अनुच्छेद 370 पर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा

– राकेश अचल


भारतीय राजनीति में जडता टूटने का नाम ही नहीं ले रही। सभी प्रमुख दलों का सुर एक जैसा है, यानि ‘मेरा टेसू यहीं अडा’। बात महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा चुनावों की नहीं बल्कि उस जम्मू-कश्मीर विधानसभा की है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 370 की वापसी के लिए रखे गए प्रस्ताव पर मुंहवाद ही नहीं हुआ, बल्कि लात-घूंसे भी चले। जम्मू-काश्मीर से मीलों दूर महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने समवेत स्वर में कहा कि मोदी के रहते इस प्रावधान की वापसी कभी नहीं होगी। हालांकि महाराष्ट्र और झारखण्ड के विधानसभा चुनावों का अनुच्छेद 370 से कोई लेना-देना नहीं है।
अनुच्छेद 370 को हटाने की पैरवी करते हुए प्रधानमंत्री और उनका कटक (फौज) एक ही तर्क दे रहा है कि जम्मू-काश्मीर में बाबा साहब अम्बेडकर का संविधान लागू है और वो ही रहेगा। अब सवाल ये है कि क्या संविधान का अनुच्छेद 370 का प्रावधान अमेरिका के संविधान से लिया गया था? ये प्रवधान सौ फीसदी उसी संविधान का हिस्सा था जो बाबा साहब अम्बेडकर की अगुवाई में रचा गया था। हमारा संविधान लचीला है, उसे देशकाल के हिसाब से बदला जाता रहा है। कांग्रेस के समय भी और भाजपा के समय भी, इसलिए कोई ये दम्भ और दावा कैसे कर सकता है कि जम्मू-काश्मीर को दोबारा अनुच्छेद 370 का संरक्षण नहीं मिल पाएगा।
आज का जम्मू-काश्मीर, कल के जम्मू काश्मीर से एकदम अलग है। आज के कश्मीर के पास राज्य का वैभव नहीं है। ये वैभव उसे आजादी के बाद बाबा साहब के संविधान से ही हांसिल हुआ था। आज वो खण्ड-खण्ड हो चुका है। केन्द्र के अधीन क्षेत्र भर है आज का जम्मू-काश्मीर। उसे उसका राज्य का दर्जा भी वापस चाहिए और संविधान के अनुच्छेद 370 का संरक्षण भी। अब ये कब और कैसे होगा? होगा भी या नहीं होगा? ये कहना कठिन है। भाजपा ने जम्मू-काश्मीर विधानसभा में और देश के दूसरे हिस्सों में जिस तरह से अनुच्छेद 370 को लेकर प्रतिक्रिया दी है, उसे देखकर ये तो तय है कि जम्मू-काश्मीर की जनता के साथ केन्द्र में सत्तारूढ भाजपा कि सरकार ने वादा खिलाफी की है। जम्मू-काश्मीर के लोगों को इस सरकार के रहते न राज्य का वैभव वापस मिलेगा और न अनुच्छेद 370 का छाता।
संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके हनुमान केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह बोलें तो समझ में भी आता है, लेकिन जब बाबा योगी आदित्यनाथ बोलते हैं तो हंसी आती है। वे आज कल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा का नया ‘माउथपीस’ बने हुए है। वे ‘बटोगे तो कटोगे’ का नारा देने के बाद अब कहते फिर रहे हैं कि देश में अब कांग्रेस का हाल भी संविधान के अनुच्छेद 370 जैसा होगा, यानि कांग्रेस भविष्य में कभी केन्द्र कि सत्ता में नहीं लौटेगी। योगी बाबा के नारे को लेकर भाजपा गठबंधन में फूटे विरोध के स्वर देखते ही प्रधानमंत्री मोदी ने इस नारे को नया मुखौटा लगाने की चतुराई दिखाई है। उनका नया नारा है कि ‘एक रहोगे तो सेफ रहोगे’ ये हिन्दी और अंग्रेजी का खिचडी नारा है। इस नारे से न मराठी मानुष प्रभावित होने वाला है और न झारखण्ड का आदिवासी समाज।
