– राकेश अचल
कोई दोषी नहीं, कोई जिम्मेदार नहीं। भारत की संसद की किस्मत ही खराब है जो उसे अपने एक चौथाई सदस्यों को निलंबित कर अपना कामकाज चलाना पड रहा है। चूंकि ये सब पहले भी हो चुका है, इसलिए मौजूदा संसद के पीठाधीश्वर के ऊपर आप कोई आरोप नहीं लगा सकते, ज्यादा से ज्यादा इतना कह सकते हैं कि इस बार संसद पहले से ज्यादा बधिर और असहिष्णु है। लोकतंत्र के लिए ये अच्छे लक्षण नहीं हैं। वर्ष 2023 संसदीय इतिहास में एक कुटिल व्यवहार के लिए सदा याद किया जाएगा।
संसद के प्रति मेरे मन में अपार आस्था है, और हर भारतीय के मन में होना चाहिए, क्योंकि ये संसद ही है जिसे हम न सिर्फ लोकतंत्र का मन्दिर मानते हैं, बल्कि हमारा यकीन है कि इसी मन्दिर में की गई प्रार्थनाओं से हम भारतीयों की तमाम कामनाएं पूरी होती हैं। दुर्भाग्य से यही संसद पहले बहरी हुई और अब निर्मम तथा असहिष्णु भी हो गई। मौजूदा संसद अब तक अपने 100 सदस्यों के विरुद्ध निलंबन और निष्कासन की कार्रवाई कर चुकी है। राज्यसभा के 45 और लोकसभा के 33 सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा चुका है।
देश की संसद कोई प्राइमरी की कक्षा नहीं है, लेकिन उसे प्राइमरी की कक्षा बना दिया गया है। संसद की कार्रवाई का संचालन करने वाले पीठाधीश्वर अब ईश्वर से भी ऊपर हो गए हैं। उनके मन में दया-धर्म बचा ही नहीं है। वे संसद में प्रतिरोध के लिए रत्ती भर गुंजाइश नहीं देना चाहते। सांसद में पहले भी हंगामे होते थे, लेकिन सदन चलने वाले अंत तक हार नहीं मानते थे, उस समय संसद की कार्रवाई भी तब स्थगित की जाती थी जब तक पानी सर के ऊपर न हो जाए, लेकिन आज-कल तो संसद शुरू होते ही स्थगित हो जाती है। सांसदों को डाटने-फटकारने, मार्शल बुलाने का कोई मौका ही इस्तेमाल नहीं किया जाता। पल भर में सांसदों के नामों की एक फेहरिस्त आती है और सभी को निलंबित करने का ऐलान कर दिया जाता है।
संसद द्वारा की जा रही इस निर्मम कार्रवाई के बारे में टीका-टिप्पणी करने पर आपको अतीत की याद दिलाई जाएगी कि राजीव गांधी के काल में भी 63 सांसदों को निलंबित किया गया था! यानि जो राजीव गांधी के शासनकाल में हुआ वो ही सब मोदी के शासनकाल में होना चाहिए, अन्यथा सत्तारूढ दल की नाक कट जाएगी! ये तर्क-कुतर्क करने वाले नहीं जानते कि राजीव गांधी के शासनकाल में सांसदों को मात्र एक सप्ताह के लिए निलंबित किया गया था, लेकिन इस बार ऐसी स्थिति नहीं है। इस बार लोकसभा से जिन सांसदों को निलंबित किया गया है, उनमें से 30 संसद के पूरे शीतकालीन सत्र तक निलंबित रहेंगे। बांकी तीन- के. जयकुमार, विजय वसंत और अब्दुल खालिक को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित किया गया है। इन तीनों पर स्पीकर के पोडियम पर चढकर नारेबाजी करने का आरोप है। इसी तरह, राज्यसभा से जिन 45 सांसदों को सस्पेंड किया गया है, उनमें से 34 को पूरे सत्र और 11 को विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट आने तक निलंबित किया गया है।
