बजरंगी पालटिक्स के अक्श

– राकेश अचल


मुझे नहीं पता कि हमारे रामसेवक बजरंगबली ने कभी कोई संगठन या दल बनाया था। उनके जमाने में दलों के पंजीयन की कोई व्यवस्था थी या नहीं ये भी कोई नहीं जानता, लेकिन कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने बजरंगबली और बजरंग दल को एक कर दिया है। कांग्रेस ने बजरंगदल पर पाबंदी का वादा कर भाजपा को ऐसा करने के लिए मजबूर किया है, क्योंकि भाजपा की सारी राजनीति का आधार ये हवा-हवाई संगत ही हैं।
देश का दुर्भाग्य है कि यहां की राजनीति लगातार प्रगतिशील होने के बजाय प्रतिगामी होती जा रही है। देश की राजनीति में 1980 में जन्मी भाजपा ने पहले भगवान राम को राजनीति के लिए औजार बनाया और आज जब राम के नाम पर वोट मिलना बंद होने वाले हैं तब उनके सेवक हनुमान को अपना औजार बना लिया है। देश के प्रधानमंत्री जी तक कह रहे हैं कि कांग्रेस ने हनुमान जी को जेल में बंद कर दिया है। प्रधानमंत्री जी का मैं दिल से सम्मान करता हूं, क्योंकि जितने विनोद की बातें वे करते हैं अब तक के किसी प्रधानमंत्री के मुंह से मैंने नहीं सुनीं। लेकिन प्रधानमंत्री जी जब खुद इस विनोद को महाविनोद में बदलते हैं तो मुझे हैरानी होती है।
बकौल कांग्रेस इस देश की महाभ्रष्ट और देशद्रोही पार्टी है, इसलिए इसे देश से समूल नष्ट कर देना चाहिए। अगर आप कर सकते हैं तो जरूर ऐसा कीजिए, लेकिन ऐसा करने के लिए राम या हनुमान का इस्तेमाल बिल्कुल मत कीजिए। ये इन दोनों महान प्रतीकों के साथ अन्याय है। राम लोगों के दिलों में हैं और हनुमान भी। वे न भाजपाई हैं और न कांग्रेसी। वामपंथियों और समाजवादियों ने भी उन्हें अपनी पार्टी में शामिल नहीं किया है। बसपा, सपा और अन्य दलित-आदिवासी राजनीतिक दलों के लिए भी राम और हनुमान राजनीतिक हथियार नहीं हैं। इन दोनों का पेटेंट केवल और केवल भाजपा के पास है, क्योंकि भाजपा ही है जो राम के लिए मन्दिर और शिव के लिए कॉरिडोर या लोक बनाने का अहसान करती है।
आपको याद हो कि कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनावकि लिए मतदान होना है। सोमवार को भाजपा ने अपना घोषणापत्र जारी किया, उसके एक दिन बाद मंगलवार को बेंगलुरु में कांग्रेस ने अपना घोषणा पत्र जारी किया है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में सत्ता में आने के एक साल के भीतर भाजपा सरकार द्वारा पारित सभी अन्यायपूर्ण कानूनों और जनविरोधी कानूनों को निरस्त करने का वादा किया और बजरंग दल और पीएफआई समेत नफरत फैलाने वाले व्यक्तियों और संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का वादा किया है।
भाजपा भी चाहे तो अपने घोषणा पात्र में कह सकती है कि कांग्रेस को वो ऐसा करने नहीं देगी, लेकिन भाजपा ने ऐसा नहीं कहा। भाजपा ने इस पूरे मसले को हनुमानजी से जोडक़र कांग्रेस पर हमला बोल दिया है। मंगलवार को खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनसभा में निशाना साधा और और कहा कि ये दुर्भाग्य है कि कांग्रेस ने हनुमानजी को ताले में बंद करने का संकल्प लिया है। पहले श्रीराम को ताले में बंद किया था। प्रधानमंत्री चुनावों में अपनी सरकार की उपलब्धियों को लेकर बोलने से कतराते हैं किन्तु उन्हें राम और हनुमान कि बहाने भाषण देने में बहुत मजा आता है, क्योंकि उनके लिए राजनीति जनसेवा का नहीं मजा लेने का माध्यम है शायद।