एक सामान्य पत्रकार होने के नाते मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी की वॉडी लेंग्वेज देखकर ये बात दावे के साथ कह सकता हूं कि दस साल केन्द्र की सत्ता में रहने के बाद भी मोदी जी के स्वभाव में कोई तब्दीली नहीं आई है। वे नारा अवश्य ‘सबका साथ, सबका विकास’ का लगा रहे हैं, लेकिन हकीकत ये है कि वे इस देश के अल्पसंख्यकों को न एक रहने देंगे और न सेफ। उन्हें बहुसंख्यक हिन्दुओं को एक रखने और सेफ रखने की सनक सवार है। ये सनक भी है और इसे उनका दृढसंकल्प भी कहा जा सकता है। आरएसएस का एजेंडा भी कहा जा सकता है। इसे आप जो चाहे सो कह सकते हैं। संभवत: वे राजनीति में अवतरित ही इसी के लिए हुए हैं।
मुझे अनुच्छेद 370 वापस लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। मेरी चिंता जम्मू-काश्मीर की जनता के साथ हो रहे दुराव को लेकर है। इस समय देश में लोकतंत्र के जितने भी स्तंभ हैं उनमें से अधिकांश मोदी जी के सुर में सुर मिला रहे हैं या उनके प्रत्यक्ष और परोक्ष इशारों पर नर्तन कर रहे हैं। किसी एक विश्व विद्यालय के अलप संख्यक या बहुसंख्यक दर्जे का सवाल नहीं है, सवाल ये है कि आने वाले दिनों में क्या अल्पसंख्यकों को इतना दबाया जाएगा कि वे या तो बहुसंख्यक समाज के दास बन जाएं या फिर देश छोडकर भाग जाएं, लेकिन ये दोनों ही सपने पूरे होने वाले नहीं है।
अगर आप कान लगाकर सुनें तो आपको मोदी जी के सुर में वही तारत्व सुनाई देगा, जो इजराइल के प्रधान नेतन याहू के या रूस के राष्ट्रपति पुतिन के या अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सुरों में शामिल है। एक अलग तरह का राष्ट्रवाद दुनिया के तमाम देशों में ठाठें मार रहा है। ऐसा दुनिया में पहले भी हुआ है, आज भी हो रहा है और शायद कल भी होगा, लेकिन इस राष्ट्रवाद की उम्र बहुत छोटी होती है। दुनिया में वही राष्ट्रवाद कामयाब है जहां सचमुच सभी जातियों, धर्मों और वर्णों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। भारत जिस बीमारी से 1947 में बचकर निकल गया था आज वही बीमारी तेजी से फैल रही है। बांटने और काटने की बात आजादी के पहले सुनाई दी थी और आज आजादी के 77 साल बाद एक बार फिर से सुनाई दे रही है।
इस देश की किस्मत में क्या लिखा है ये कहना बहुत कठिन है। उस देश ने बहुत से बुरे दिन देखे हैं। 1947 से पहले भी और 2014 के बाद भी। जबकि 2014 में नारा ‘अच्छे दिन आएंगे’ का दिया गया था। नारा केवल नारा ही साबित हुआ। नारा अमल में नहीं आ पाया। इसके लिए देश की जनता जिम्मेदार है या नेता, ये कोई अदालत तय नहीं कर सकती। हमारे पास तो अदालतें आज कल आधे-अधूरे फैसले देने के लिए लोकप्रिय हैं, फैसले टालने के लिए चर्चित है। नेताओं के साथ आरतियां उतरने के लिए सुर्खियों में है। अब जो होगा सो 23 नवंबर के बाद देखा जाएगा, जब विधानसभा चुनावों/ उपचुनावों के परिणाम सामने आएंगे। देखा जाएगा 25 नवंबर को जब देश की संसद एक बार फिर बैठेगी।
अनुच्छेद 370 को लेकर दोबारा से शुरू हुई यलगार थमने वाली नहीं है। थम भी नहीं सकती, क्योंकि दोनों ही पक्ष झुकने को राजी नहीं है। याद रहे कि अनुच्छेद 370 व्यवहार में तो हटाया जा चुका है किन्तु जम्मू-कश्मीर की जनता के दिलों से इसे हटाना आसान काम नहीं है। यदि होता तो विधानसभा चुनाव के बाद्घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस या इंडया गठबंधन की नहीं भाजपा गठबंधन एनडीए की सरकार होती। खण्डित सूबे की जनता ने महाप्रभु मोदी का सपना खण्डित कर एक और अपराध कर दिया है।