भिण्ड, 03 फरवरी। निराला रंग विहार मेला परिसर में चल रहे पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में तीर्थंकर बालक का हुआ नामकरण का आयोजन नाट्य मंचन के माध्यम से दिखाया गया जिसमे बालक का नाम दो मुनिराज स्वर्ग से आते हैं और नामकरण करते है। बालक का नाम बर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर, महावीर रखा गया।
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में तीर्थंकर बालक को बैराग्य एवं दीक्षा कार्यक्रम का नाट्य मंचन किया गया। इस अवसर पर आचार्य सुबल सागर महाराज ने कहा कि समय निकल जाता है लोग घडी देखते रहते है तब भी घडी नहीं दिख पाती है। वह घडी आवाज करती रहती है, तब भी घडी की आवाज सुनाई नहीं देती है। कितना समय बीत गया बीत जाएगा, आज तक हमें समझ में नहीं आया। वही व्यवस्थायों में पूरा जीवन निकल जाता है तब भी व्यवस्थाएं पूरी नही होती हैं। कितने बडे चक्रवति राजा आए तब भी पूरी नहीं कर पाए। चिंतन करो ये जो पर्याय मिली है किसलिए, हर पर्याय में यही तो करते आ रहे हैं, यही मोह की दशा संसार में डुबो लेती है।
इस अवसर पर मेडिटेशन गुरु उपाध्याय विहसंत सागर महाराज ने कहा कि तीर्थंकर वीर प्रभु दीक्षा के लिए निकल पडे हैं। आज तक राग की चीज पर रुके थे, आज तन पर कपडे हैं ना लफडा है। आज से ना तो घर का पानी पिएंगे, अपने जीवन में जो कर्म बचे हैं वह मुनि बनकर के जीवन जिएंगे। उन्होंने कहा कि इस अनुमोदन मात्र से जो मुनि आए थे, वह भी तर गए तीर्थंकर का कोई गुरु नहीं होता है। पंचम काल में बिना गुरु के दीक्षा नहीं होती है, जैसे ही दीक्षा हो जाती है अपने हाथों से वह केश लोचन करते हैं और दीक्षा के बाद से मोन उपवास ले लिया। तीन दिन के उपवास के बाद आहार लिया था, जो केवल ज्ञान के बाद 66 दिन नहीं बोले, जिस दिन गौतम स्वामी 1500 ब्राह्मण के साथ आए तभी महावीर स्वामी बोल पडे थे।