भागवत कथा में सुनाई ध्रुव चरित्र की कथा

गौंड़ बाबा मन्दिर पर भागवत कथा में हो रहे हैं प्रवचन

भिण्ड, 18 मई। लहार तहसील के गेंथरी-बेलमा गांव में गौंड़ बाबा मन्दिर पर चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास पं. परमानंद महाराज ने सुखदेव आगमन, ध्रुव एवं प्रहलाद चरित्र की कथा सुनाई।
कथा व्यास परमानंद महाराज ने कहा कि महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण के मारे जाने की खबर सुनकर उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोधित होकर पांडवों को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया। ब्रह्मास्त्र लगने से अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ। परीक्षित जब बड़े हुए नाती पोतों से भरा पूरा परिवार था, सुख वैभव से समृद्ध राज्य था। जब वह 60 वर्ष के थे तब एक दिन वह क्रमिक मुनि से मिलने उनके आश्रम गए। उन्होंने आवाज लगाई लेकिन तप में लीन होने के कारण मुनि ने कोई उत्तर नहीं दिया। राजा परीक्षित स्वयं का अपमान मानकर निकट मृत पड़े सर्प को क्रमिक मुनि के गले में डाल कर चले गए। अपने पिता के गले में मृत सर्प को देख मुनि के पुत्र ने श्राप दे दिया कि जिस किसी ने भी मेरे पिता के गले में मृत सर्प डाला है, उसकी मृत्यु सात दिनों के अंदर सांप के डसने से हो जाएगी। ऐसा ज्ञात होने पर राजा परीक्षित ने विद्वानों को अपने दरबार में बुलाया और उनसे राय मांगी। उस समय विद्वानों ने उन्हें सुखदेव का नाम सुझाया और इस प्रकार सुखदेव का आगमन हुआ।
कथाव्यास ने ध्रुव के चरित्र के बारे में बताते हुए कहा कि भगवान को प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती हैं। ध्रुव ने अपने मन में दृढ़ संकल्प कर लिया था कि मुझे भगवान को प्राप्त करना है और उसी संकल्प को ध्यान में रखते हुए वनवास में तपस्या करते हुए ध्रुव ने भगवान को प्राप्त किया। कथा वाचक ने ध्रुव कथा प्रसंग में बताया कि सौतेली मां से अपमानित होकर बालक ध्रुव कठोर तपस्या के लिए जंगल को चल पड़े, बारिश, आंधी-तूफान के बावजूद तपस्या से न डिगने पर भगवान प्रगट हुए और उन्हें अटल पद प्रदान किया।