परमात्मा ने कुछ भी निरर्थक नहीं बनाया : स्वामी नारायणानंद तीर्थ

परा स्थित अमन आश्रम में भागवत कथा के दौरान हो रहे हैं प्रवचन

भिण्ड, 25 जून। अटेर क्षेत्र के ग्राम परा स्थित अमन आश्रम परिसर में काशी से पधारे धर्म पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नारायणानंद तीर्थ महाराज ने आध्यात्मिक प्रवचन करते हुए कहा कि सृष्टि में परमात्मा ने कुछ भी निरर्थक नहीं बनाया है। यहां तक कि समूचे ब्रह्माण्ड में एक छोटा सा परमाणु भी सुव्यवस्थित अनुशासनबद्ध है। भारतीय संस्कृति ऋषियों की संस्कृति है, भारतीय समाज में ऋषियों द्वारा ऐसी परम्परा बनाई गई है, जिनके परिपालन में समाज चिरकाल तक जीवंत रहे। आज या अतीत में भारतीय समाज की दुर्दशा ऋषि चिंतन की अव्हेलना है।
महाराजश्री ने कहा कि ऋषियों द्वारा भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण परंपरा, ज्ञानोपदेश, की भी की गई थी। इस मनुष्य लोक में ज्ञान के समान नि:संदेह पवित्र करने वाला दूसरा साधन नहीं है। प्रत्येक मनुष्य की आत्मा पवित्र है देह भाव अपवित्रता की ओर ले जाता है आत्म भाव पवित्रता की ओर ले जाता है। ज्ञान हमें आत्म भाव में टिकाकर पवित्रता से ओतप्रोत कर देता है। उन्होंने कहा कि पवित्रता ही मुक्ति है। मुक्ति दो तरह से बतलाई गई है-एक सद्मुक्ति और दूसरी क्रम मुक्ति यानी जिसे मुक्ति पाने की इच्छा हो उसे मुक्त जनों का संग करना चाहिए या ज्यादा से ज्यादा भगवान शिव की कथा प्रसंग सुनना चाहिए। मुक्त जन वह है जो संसार के सभी बंधनों से मुक्त हो गया है।
उन्होंने बताया कि श्रीमद् भागवत महापुराण में श्री शुकदेव मुनि ने अंतिम उपदेश के उपरांत राजर्षि परीक्षित से पूछा कि राजन क्या अब भी तुम मरोगे। महाराज परीक्षित को ध्यान आया कि आज कथा का सातवां दिन है, आज ही तक्षक नाग हमें डंस लेगा, जिससे हमारी मृत्यु हो जाएगी। तब शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को डांटते हुए कहा कि पाशविक बुद्धि संसार के मोह से ग्रसित प्रतीत हो रही है। राजन इसे छोड़ कर परमात्मा में अपनी बुद्धि को लगाइए। सद्गुरु के तात्विक वचन सुनें, तब जाकर कहें कि मैं उस अखण्ड परमात्मा का ही अंश हूं। अत: मैं तो न जन्म लेता हूं और ना ही मरता हूं। मरने वाला शरीर है, मैं तो आत्मा पवित्र चिन्मय हूं।
महाराजश्री ने कथा प्रसंग में पार्वती के जन्म लेने एवं भगवान शिव के साथ विवाह की कथा विस्तार पूर्वक कही। उन्होंने कार्तिकेय जन्म का वर्णन करते हुए कहा कि कार्तिकेय शरीर की इन्द्रियों पर आधिपत्य करते हैं। उन्होंने देवताओं का नेतृत्व करते हुए ताड़कासुर का वध कर के संसार को भय मुक्त कराया। उन्होंने कहा कि हम सभी को भी जीवन की अनेक कठिनाइयों से घबड़ाना नहीं चाहिए संयम नियम का पालन करते हुए सत्कर्म के लिए तैयार रहना चाहिए।