वतन बेच देते हैं

– अशोक सोनी निडर


तुम्हें अब क्या बताएं लोग क्या क्या बेच देते हैं।
कसम खा के भी अपनों का भरोसा बेच देते हैं।।
यहां जिस डॉक्टर को हम सभी भगवान कहते हैं।
वही बीमार का धोखे से गुर्दा बेच देते हैं।।
गरीबी कैसी लानत है ये उस मां-बाप से पूछो।
मुसीबत में कभी जो अपने दिल का टुकड़ा बेच देते हैं।।
नए रिश्ते नई रंगत नई तहजीब में पडक़र।
यहां कुछ लोग अपने घर का पर्दा बेच देते हैं।।
अदालत से कहो उन अफसरों को फांसियां दे दें।
जो अपने मुल्क का खुफिया मसौदा बेच देते ही।।
जिसे हम मानते हैं न्याय का मन्दिर।
कसम लेते हैं गीता की औ संविधान बेच देते हैं।।
जिस देश को हम सब ‘निडर’ मां मानते अपनी।
कुछ लोग सत्ता के नशे में चूर होकर के उस मां को बेच देते हैं।।