– राकेश अचल
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा रोचक रण मध्य प्रदेश में हुआ है। मप्र की 230 सीटों के लिए मतदान भी हो चुका हैं, लेकिन चुनाव के नतीजे आने से पहले ही भाजपा के दैदीप्यमान सूरज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मैदान छोड दिया है। सिंधिया ने एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में अपने मैदान छोडने की बात सार्वजनिक कर दी। उन्होंने कहा कि वे प्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। सवाल ये है कि उन्हें भाजपा हाईकमान ने मुख्यमंत्री बनाने का संकेत कब और कहां दिया?
भाजपा के स्टार प्रचारक सूची में नंबर छह पर रखे गए केन्द्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मुख्यमंत्री बनने के सवाल को लेकर कहा कि ‘मैं न 2013 में मुख्यमंत्री बनने की रेस में ना ही 2018 में था और ना ही अब हूं। मैंने बार-बार कहा है कि मैं मुख्यमंत्री पद की दौड में नहीं हूं।’ सिंधिया हालांकि ये दावा अब भी कर रहे हैं कि मप्र में भाजपा ही जीतेगी। भाजपा हाईकमान को सिंधिया के मुंह में घी-शक्कर डाल देना चाहिए। क्योंकि उनका आत्म विश्वास स्तुत्य है। भाजपा के बांकी नेताओं के चेहरों पर तो हवाईयां उड रही हैं।
आपको याद होगा कि जो बात ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुनाव समाप्त होने के ठीक पहले कही है, ये बात में चुनाव शुरू होने से लेकर अब तक लगातार करता आया हूं कि सिंधिया सपने में भी मप्र के मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि मुख्यमंत्री का पद कितना जिम्मेदारियों से भरा होता है और कितनी मेहनत मांगता है? सिंधिया परिवार का राजनीतिक इतिहास भी इस बात का गवाह है कि उनके यहां किसी ने भी, कभी भी मुख्यमंत्री बनने का न स्वप्न पाला और न मुख्यमंत्री बनने का प्रयास किया। सिंधिया हमेशा ‘किंग मेकर’ बने रहना चाहते हैं। क्योंकि किंग बनने और बनाने में अलग मजा है। 2020 में भी जब सिंधिया कांग्रेस में बने-बनाए कांग्रेस के किंग कमलनाथ को अपनी मुट्ठी में नहीं कर पाए थे तो उन्होंने कांग्रेस छोड दी थी। भाजपा में अभी उनकी हैसियत किंग मेकर की बनने में समय लगेगा और भाजपा कभी उन्हें इस मकडजाल में उलझाएगी भी नहीं। क्योंकि भाजपा को मुख्यमंत्री पद के लिए ‘संघ दक्ष’ कार्यकर्ता चाहिए जो सिंधिया नहीं हैं।
पूरे पांच दशक यानि 50 साल तक कांग्रेस की दाल-रोटी पर पली-बढी सिंधिया की दो पीढियों को अब भी कांग्रेस छोडने का रंज है, जो गाहे-वगाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया की जुबान पर आ ही जाता है। उन्होंने कहा कि ‘मेरे पिता ने इस पार्टी (कांग्रेस) की 30 साल सेवा की। इस पार्टी की सेवा करते हुए मेरे पिता माधवराव सिंधिया की मौत हुई, मैं ये कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी’। खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दो दशक तक कांग्रेस की सेवा की और मेवा पाई। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा में शामिल होने के बाद अपने परिवार की एक और परम्परा को तोडा। सिंधिया परिवार की परम्परा थी कि इस परिवार के सदस्य कभी भी, किसी भी राजनितिक विरोधी पर निजी हमला नहीं करते। यहां तक कि अपने परिवार के विरोधियों पर भी। लेकिन पहली बार कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के हमले से ज्योतिरादित्य सिंधिया तिलमिला गए और प्रियंका पर निजी हमला कर बैठे।