– राकेश अचल
केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजुजू को सिस्टम के खिलाफ बोलने वाला हर व्यक्ति उन्हें अब आंख की किरकिरी लगने लगा है, इसलिए वे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी हों या देश के प्रधान न्यायाधीश डीवाय चंद्रचूड़ सबको धमकाने में लगे हैं। रिजुजू की जुबान पर फौरन लगाम लगाईं जाना चाहिए, अन्यथा अब ये माना जाएगा कि वे सत्ता की जुबान बोल रहे हैं, उनका निजी कुछ भी नहीं है।
मैंने पहले भी किरेन रिजुजू को लेकर लिखा था और कहा था कि वे न्यायपालिका को धमकाने का अपराध कर रहे हैं। जिस देश में न्यायपालिका और विधायका में टकराव कि नौबत आ जाए वहां कांग्रेस के नेता राहुल गांधी का ये आरोप सही लगने लगता है कि देश में लोकतंत्र खतरे में है, या है ही नहीं। गनीमत ये है कि देश के मुख्य न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने कानून मंत्री से टकराव न लेने की बात कह कर अपने गांभीर्य का प्रमाण दिया है। किरेन की भाषा बदजुबानी कही जा सकती है। जिस तरह से पिछले दिनों देश के मुख्य न्यायाधीश को भाजपा की ट्रोल आर्मी ने धमकाया है, उसे देखकर लगता है कि इस देश में अब सत्ता को आइना दिखाना सबसे बड़ा देशद्रोह है।
देश के मुख्य न्यायाधीश का ये कहना कि ‘मेरे 23 साल के जज के कार्यकाल में किसी ने मुझे यह नहीं बताया कि केस का फैसला कैसे करना है। उन्होंने कहा कि मैं इस मुद्दे पर कानून मंत्री के साथ उलझना नहीं चाहता, क्योंकि हमारी अलग-अलग धारणाएं हो सकती हैं। इसमें कुछ गलत नहीं है।’ इस बात का संकेत देता है कि वे कानून मंत्री की बदजुबानी से गहरे तक आहत हुए हैं। रिजुजू भूल जाते हैं कि जिस तरह से वे एक राजनीतिक विरासत के वारिस हैं, उसी तरह मुख्य न्यायाधीश भी एक कानूनी विरासत के वारिस हैं और उनका अनुभव किरेन से कहीं ज्यादा है। वे जानते हैं कि उनकी सीमाएं क्या हैं? आपको याद होगा कि कानून मंत्री कानून मंत्री किरेन रिजिजू कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ हैं और इसे लेकर काफी मुखर रहे हैं। पिछले दिनों किरेन ने मुख्य न्यायाधीश का नाम लिए बिना कहा था कि कुछ जज ऐसे हैं जो कार्यकर्ता हैं और भारत विरोधी गिरोह का हिस्सा हैं, जो न्यायपालिका को विपक्षी दलों की तरह सरकार के खिलाफ करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट जाते हैं और कहते हैं कि सरकार पर लगाम लगाएं। ये तो नहीं हो सकता। न्यायपालिका किसी समूह या राजनीतिक संबद्धता का हिस्सा नहीं हैं।
देश की न्यायपालिका पर किसी समूह या राजनीतिक संबद्धता का हिस्सा होने का खुला आरोप लगाने वाले किरेन किसी भी सरकार के पहले मंत्रीं हैं। उनके वक्तव्यों से लगता है कि वे और उनकी सरकार देश में मुखर न्याय पालिका चाहते ही नहीं हैं। किरेन की सरकार और पार्टी चाहती है कि सरकार के खिलाफ न कोई बोले और न कोई फैसला दें और जो ऐसा करे उसे धमका दिया जाए, किरेन भूल जाते हैं कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में धमकियों से काम नहीं चलता। उन्हें देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी शायद याद नहीं हैं। उन्होंने न्यायपालिका के इतर जाकर सत्ता में बने रहने की कोशिश की थी, लेकिन उनका हश्र क्या हुआ?
