रिश्वत लेने वाले प्राचार्य को पांच वर्ष एवं सहअभियुक्त बाबू को तीन वर्ष का सश्रम कारावास

ग्रंथपाल से अनुपस्थित अवधि के वेतन के ऐवज में ली थी रिश्वत

सागर, 30 अगस्त। विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) जिला सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने ग्रंथपाल से अनुपतिस्थत अवधि के वेतन के ऐवज में रिश्वत लेने वाले शा. महाविद्यालय प्राचार्य अभियुक्त डॉ. अभिताभ दुबे को की धारा 409, 420, 467, 468, 471 भादंवि के तहत प्रत्येक धारा में पांच-पांच वर्ष सश्रम कारावास व पांच-पांच हजार रुपए अर्थदण्ड एवं भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7 के अंतर्गत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं दस हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 13(1)(बी), सपठित धारा 13(2) के तहत चार वर्ष सश्रम कारावास एवं दस हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 12 के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए अर्थदण्ड एवं सह-अभियुक्त बाबू संदीप पाठक को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 12 के अंतर्गत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए अर्थदण्ड, धारा 120बी भादंवि के तहत तीन वर्ष सश्रम कारावास एवं पांच हजार रुपए अर्थदण्ड की सजा से दण्डित किया है। मामले की पैरवी प्रभारी उपसंचालक (अभियोजन) धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में सहायक जिला अभियोजन अधिकारी लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी ने की।
जिला लोक अभियोजन सागर के मीडिया प्रभारी के अनुसार प्रकरण संक्षिप्त में इस प्रकार है कि शासकीय महाविद्यालय केसली में ग्रंथपाल के पद पर पदस्थ आवेदिका डॉ. साधना अवस्थी ने 17 मई 2016 को पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त कार्यालय सागर को संबोधित एक हस्तलिखित शिकायती आवेदन इस आशय का दिया कि प्राचार्य अभियुक्त डॉ. अमिताभ दुबे महाविद्यालय में उसकी उपस्थिति के बावजूद हाजिरी रजिस्टर में अनुपस्थिति दर्ज कर अनुपस्थिति को उपस्थिति दर्शाकर राशि स्वयं ले लेते हैं। इसी क्रम में माह मार्च एवं अप्रैल 2016 के 17 कार्य दिवस की अनुपस्थिति को उपस्थिति बताकर प्राचार्य अभियुक्त डॉ. अमिताभ दुबे द्वारा आहरण किया गया है तथा उससे अनुपस्थिति के दिनों के वेतन की राशि 10 हजार 200 रुपए रिश्वत के तौर पर मांगी जा रही है, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहती, बल्कि रंगे हाथों पकडवाना चाहती है, अग्रिम कार्रवाई की जाए। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विपुस्था सागर ने उक्त आवेदन पर कार्रवाई हेतु उप पुलिस अधीक्षक केके अग्रवाल को अधिकृत किया। आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकार्डर दिया गया, इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकार्ड करने हेतु निर्देशित किया। तत्पश्चात आवेदक द्वारा मांग वार्ता रिकार्ड की एवं अन्य तकनीकि कार्रवाईयां की गई एवं ट्रेप कार्रवाई आयोजित की गई। नियत दिनांक को आवेदिका द्वारा राशि दी गई, आवेदिका ने मोबाईल फोन पर मिस्ड कॉल देकर पूर्व निर्धारित इशारा किया, जिसके बाद टे्रप दल के सदस्य महाविद्यालय में प्रवेश कर गए, कार्यालय में सहअभियुक्त संदीप पाठक कुर्सी पर बैठा हुआ था, जिसे घेरे में लिया गया, उपपुलिस अधीक्षक केके अग्रवाल ने अपना व ट्रेप दल का परिचय देकर अभियुक्त (संदीप पाठक) का परिचय प्राप्त करने के उपरांत, उससे रिश्वत राशि के संबंध में पूछा, तो उसने आवेदिका से अभियुक्त डॉ. अमिताभ दुबे के लिए रिश्वत राशि प्राप्त कर अपनी पेंट की बांई जेब में रख लेना बताया, तत्पश्चात अग्रिम कार्रवाई प्रारंभ की गई। विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किए गए, घटना स्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया, अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 7, 12 एवं धारा 13(1)(डी), सहपठित धारा 13(2) एवं धारा 420, 409, 467, 468, 471, 120बी भादंसं का अपराध आरोपी के विरुद्ध दर्ज कर विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया। जहां विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया, अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया। विचारण उपरांत विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम सागर आलोक मिश्रा के न्यायालय ने आरोपियों को दोषी करार देते हुए उपरोक्त सजा से दण्डित किया है।