पालतू पशुओं का आवास प्रबंधन

– डॉ. दीपांका


पशु पालक प्राय: पशु पोषण, चिकित्सा एवं प्रजनन पर तो ध्यान देते हैं, लेकिन आवास व्यवस्था को नजरअंदाज कर देते हैं। उचित आवास न होने से पशुओं के उत्पादन एवं वृद्धि पर कुप्रभाव पडता है तथा संक्रामक बीमारियों का प्रकोप बढ जाता है। अधिक गर्मी एवं सर्दी में पशु अपनी ऊर्जा का प्रयोग वातावरण से जूझने में करता है, जिससे उसकी वृद्धि दर एवं उत्पादकता दोनों प्रभावित होती है। उचित आवास हेतु निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।
हमारे यहां पशुओं को प्राय: बांध कर पाला जाता है और कुछ समय के लिए सुविधानुसार चराने के लिए खोला जाता है, अत: पशु गृह को ऊंचे स्थान पर बनाना चाहिए, जहां जल निकास की समुचित व्यवस्था हो। छत की ऊंर्चा 2.5 मीटर से कम नहीं रखनी चाहिए, जिससे ग्रीष्मकाल में छह की गर्मी पशुओं को प्रभावित न कर सके। याद रखें यदि पशु शाला का तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेट से ऊपर चला जाता है तो पशु मद में नहीं आएगा। इसलिए अधिक गर्मी के मौसम में पशु शाला की छत अगर पक्की हो तो उसके ऊपर घास-फूस, पराली आदि डालकर पानी का छिडकाव कर सकते हैं। छत किसी भी सस्ते तथा स्थानीय सामग्री से बनाई जा सकती है, जिसक उद्देश्य पशु के आस-पास का तापमान 25 से 32 डिग्री सेंटीग्रेट बनाए रखना है। इसके लिए दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊंचे छायादार वृद्ध लगाए जा सकते हैं। पशु गृह की लंबाई उत्तर-दक्षिण में रखना चाहिए, जिससे पुरवा तथा पछुवा दोनों हवाओं का लाभ गर्मियों में मिल सके। सर्दी के मौसम में कुछ को छोडकर अतिरिक्त खिडकियों एवं दरवाजों को बंद कर देना चाहिए, जिससे पशुओं को सीधी सर्द हवा से बचाया जा सके। फर्श कठोर, फिसलन रहित तथा पानी न सोखने वाला होना चाहिए। सर्दी में फर्श पर धान की पुआल बिछाना चाहिए, जिससे फर्श की ठण्डक पशु को नुकसान न पहुंचा सके।
कुछ लोग गर्मियों में रात में पशुओं को बाहर तथा दिन में वृक्ष की छाया अथवा घर में जहां वहा का आवागमन ठीक हो वहां रख सकते हैं, यह भी एक आरामदेय, सरल एवं सही तरीका है। पशु गृह में लगभग 2.50-4.0 वर्ग मीटर तथा सात-आठ वर्ग मीटर खुले स्थान की आवश्यकता प्रति वयस्क गाय या भैंस को होती है। बढते जानवरों को आवश्यकतानुसार इसका आधा अथवा दो तिहारी जगह चाहिए। जो पशु दिन में चरने जाते हैं, उन्हें यह खुला स्थान आवश्यक नहीं है। नांद की लंबाई लगभग 90 सेमी, चौड़ाई 50 सेमी तथा गहराई 30-40 सेमी रखनी चाहिए। जमीन से नांद की ऊंचाई 80 से 85 सेमी होनी चाहिए। खडे होने के स्थान के पीछे 35 सेमी चौडी एक नाली होनी चाहिए। फर्श तथा नाली का ढाल 2.5 सेमी रखना चाहिए। पानी कहीं रुकना नहीं चाहिए, साथ ही साथ गोबर एवं मूत्र का निकास भी आसानी से होना चाहिए। पशु के रहने के स्थान की सफाई का ध्यान देना बहुत ही आवश्यक है, पशु शाला आरामदेय हो, साफ हो और रोशनी का बंदोबस्त हो। समस्त पशु आवास को समय-समय पर जीवाणु रहित करते रहना चाहिए, जिससे बीमारी फैलाने वाले जीवाणु घर न बना सकें।
पशुओं को नहलाने की अलग से व्यवस्था होनी चाहिए, पशुओं को नित्य नहलाना व खरेरा करने से रक्त संचार में वृद्धि एवं शरीर से धूल, टूटे बाल और त्वचा से निकले मल की सफाई होती है। साथ ही त्वचा से जूं व अन्य परजीवियों को हटाया जा सकता है। दुधारू पशुओं को ग्रीष्मकाल में दो बार (सुबह-शाम) स्नान कराने से दुग्ध उत्पादन में पांच प्रतिशत की वृद्धि हो जीत है। बीमार एवं संक्रमित पशुओं को अलग रखने की व्यवस्था करनी चाहिए। अन्य तरह के पशु पालन जैसे- मुर्गी, भेड-बकरी, सूकर इत्यादि पशु गृह से दूर होना चाहिए।