मुझे लगता है कि किरेन और उनकी सरकार एवं सरकारी पार्टी नहीं चाहती कि कोई भी खुले तौर पर भारतीय न्यायपालिका से सरकार का सामना करने का आग्रह करे। अर्थात वे एक निरंकुश राजनीतिक व्यवस्था चाहते हैं। देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं को किरेन और उनकी सरकार पालतू बना चुकी है। अब केवल न्यायपालिका बची है सो उसे भी धमकाने की मुहीम शुरू की जा चुकी है। सरकार नहीं चाहती कि जज प्रशासनिक नियुक्तियों का हिस्सा बनें। सरकार को न्यायिक कार्य के लिए भी सरकार के पिट्ठू चाहिए। किरेन जानते हैं कि संविधान में लक्ष्मण रेखा बहुत स्पष्ट है, लेकिन उन्हें ये लक्ष्मण रेखा न दिखाई देती है और न वे इसे देखना चाहते हैं।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की ये उदारता है कि उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका विचाराधीन मामलों में कैसे निर्णय ले इसको लेकर सरकार की ओर से बिल्कुल कोई दबाव नहीं है। लेकिन उन्होंने परोक्ष रूप से ये भी कह दिया है कि अगर न्यायपालिका को स्वतंत्र रहना है, तो इसे बाहरी प्रभावों से बचाना होगा। खास बात ये है कि न किरेन अपनी जिद छोड़ रहे हैं और न प्रधान न्यायाधीश झुकने को राजी हैं। चंद्रचूड़ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली पर कहा कि हर प्रणाली दोषहीन नहीं होती, लेकिन यह एक बेहतरीन प्रणाली है, जिसे हमने विकसित किया है।
ध्यान में रखना चाहिए कि सरकार संप्रभु होती है, उसे यदि प्रधान न्यायाधीश इतना ज्यादा खटक रहे हैं तो उन्हें हटाकर अलग करें। लेकिन इतना साहस अभी न किरेन में है और न उनके आकाओं में। देश के लोकतंत्र को सम्हालने वाले अकेले मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ या राहुल गांधी नहीं हैं, अपितु असंख्य भारतीय हैं, क्या किरेन सबको धमका लेंगे? किरेन रिजिजू को आपत्ति है कि कुछ रिटायर्ड जज और ऐक्टिविस्ट ‘ऐंटी इंडिया गैंग’ का हिस्सा बन चुके हैं। उन्होंने कहा कि कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कुछ कार्यकर्ता कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल की भूमिका निभाए। शायद उनकी मंशा ये है कि रिटायर होते ही तमाम जज उनकी पार्टी के समर्थक बन जाएं, राज्यसभा की सदस्यता ले लें, राज्यपाल बन जाएं। लेकिन ऐसा मुमकिन नहीं है। बाहर से ऐसे जज हैं जो सत्ता सुख में कोई दिलचस्पी नहीं रखते। वे कुर्सी पर रहते हुए भी सिस्टम सुधारने के लिए काम करते थे और रिटायर होने के बाद भी यही काम करते हैं। सरकार सभी को अपने सुर में सुर मिलाने के लिए आखिर कैसे कह सकती है?
दरअसल रिजिजू न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कॉलेजियम प्रणाली को कांग्रेस पार्टी के ‘दुस्साहस’ का परिणाम मानते है। वे चाहते हैं कि ये प्रणाली भाजपा द्वारा विकसित की जाए। मुमकिन है कि अगले साल आम चुनाव में सत्ता हासिल करने के बाद किरेन का ये सपना भी पूरा हो जाए, लेकिन उन्हें अभी सब्र रखना चाहिए। न्यायपालिका को पालतू तोता, मैना बनाना बहुत आसान काम नहीं है।