– एसडीएम भितरवार ने ली कृषि विभाग की बैठक, जारी किए आवश्यक दिशा निर्देश
ग्वालियर, 07 अप्रैल। ग्रीष्मकालीन धान की जगह किसान मूंग, तिल सन, ढैंचा उगाएं। क्योंकि हरसी बांध में पानी कम हैं। ऐसे में ग्रीष्मकालीन धान के लिए पानी मिलना मुश्किल होगा। किसानों को ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलें जैसे मूंग, तिल व ढैंचा उगाने की सलाह दें। इन फसलों से खेत की मृदा (मिट्टी) का उर्वरा संतुलन बना रहता है। साथ ही ये फसलें कम पानी, कम समय और कम मेहनत में अच्छा व लाभदायक उत्पादन देती हैं। यह बात एसडीएम डीएन सिंह ने आयोजित कृषि विभाग की बैठक में कही।
सोमवार को एसडीएम कार्यालय में उत्पादन को लेकर आयोजित हुई समीक्षा बैठक में एसडीएम डीएन सिंह ने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्यधिक जरूरत पडती है। मौजूदा वर्ष में हरसी जलाशय में पानी की उपलब्धता कम है और इस वजह से क्षेत्र का जल स्तर भी नीचे है। ग्रीष्मकालीन धान व उसके बाद खरीफ में धान की फसल लगाने से पोषक तत्वों का अत्यंत दोहन हो जाता है और मृदा की उर्वरता अर्थात उत्पादन क्षमता बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। साथ ही ग्रीष्मकालीन धान में पेस्टीसाइड एवं दवाइयों के अधिक उपयोग से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। ऐसी स्थिति को देखते ग्रीष्मकाल में धान की बजाय मूंग उगाने से खरीफ के सीजन में समय से धान लगाई जा सकती है। जाहिर है कि खरीफ की धान की समय से कटाई हो जाती है और गेहूं की बुवाई कर अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। इससे फसल चक्र के सिद्धांत का भी पालन हो जाता है। जो खेत की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए अत्यंत जरूरी है। किसान ग्रीष्मकाल में मूंग के अलावा तिल की फसल भी उगा सकते हैं। साथ ही खरीफ में जिस रकबे में धान प्रस्तावित है, उसमें हरी खाद प्राप्त करने के लिये सन या ढेंचा उगा सकते हैं। इसके खेतों में पडने पर मृदा की उर्वरता उच्च स्तर पर पहुंच जाती है। इसलिए ब्लॉक के सभी किसानों से मौजूदा वर्ष में गर्मी की धान न लगाने और उसके स्थान पर मूंग, तिल अथवा सन या ढेंचा लगाकर अधिक उत्पादन प्राप्त करने और पर्यावरण व मृदा संरक्षण में सहयोग देने की अपील करें। एसडीएम कार्यालय में बैठक के दौरान वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी गौरव दीक्षित सहित कृषि विभाग एवं अन्य विभागों के अधिकारी कर्मचारी भी उपस्थित थे।