स्वतंत्रता सेनानी रामनाथ सोनी की पुण्य स्मृति दिवस पर विशेष

कफन को बांधकर निकले जुनूनी था सफर यारो, वतन के उन शहीदों को झुका है अपना सर यारो।
लगाकर जान की बाजी वतन की आबरू रख ली, जिए आजाद होकर के हुए मरकर अमर यारो।।
स्वतंत्रता सेनानी रामनाथ जी का जन्म 30 जनवरी 1920 को कस्बा लखना जिला इटावा उत्तरप्रदेश में हुआ। इनकी माता जी का नाम श्रीमती कौशल्या देवी एवं पिता जी का नाम गयादीन था। बचपन से ही परिवार के आर्थिक व सामाजिक संस्कारों से प्रेरित होकर अपने साथियों व जरूरत मंदों की मदद करते रहते थे।
किसी निर्दोष पर अत्याचार होते नहीं देख पाते थे।
ईश्वर की असीम अनुकम्पा से एक जमींदार परिवार की सुसंस्कारी धार्मिक बेटी श्रीमती रामलडैती देवी सहधर्मिणी बनकर आई और जीवन भर पति का साथ दिया।
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
देश की विषम परिस्थितियों एवं अंग्रेजों के अत्याचारों की गूंज एवं महात्मा गांधी जी के आव्हान करो या मरो से प्रेरित होकर अपने साथियों के साथ महा संग्राम में कूद पड़े। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाते हुए लखना कस्बे में नहर के पास स्थित अंग्रेजों की कोठी पर हमला कर उसे आग के हवाले कर दिया, लेकिन मानवता का परिचय देते हुए अंग्रेजों की महिलाओं व बच्चों को सकुशल बाहर निकालकर नाव से यमुना नदी के पार सुरक्षित स्थान पर भिजबा दिया।
उसके बाद डाकघर एवं पुलिस थाने के साथ साथ ब्रिटिश सरकार के अन्य दफ्तरों को फूंक दिया गया।
कुछ साथी मौके पर पकड़े गए तो कुछ फरार हो गए,अंग्रेजी फौजों द्वारा परिवारी जनों पर अत्याचार और बढ़ते दबाव से पुलिस के सामने हाजिर हुए और जेल भेज दिए गए।
पुलिस की गाड़ी से जेल जाते हुए कुछ स्कूली छात्रों को भनक लगी कि इस वेन में क्रांतिकारी जा रहे हैं तो उन्होंने गाड़ी पर पथराव कर दिया लेकिन छुड़ाने में कामयाब नहीं हुए। लखना कांड में नायक की भूमिका में इनके विरुद्ध 26 गवाहों ने बयान दिया कि रामनाथ ने हुक्म दिया और इनके साथी प्रभु दयाल उर्फ पंडा ने आग लगाई। जिसके तहत दो वर्ष का सश्रम कारावास एवं अर्थदंड की सजा सुनाई गई, लेकिन देश आजाद होने के बाद रिहा कर दिए गए। जेल में क्रांतिकारियों के साथ अंग्रेजों द्वारा किए गए अमानुषिक अत्याचार, जिसमें विशेष भूमिका अपने ही गद्दार देशवासियों की थी। हथकड़ी बेडियों में जकड़कर कोड़ों की मार,घंटों बर्फ की सिल्लियों पर लिटाना, 6*4 की सीलन भरी कोठरी जिसमें खड़ा होना भी मुश्किल था तन्हाई की सजा देकर उनके मनोवल को तोड़ने का प्रयास किया जाता था लेकिन भारत मां के रण बांकुरे जो फौलाद के बने थे वे हंसते हंसते फांसी पर झूल गए लेकिन झुके नहीं।
उनके संस्मरण यादकर आज भी रूह कांप जाती है और रोमांच हो जाता है। जिंदगी भर खादी वस्त्रों को ही धारण किया। आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस के जिलाध्यक्ष एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। देश के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी द्वारा प्रशस्ति पत्र, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा सम्मान निधि एवं ताम्रपत्र, संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह द्वारा स्मृति चिन्ह भेंट करके सम्मानित किया गया।
सन1970 में लखना छोड़कर फूप जिला भिंड मध्य प्रदेश में निवास करने लगे। 5 जुलाई 1994 को हृदय घात से प्राणांत हो गया।
लेकिन उस समय भी उनके चेहरे पर स्निग्ध मुस्कान थी और अष्पष्ट शब्द मुखरित हो रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे ईश्वर या मां भारती का स्मरण कर रहे हों।
मृत्यु उपरांत प्रशासन द्वारा गार्ड ऑफ ऑनर के तहत तिरंगा ओढ़ाकर श्रद्धासुमन समर्पित किए गए।
मां भारती के उन वीर सपूतों शहीदों स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में यही कहूंगा कि सांस का हर सुमन है वतन के लिए जिंदगी है हवन अब वतन के लिए, खून से जिनके सींचा गया ये चमन है हमारा नमन उस चमन के लिए।
अशोक सोनी ,निडर,
पुत्र रामनाथ सोनी
स्वतंत्रता सेनानी
राष्ट्रीय प्रवक्ता
राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिवार उत्तर प्रदेश
प्रदेश सचिव
स्वतंत्रता सेनानी/उत्तराधिकारी संगठन मध्य प्रदेश