सांसदों के खिलाफ कार्रवाई करना पीठाधीश्वरों का विशेषाधिकार है, उसे लेकर कोई उन्हें चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन जनता के पास ये अधिकार है कि वो अपने चुने हुए सांसदों के खिलाफ की गई कार्रवाई पर अपना असंतोष जाहिर करें। दरअसल इस समय संसद को ध्वनिमत से चलने की कोशिश की जा रही है। सांसद में बहस-मुबाहिसे के लिए, प्रतिरोध के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। जो बोलेगा उसे निलंबित कर दिया जाएगा, उसकी सदस्यता येन-केन रद्द कर दी जाएग। फिर खूब खटखटाते रहिए अदालतों के दरवाजे। ये सब प्रतिपक्ष के सांसदों के साथ हो रहा है। किसी सदन में सत्ता पक्ष के किसी एक संसद को निलंबित किया गया? पीठाधीश्वर अपने-अपने सदन के संरक्षक और मुखिया होते हैं। और वे भूल गए हैं कि मुखिया-मुख जैसा होता है, यानि खान-पान में एक। देश को रामराज की और ले जाने वाले लोग भूल गए कि ‘मुखिआ मुखु सो चाहिए खान पान कहु एक। पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक’।।
संसद में आज-कल का परिदृश्य देखकर कोई भी सदन के संरक्षकों के विवेक पर सवाल खडे कर सकता है। पिछले दिनों इसी संसद में चार युवाओं ने तानाशाही, बेरोजगारी और उत्पीडन के खिलाफ प्रदर्शन करने कि लिए अपने प्राण दांव पर लगा दिए। यदि यही काम सदन के सदस्यों को करने दिया जाता तो कोई बाहरी व्यक्ति सदन में अनाधिकार प्रवेश कर सदन की गरिमा से खिलवाड करता? लेकिन इस विरोध प्रदर्शन को सदन की गरिमा और सुरक्षा से न जोडकर साजिशों से जोडा जा रहा है। प्रदर्शनकारियों के मुद्दों पर सदन में और सदन के बाहर बात करने कि लिए कोई तैयार नहीं है। सांसदों को निलंबित करना सदन के संचालकों का विशेषाधिकार है, इसलिए कोई भी इसे चुनौती नहीं दे सकता। सांसदों का निलंबन पहली बार नहीं हुआ है। लेकिन सांसदों के साथ लगातार निलंबन को औजार बनाया जाना चिंताजनक है। पहली बार नहीं है जब इतनी बडी संख्या में सांसदों को निलंबित किया गया है। आंकडे देखें तो पिछले 10 साल में लोकसभा और राज्यसभा के 154 सांसद निलंबित हो चुके हैं। इसमें उन सांसदों के नाम भी शामिल हैं, जिन्हें एक से ज्यादा बार निलंबित किया गया था। गोदे मुरहारी और राजनारायण उन सांसदों में से हैं जिन्हें उनके आचरण कि लिए पूरे सत्र में निलंबित रखा गया था। लेकिन अब ये अतीत भी बहुत पुराना हो गया है, इसकी यादें धूमिल पड चुकी हैं।
आपको याद होगा कि संसद की सुरक्षा में चूक के मामले को लेकर विपक्ष लगातार केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान की मांग पर अडा हुआ है। ऐसे में सदन में हंगामे के कारण विपक्षी दल के सांसदों के खिलाफ कदम उठाया गया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सदन में इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं दे रहे, जबकि सदन के बाहर वे सब कुछ कह रहे हैं। इन दोनों का आचरण संसद की गरिमा और विशेषाधिकार के खिलाफ नहीं माना जाता। सामूहिक निलंबन के बाद विपक्ष को दोहरा झटका लगा है। एक तो उनके सांसद सदन की कार्रवाई में शामिल नहीं हो पाएंगे, इसके अलावा लोकसभा में इंडिया गठबंधन की ताकत 50 फीसदी तो राज्यसभा में 33 फीसदी कम हो जाएगी। और यही सत्तारूढ दल का असल मकसद है। कल्पना कीजिए कि यदि 303 सीटें हासिल करने वाली पार्टी का अभी ये हाल है और यदि खुदा न खास्ता इसी दल को 400 सीटें मिल जाएं तो संसद का क्या हाल होगा? बहुमत का इतना दुरुपयोग तो राजीव गांधी ने भी नहीं किया था, जबकि उनके दल को उस समय 404 सीटें मिली थीं।
अगले कुछ महीनों में शायद फरवरी में ही देश में लोकसभा के नए चुनाव होना हैं, इसलिए ये मौका है कि देश की जनता उसे चुने जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ न हो, जो असहिष्णु न हो, जो संसद को बहरा न बनाए। मर्जी है आपकी, क्योंकि वोट है आपका। हम तो ‘वाच डॉग’ भर हैं। सावधन करना ‘जागते रहो’ की आवाज लगना हमारा काम है, सो हम कर रहे हैं।