मालिक के इशारों पर नाचता केंचुआ

– राकेश अचल


केंचुआ की दशा देखकर कभी हंसी आती है तो कभी रोना। बेचारा केंचुआ (जिसे मैं सम्मान से भूमिनाग कहता हूं) लोक लाज की फिक्र किए बिना अपने मालिक के इशारों पर नर्तन कर रहा है। केंचुआ का असल मालिक संविधान है, लेकिन उसे ऐसा नहीं लगता। केंचुआ संविधान को नहीं, बल्कि दिल्ली की कुर्सी पर बैठे भगवान को अपना मालकी समझता है।
पांच राज्यों के चुनाव में आदर्श आचार संहिता लागू करने के बाद केंचुआ या तो शीतनिद्रा में रहा या फिर उसने अपने मालिक का हुक्म बजाया। राजस्थान में चुनाव प्रचार के दौरान जिसके मुंह में जो आया सो बोला, लेकिन केंचुआ का नोटिस जारी हुआ कांग्रेस के राहुल गांधी के नाम। केंचुआ ने राहुल से पूछा कि उन्होंने माननीय लोगों को पनौती और जेबकतरा क्यों कहा? राहुल को नोटिस जारी होना चाहिए था, लेकिन औरों के ऐसे शब्दों को लेकर केंचुआ ने खुद ही कोई नोटिस नहीं लिया।
चुनाव प्रचार के दौरान माननीय ने झारखण्ड एवं मथुरा जाकर चुनाव प्रचार किया, लेकिन केंचुआ मौन रहा, उसने न कुछ सुना न कुछ देखा। बिल्कुल ‘मूंदहु आंख, कतहु कछु नाहीं’ की तर्ज पर। दरअसल केंचुआ की न रीढ है और न नख-दंत। बेचारा जमीन पर घिसट-घिसटकर चलता है। तुलसीदास ने भले ही केंचुआ को ‘भूमिनाग’ कह दिया हो, किन्तु केंचुआ नाग की भांति न खडा हो सकता है और न फुफकार सकता है। केंचुआ की अपनी सीमाएं हैं। शेषन जैसा केंचुआ कभी-कभी गलती से अवतार लेता है।
तेलंगाना में केंचुआ ने बेशर्म नर्तन किया ही। तेलंगाना में सरकार बनाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगा रहे लोगों ने शिकायत की तो राज्य सरकार की रायथू बंधु योजना पर रोक लगा दी, लेकिन मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना पर रोक नहीं लगाई। जाहिर है कि तेलंगाना में केसीआर की सरकार है मप्र में नहीं। मप्र में मामा की सरकार है और मामा मालिक की बिरादरी से आते हैं। केंचुआ अपनों के खिलाफ सक्रिय कैसे हो सकता है? केंचुआ संविधान दिवस के दिन भी संविधान के तहत नहीं चला। चल ही नहीं सकता। उसे संविधान के तहत चलने की न आदत है और न अभ्यास। सरकार ने उसे कभी ऐसा करने ही नहीं दिया।
केंचुआ ने मालिक की शिकायत पर तेलंगाना के अखबारों में कर्नाटक सरकार के विज्ञापनों का प्रकाशन तक रुकवा दिया, केंचुआ के मालिकों को भय है कि कर्नाटक की उपलब्धियां पढकर कहीं तेलंगाना के मतदाता बिदक न जाए। अरे पगले वे तो कब के बिदक चुके हैं। तेलांगना हो या कर्नाटक यहां डबल इंजिन की सरकारें नहीं चलती। तेलंगाना, राजस्थान, छग और मप्र की जनता ने देख लिया है कि डबल इंजिन की सरकारें कैसी चलती हैं? माननीयों ने चुनाव प्रचार के चलते कितना आदर्श ढंग अपनाया इसका सबसे बडा उदहारण है, चुनाव प्रचार के चलते देश के 80 करोड लोगों को अगले पांच साल तक मुफ्त भोजन की योजना के विस्तार की घोषणा। सरकार और केंचुआ समझता है कि भूखी जनता मूर्ख भी है जो इस तरह की घोषणाओं से प्रभावित होकर अपना बहुमूल्य वोट पानी में बहा देगी!
बहरहाल हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है कि पांच राज्यों में किसकी सरकार बन रही है। सरकार कच्ची मिट्टी के खिलौने जैसी होती है। हर पांच साल में बनती-बिगडती है। मिट्टी अच्छी तरह से न गूंदी और पकाई गई हो तो सरकार रूपी ये खिलौना डेढ साल में ही टूट सकता है। मप्र की जनता को इसका अनुभव है। हमें सरकारों के बनने और बिगडने पर न खुशी होती है और न गम, क्योंकि हम जानते हैं कि जब मनुष्य ही नश्वर है तो सरकार अजर-अमर कैसे हो सकती है? लेकिन अमरत्व का भरम पाला जा सकता है। बहुत से लोग इस भरम को पालते हैं। पालतू हर चीज अच्छी होती है, फिर चाहे वो भ्रम हो या केंचुआ या कोई श्वान। इस समय देश में हर चीज पालतू हो गई है। हमारी विरादरी के लोग भी अब राजाश्रय में रहकर सुखी हैं।
केंचुए की स्वामिभक्त मालिकों के काम आई या नहीं इसका पता आपको तीन दिसंबर को चलेगा, लेकिन इससे पहले ही मप्र की नौकरशाही ने अपना काम शुरू कार दिया है। बालाघाट में नौकरशाही ने आधिकारिक मतगणना से पहले ही डाक मतपत्र खोल लिए हैं। बेचारे कमलनाथ और उनकी पार्टी केंचुआ के सामने अर्जियां लिए खडी है, किन्तु केंचुआ कोई संज्ञान नहीं ले रहा। केंचुआ संज्ञान ले भी तो कैसे? आखिर उसे मालिक का हुक्म पूरा करना है, न कि कमलनाथ का। आपको बता दें कि मप्र ऐसा प्रदेश है जहां विधायक एक वोट से बन जाता है और एक वोट के अंतर से हार भी जाता है। यानि यहां एक-एक वोट की कीमत है, लेकिन केंचुआ इस कीमत को समझना ही नहीं चाहता। केंचुए को तो एन-केन मालिक के लिए काम करना है।
कुल मिलाकर बात ये है कि हमारा केंचुआ दुनिया के तमाम केंचुओं से एकदम अलग है। लिजलिजा, जमीन पर घिसटता हुआ। जिसे देखकर दया आती है। सावधानी बरतना पडती है कि कहीं बेचारा किसी के जूते के नीचे न आ जाए। वैसे जब हम हायर सेकेण्ड्री में छात्र थे तब हमें पढाया जाता था कि केंचुआ अजर-अमर है, ये मरकर भी नहीं मरता। आप एक के दो केंचुए बना सकते हैं। केंचुआ आखिर केंचुआ होता है। यानि केन्द्रीय चुनाव आयोग।