कर्म सदैव स्वाभिमानी है और हम कषाय, अहंकार में डूब कर गांठें बांध रहे हैं : विनय सागर

मुनि ने शहर के पांच जैन मन्दिरों में पहुंचकर अभिषेक व शांतिधारा

भिण्ड,07 सितम्बर। मनुष्य जन्म मूल्यवान नहीं अपितु अनमोल है, जैसे ही सांसें बंद हो जाती है, तब महंगी से महंगी दवाई या डॉक्टर भी बचा नहीं सकते। अत: पल पल हमारा जीवन घटता जा रहा है। जो व्यक्ति कल का मूल्य समझता है, वही पल का मूल्य समझता है। पल के मूल्य को समझ कर ही जीवन को सार्थक बना सकता है। बांसुरी की तरह हमारा जीवन हो। यह विचार श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ने गुरुवार को पद मंगल यात्रा के दौरान अटेर रोड स्थित दिगंबर पारसनाथ जैन मन्दिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

मुनि विनय सागर महाराज ने कहा कि कर्म सदैव स्वाभिमानी है और हम अपने विचारों से, भावों से, क्रियाओं से पल पल कर्मों को आमंत्रण देते हैं, कषाय, अहंकार में डूब कर गांठें बांध रहे हैं। जिससे संसार में भ्रमण कर रहे हैं। अत: बंधी गांठों को भी तुरंत खोल देना चाहिए। ग्रंथियों को बांधना तो सरल है लेकिन भोगना या खोलना बहुत मुश्किल है। यह जीवन समझने का है और समझ कर संभलने का है। राग द्वेष की गांठों से मुक्त होने का है। हम नाम के कारण गांठों को बांधने की नहीं करें कोशिश।
मीडिया प्रवक्ता सचिन जैन ने बताया कि श्रमण मुनि विनय सागर महाराज ससंघ श्रावकों के साथ कीर्ति स्तंभ से सुबह ढोल तासे के साथ पद मंगल यात्रा कर प्रारंभ होकर अटेर रोड के पारसनाथ दिगंबर जैन मन्दिर के दर्शन किए। उसके बाद सीधे पेच नं.2 आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के बाद महावीर गंज चंदा प्रभु गुना बाई के मन्दिर और कुआं वाला चंद्रप्रभु मन्दिर के दर्शन करते हुए वापिस चतुर्माश स्थल पहुंचे। मुनि जिन मन्दिरों पहुंचे उन सभी जैन मन्दिरों में विशेष मंत्रों का उच्चारण कर समाज जनों ने पीले वस्त्रों धारण कर कलशों की जलधार से भगवान जिनेन्द्र का महामस्तकाभिषेक संगीतमय भजनों पर भक्तिभाव के साथ किया। वहीं भगवान जिनेन्द्र की शांतिधारा भी कराई गई। मुनि ने सभी जैन मंदिरों में विराजित भगवान जिनेन्द्र देव के दर्शन किए। वहीं जैन मन्दिरों की समिति एवं जैन समाज के लोगों ने मुनि के पदाप्रक्षालन कर मंगल आशीर्वाद लिया।