कर्नाटक में सत्ता का नया टीपू सुल्तान कौन होगा, ये कहना अभी से उचित नहीं। किन्तु हमारे सामने उदाहरण है कि भाजपा ने बीते सालों में बंगाल कि चुनाव कि दौरान राम और हनुमान को अपनी चुनावी रैलियों में पैदल चलवाने की जुर्रत कर दिखाई थी, लेकिन वहां न राम ने भाजपा की मदद की और न हनुमान ने। ये दोनों इंसान को इंसान बनाने में तो मदद कर सकते हैं। मर्यादा और सेवा का सबक तो सिखा सकते हैं किन्तु सियासत कि लिए अपने इस्तेमाल से कभी खुश नहीं हो सकते, नहीं हुए भी। ये अलग बात है कि अयोध्या में राम मन्दिर कि नाम पर भाजपा सत्ता कि साथ बहुत कुछ हासिल करने में कामयाब हुई।
बात प्रधानमंत्री जी की हो रही है, प्रधानमंत्री जी ठीक वैसे ही कभी गलत नहीं हो सकते जैसे कि राजा कभी गलत नहीं होता। भारतीय संस्कृति में राजा और लोकतंत्र में प्रधानमंत्री भगवान विष्णु का अवतार होते हैं। इस बात को कोई खुलकर कहता है और कोई नहीं कहता। भाजपा में प्रधानमंत्री जी को अवतार कहने में कभी कोई संकोच नहीं बरता जाता। बरतना भी नहीं चाहिए। सबकी अपनी-अपनी मान्यताएं हैं, उनका सम्मान किया जाना चाहिए। लेकिन सबको अपने राम और हनुमान को राजनीति में इस्तेमाल का विरोध भी करना चाहिए। क्योंकि ये काम जिसका है वो इसे कर नहीं सकता।
चुनावों में किसी देवी-देवता के नाम का इस्तेमाल कानूनन वर्जित है। ये वर्जना केन्द्रीय चुनाव आयोग की और से है। दुर्भाग्य है कि ऐसे मामलों में केन्द्रीय चुनाव आयोग हमेशा केंचुआ साबित होता है, आगे भी होगा। क्योंकि अब केंचुआ प्रमुख सेवानिवृत्ति के बाद से राज्यपाल जो मनोनीत किए जाने लगे हैं। भाजपा हर सेवानिवृत्त लोकसेवक का इस्तेमाल करना जानती है, फिर चाहे वो सेना का अध्यक्ष रहा हो, देश का मुख्य न्यायाधीश रहा हो या नौकरशाह रहा हो। भाजपा राजनीति के लिए सभी को मौका देती है। राजा राम और हनुमान जी भी यदि मनुष्य योनि में होते तो मुमकिन है कि उन्हें भी यही सब अवसर हांसिल होते।
बहरहाल बात कर्नाटक के नाटक में हनुमान जी के नाम के उपयोग या दुरुपयोग की है। अब ये कर्नाटक की जनता को तय करना है कि वो इन नामों के इस्तेमाल के खिलाफ है या नहीं? अगर जनता को लगेगा कि राम के बाद हनुमान के नाम पर सियासत होना चाहिए, तो तय मानिये कि राज्य में भाजपा दोबारा सत्तारूढ़ होगी और यदि जनता हनुमान के नाम के दुरुपयोग के खिलाफ होगी तो सत्ता में वो कांग्रेस सत्तारूढ़ होगी, जो बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कर रही है। यानि फैसला अब हनुमान नहीं जनता करेगी। मुझे तो लगता है कि कर्नाटक के चुनाव में अब हर-हर महादेव की जगह ‘घर-घर हनुमान’ का नारा बुलंद न हो जाए।
आपको यकीन नहीं होगा किन्तु ये सत्य है कि मेरे घर के शिखर पर हनुमान जी का चित्र अंकित है, लेकिन मैं उनसे कभी अपने सियासी फायदे की बात नहीं करता। बजरंग दल कि अनेक नेता और कार्यकर्ता मेरे परम् मित्र हैं, मैं उनसे बहुत प्रेम करता हूं, किन्तु उनकी राजनीति से हमेशा असम्पृक्त रहता हूं। मैं कांग्रेस के घोषणापत्र में कर्नाटक में बजरंगदल पर पाबंदी के ऐलान से भी क्षुब्ध नहीं होता, क्योंकि मैं जानता हूं कि बजरंग दल (जो बजतरंग बली का दल नहीं है) पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है, लेकिन हनुमान जी पर नहीं। इसलिए मेरी तरह हनुमान जी की चिंता भाजपा को बिल्कुल नहीं करना चाहिए। हनुमान जी अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं। उन्हें न कांग्रेस से खतरा है और न भाजपा के समर्थन की जरूरत है। उनके पास तो शुरू से राम रसायन है। भाजपा के पास राम रसायन नहीं बल्कि राम का नाम भर है। इस समय देश की राजनीति को जिस राम रसायन की जरूरत है वो तलाश की जाना चाहिए, क्योंकि लोकतंत्र अपने अमृतकाल में मुखर होने के बजाय राम-राम, हे राम उच्चारता दिखाई दे रहा है। जय श्रीराम।