्न के बाद उनके खिलाफ सख्त एक्शन होगा। ये बातें खुद सीएम योगी ने कांवडियों पर पुष्पवर्षा के बाद हुई प्रेस ब्रीफिंग में कही। सीएम योगी इन घटनाओं को लेकर बेहद तल्ख तेवरों में नजर आए और बोले कि सबके सीसीटीवी हैं, जिन्होंने कांवड यात्रा को बदनाम करने का प्रयास किया है। जो भी उपद्रवियों के भेष में छिपे हैं बेनकाब होंगे।
सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश सरकार कांवडियों पर इतनी मेहरबान क्यों है? क्या सरकार को ये अहसास नहीं है कि कांवड यात्रा के दौरान हो रहे उत्पात की वारदातों से न केवल यूपी की बल्कि पूरे देश की छवि खराब हो रही है? दुर्भाग्य ये है कि यपी के मुख्यमंत्री इन वारदातों को रोकने के बजाय न सिर्फ पर्दा डाल रहे हैं बल्कि उपद्रवियों को निर्दोष होने का तमगा भी बांट रहे हैं। योगी भूल गए हैं कि वे किसी हिन्दू राष्ट्र के अधिपति नहीं हैं, वे एक ऐसे राज्य के मुख्यमंत्री हैं जो बहुभाषी, बहु धर्मी राज्य है। मेरी गर्भनाल उत्तर प्रदेश में है, मैं अपने उत्तर प्रदेश को मोदी के पैदा होने के बारह साल पहले से देख रहा हूं। आज का उत्तर प्रदेश पहले वाला उत्तर प्रदेश नहीं है। भाजपा और योगी ने इसे अनुत्तरदायी प्रदेश बना दिया है। कांवड यात्रा के शुभचिंतक एक बार खुद कांवड लेकर चलें तो उन्हें हकीकत का पता चले।