– श्रावण मास में प्रत्येक दिन होगा अभिषेक
भिण्ड, 13 जुलाई। गोहद जिले का प्राचीन नगर है, यहां एक सैकडा से अधिक प्राचीन मन्दिर हैं, अभी गोहद किले (दुर्ग) में पुरातत्व विभाग द्वारा जीर्णोद्धार एवं निर्माण कार्य किया जा रहा है, इस निर्माण कार्य के दौरान यहां शिवलिंग दिखाई दिया। लोगों का कहना है कि यह भीमाशंकर महादेव हैं।
जानकारों का कहना है कि इस मन्दिर का निर्माण 16वी शताब्दी में किया गया था, जब स्थानीय लोगों को मन्दिर की जानकारी मिली तो यहां पूजा अर्चना आरंभ हो गई, श्रावण मास में यहां प्रतिदिन शिवजी का अभिषेक किया जाएगा। गोहद किले में स्थित शिव मन्दिर में दर्शन के लिए प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भीड उमड रही है।
गोहद किला का ऐतिहासिक महत्व
किला की नींव 1505 में रणदेव जाट शासक सिंहदेव द्वितीय द्वारा रखी गई थी, जिन्होंने बंगौरिया (बमरौली) से आए जाटों के लिए यहां एक शक्तिशाली गढ की स्थापना की। यह संरचना तब से लगातार 360 अतिरिक्त छोटी-छोटी चौकियों और किलों के नेटवर्क के केन्द्र के रूप में कार्य करती रही। रणनीतिक रूप से यह किला वसली नदी की वक्रता के पास स्थित है, जिससे यह कठिन रक्षात्मक स्थिति में लगभग अर्ध घेरा में घिरा रहा।
वास्तुकला और संरक्षण
यह किला चतुर्कोणीय नहीं, बल्कि नदी की दिशा का अनुशरण करता आधुनिकतम रूप का उदाहरण है, जिसमें सात मजबूत द्वार- इटायली, बरथारा, गोहदी, बिरखारी, काठवान, खारुआ, सरस्वती शामिल हैं। चार पर्तों में किले की रक्षा की गई- बाहरी तटबंध, फिर आंतरिक लंबी दीवारें तथा गहराई में एनकटनी पंछीद्वार, नवीन महल, शिश महल, दीवान-ए-खास, रानी बगीचा, लक्ष्मण ताल आदि जैसी संरचनाएं दर्शनीय हैं। 2017 में नेस्को ने इस किले को एशिया पेसिफिक हेरिटेज अवार्ड से सम्मानित किया और एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारकों में पंजीकृत किया है।
भीमाशंकर महादेव मन्दिर का युगांतकारी महत्व
किले के भीतर स्थित यह मन्दिर पुरातन समय से स्वयंभू शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध है, स्थानीय पुरोहित और संत इसे चमत्कारी मानते हैं। शासकीय अभिलेखों में इसे ‘गोहद महादेव मन्दिर (किला)’ के रूप में दर्ज किया गया है, जो इसकी आधिकारिक ऐतिहासिक मान्यता को दर्शाता है। यह मन्दिर स्थानीय समुदाय और जाट शासकों के लिए युद्ध से पूर्व विश्राम, पूजा और ऊर्जा संचयन का केन्द्र रहा है।
श्रावण 2025 पुनर्जागरण की लहर
सावन मास के मौके पर मन्दिर में 30 दिवसीय अखण्ड शिव अभिषेक का आयोजन पुर्नक्रांतिलाभ के रूप में हुआ, जिसे पुजारी मालती भार्गव तथा स्नातक युवा संघ ने मिलकर अभिनव रूप से पुन: शुरू किया। ईसा की 2025 के श्रावण मास में भावपूर्ण श्रद्धा के साथ सौ से अधिक श्रद्धालु दैनिक रूप से यहां भाग ले रहे हैं, तथा वैदिक शिव उपासना की नगाडियां गूंज रही हैं।
भविष्य की दिशा: संरक्षण और पर्यटन
इस मन्दिर-किले परिसर को राष्ट्रीय विरासत स्थल घोषित किए जाने की अपील है, जिससे यह धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्यटन के केन्द्र के रूप में विकसित हो सकता है। निरंतर उदघोष और प्रचार-संचार से इस अंचल में एक आकर्षक तीर्थ यात्री मार्ग की संभावनाएं भी खुल रही हैं।
वर्तमान में गोहद दुर्ग न केवल संरचनात्मक व वास्तु दृष्टि से ऐतिहासिक रूप से धरोहर बन चुका है, बल्कि इसकी आध्यात्मिक चेतना भी इस भीमाशंकर महादेव मन्दिर के पुन: सक्रिय अभिषेक के माध्यम से फिर से प्रकट हो रही है। यूनेस्को विभूषित संरचनाओं व सार्वजनिक ऋद्धि के साथ यह स्थल अब इतिहास, संस्कृति और भक्ति के संगम का प्रतीक बन गया है।