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा ने मप्र में चुनाव प्रचार करते हुए कहा था कि ‘क्या आप सिंधिया जी को जानते हैं ? हमने उत्तर प्रदेश में एक साथ काम किया। हम यूपी के लोग अपनी शिकायत या गुस्सा व्यक्त कर देते हैं। हम सब कुछ बाहर निकाल देते हैं। हमें महाराज बोलने की आदत नहीं है।’ उन्होंने तंज कसते हुए कहा ‘क्या है कि वो कद में थोडे छोटे पड गए लेकिन अहंकार में तो भई, वाह भई वाह!’ उन्होंने कहा ‘उन्होंने अपने परिवार की परंपरा अच्छे से निभाई है। विश्वासघात तो बहुतों ने किया है, लेकिन इन्होंने ग्वालियर और चंबल की जनता के साथ विश्वासघात किया है। आपकी पीठ में छुरा घोंपा है। बनी-बनाई सरकार को गिरा दिया और वो सरकार आपकी थी, आपने वोट दिया था उसके लिए।’
सिंधिया पहली बार प्रियंका की इस टीप्पणी से तिलमिला गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रियंका गांधी के गद्दार वाली टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि ‘मैंने इसका जवाब दे दिया है, जिस टॉल लीडर की बात आप कर रहे हैं, वो यूपी की 80 में से सिर्फ एक लोकसभा सीट जीत पाई। सीधा वो महासचिव बन गई।’ सिंधिया का दुर्भाग्य है कि वे जब कांग्रेस में थे तो भाजपा वाले उन्हें गद्दार कहते थे और अब जब वे भाजपा में हैं तो कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता उन्हें गद्दार कहने लगे हैं। गद्दारी का ये दाग धुल ही नहीं रहा है। जबकि खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने परिवार की परम्परा को तोडकर महारानी लक्ष्मी बाई की समाधि पर माथा तक आए हैं, ताकि लोग उन्हें गद्दार कहना बंद कर दें।
सिंधिया की नजर मप्र के मुख्यमंत्री पद पर नहीं, बल्कि ग्वालियर की उस संसदीय सीट पर है जिसे उनके पिता माधवराव सिंधिया ने भाजपा की वजह से ही 1999 में छोड दिया था। तब से केवल 2007 और 2009 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया परिवार की यशोधरा राजे ही यहां से चुनाव लडीं और वे भी बाद में मैदान छोड गईं। आपको याद होगा कि 1998 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जयभान सिंह पवैया को माधवराव सिंधिया के खिलाफ मैदान में उतारा था। इस चुनाव में सिंधिया मुश्किल से जीते थे और इसके बाद ही उन्होंने ग्वालियर से चुनाव लडना बंद कर दिया था, वे गुना चले गए थे। पवैया 1999 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर से जीते किन्तु 2004 कि चुनाव में हार गए। उन्हें कांग्रेस के रामसेवक सिंह ने पराजित किया था।
पिछले दो लोकसभा चुनाव से यहां एक बार नरेन्द्र सिंह तोमर संसद बने और बाद में विवेक शेजवलकर। तोमर इस बार दिमनी विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड रहे हैं। वे जीतेंगे भी। हार भी गए तो भी वे मुरैना छोडकर ग्वालियर से लोकसभा का चुनाव लडने आने वाले नहीं हैं। इसलिए इस बार शेजवलकर की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर से चुनाव लडने की तैयारी करेंगे। लेकिन इस बात का अंतिम फैसला विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद होगा। अभी सिंधिया राज्यसभा कि सदस्य हैं। यदि चुनाव परिणाम भाजपा के अनुकूल न आए तो मुमकिन है कि सिंधिया का ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लडने का सपना पूरा न हो पाए। सिंधिया एक बार फिर ग्वालियर और गुना सीट अपने परिवार के कब्जे में लेना चाहते हैं। गुना से वे अपने बेटे महाआर्यमन सिंधिया के लिए संभावनाएं तलाश रहे हैं।