आंगनबाडी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति के ऐवज में ली थी रिश्वत
सागर, 27 जुलाई। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा की अदालत ने आंगनबाडी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति के ऐवज में रिश्वत लेने वाली अभियोक्त्री सेवानिवृत्त परियोजना अधिकारी निशा रतले को दोषी करार देते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के अंतर्गत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं बीस हजार रुपए जुर्माने की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी सहायक जिला लोक अभियोजन अधिकारी श्याम नेमा ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि 16 मार्च 2020 को आवेदक वीरेन्द्र सिंह ने पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त कार्यालय सागर को संबोधित एक लिखित शिकायत आवेदन इस आशय का दिया कि उसकी पत्नी रितु ठाकुर की नियुक्ति आंगनबाडी कार्यकर्ता के पद पर हुई है, नियुक्ति के लिए अभियोक्त्री निशा रतले प्रभारी परियोजना अधिकारी महिला एवं बाल विकास बीना जिला सागर द्वारा 20 हजार रुपए रिश्वत की मांग की जा रही है। रिश्वत न देने पर अभियोक्त्री द्वारा परेशान किया जाता है और कहा जाता है कि रिश्वत नहीं दी तो जांच करके पद से हटा देगी। उसकी पत्नी अभियोक्त्री को रिश्वत नहीं देना चाहती, बल्कि रंगे हाथों पकडवाना चाहती है। रितु ठाकुर ने अभियोक्त्री के विरुद्ध अग्रिम कार्रवाई किए जाने का निवेदन किया। उक्त आवेदन पर कार्रवाई हेतु तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विपुस्था सागर ने निरीक्षक मंजू सिंह को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियोक्त्री से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया, तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां की गईं एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदक द्वारा अभियाक्त्री को राशि दी गई व आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेप दल के सदस्य मौके पर पहुंचे और ट्रेप दल का परिचय देकर अभियोक्त्री का परिचय प्राप्त करने के उपरांत आवेदक से रिश्वत राशि के बारे में पूछे जाने पर आवेदक ने बताया कि अभियोक्त्री के कहने पर उसने रिश्वत राशि पास रखी हुई टेबिल के ऊपर रखी हुई फाईल के नीचे रख दी है। तत्पश्चात अग्रिम कार्रवाई प्रारंभ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा-मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी), सपठित धारा 13(2) का अपराध आरोपिया के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। जहां विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपिया को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।