मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा

– राकेश अचल


साल 1988 में पियूष पाण्डे द्वारा लिखा गया ये गीत 15 भाषाओं में गाया गया। राग भैरवी का ये गीत आज के राजनीतिक परिदृश्य पर पूरी तरह से खरा उतर रहा है। बीते रोज ऑपरेशन सिंदूर का श्रेय सरेआम सत्ता द्वारा लूटे जाने और सच्चा भारतीय को लेकर देश की सबसे बडी अदालत के एक मीलार्ड द्वारा राहुल गांधी को लेकर की गई मौखिक टिप्पणी के बाद प्रमाणित हो गया कि भाजपा और संघ के सुरों में सुर मिलाने के लिए अब कोई बचा नहीं है। यदि कोई सुर में सुर नहीं मिला रहा है तो वो झूठा भारतीय है।
किसी भी देश में सत्ता के साथ जब कार्यपालिका, विधायिका और न्याय पालिका के साथ-साथ जब खबर पालिका भी वृंदगान गाने लगे तो समझ लीजिए कि वहां लोकतंत्र और विरोध के लिए कोई जगह नहीं बची। भाजपा और संघ को इस मुकाम तक आने में पूरी एक सदी लगी। सौ साल का आरएसएस और 45 साल की भाजपा देश को तिरंगा स्पिरिट से सिंदूरी स्पिरिट में ढालने की कोशिश करती दिखाई दे रही है। पियूष पाण्डे ने यही तो लिखा था-
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा
सुर की नदियां हर दिशा से बहते सागर में मिलें
बादलों का रूप ले कर बरसे हल्के हल्के
मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा।
और अब यही होता दिख रहा है। अब आप न्याय की अर्जी लेकर अदालत जाएंगे तो वहां साखामृग बैठे मिलेंगे। पुलिस थाना, कचहरी, पंचायत सब पर साखामृगों का कब्जा हो चुका है। तोता-मैना, कौए, उल्लू सब साखाओं का उत्पाद हैं। ये वे लोग हैं जो असफलताओं के लिए महात्मा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह को दोषी ठहराने में नहीं हिचकते। ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी का श्रेय भी इन सबने मिलकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की झोली में डाल दिया। वे बेचारे दरबारियों के आगे ना-ना-ना करते रह गए। मोदीजी की विनम्रता देखकर विनम्रता भी लजा गई।
अब न कांग्रेस का युग है न जनता पार्टी का, न अटल युग है न अडवाणी युग। ये युग मोदी और अडानी का युग है। इस युग की स्पिरिट सिंदूरी है और सवाल करने की सख्त मुमानियत है। आप न संसद में सवाल कर सकते हैं न सडक पर और पत्रकार वार्ताएं इस युग में वर्जित हैं। ये वो युग है जिसमें सवाल करना राष्ट्रद्रोह जैसा असंज्ञेय अपराध है। आप यदि भूले से भी चीन का नाम लेकर कोई सवाल करेंगे तो अकेली भाजपा ही नहीं बल्कि देश की सबसे बडी अदालत के मीलार्ड तक आपको झूठा भारतीय बताने में नहीं हिचकेंगे।
मोदी युग की पहचान ही हिचकविहीन है। इस युग में कोई भी बिना हिचके असंवैधानिक इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए अरबों-खरबों कमा सकता है। बेहिचके महाभ्रष्ट को अपनी गोद में बैठाकर मंत्री बना सकता है और असहमत होने पर संबंधित को लोया गति या धनकड गति प्रदान करा सकता है। हिचक इस युग से कोसों दूर हिमालय की कंदराओं में जाकर छिप गई है, इस युग की सत्ता को मां या बाबा के रूठने से कोई फर्क नहीं पडता।
मोदी युग आजादी के बाद का अकेला ऐसा युग है जिसमें तमाम संवैधानिक संस्थाओं को पालतू तोता-मैना बना दिया गया है। इन संस्थाओं में जो समझदार लोग थे वे बगुला भगत बन गए हैं और जो प्रतिकार कर रहे हैं उन्हें सत्ता प्रतिष्ठान ने काक या श्वान घोषित कर दिया है। इस युग में सत्यमेव जयते की तख्ती तो लगी है किंतु पीछे से झूठ को संरक्षित किया जा रहा है। जो जितना बडा झूठ, जितनी ज्यादा बेहयाई से बोलता है उसे उतना बडा देशभक्त माना जाता है। मैं तो महाभारत के संजय की तरह बिना नमक-मिर्च लगाए आपके सामने आंखों देखा हाल पेश कर रहा हूं। इस युग में हमारी या हम जैसों की तो कोई भूमिका रह ही नहीं गई।
बहरहाल सुर में सुर मिलाना ठकुरसुहाती माना जाता है। ठकुसुहाती करने से तो त्रेता में मंथरा ने भी करने से मना कर दिया था, लेकिन जब उसे सत्ता की केकैयी ने आंखें दिखाईं तो थोडी देर के लिए उसने भी कह दिया था कि ‘कोऊ नृप होय हमें का हानि, हमऊ करब अब ठकुरसुहाती।’ मंथरा ने जो बात केकैयी के लिए कही थी वो मोदी युग पर फबती है-
कहहिं झूठि फुरि बात बनाई। ते प्रिय तुम्हहि करुइ मैं माई॥
हमहुं कहबि अब ठकुरसोहाती। नाहिं त मौन रहब दिनु राती।।
लेकिन हम मंथरा की तरह मौन रहने या ठकुरसुहाती करने वाले नहीं। हम बोलेंगे, भले ही कोई हमें झूठा भारतीय कहे या कुछ और। किसी के कहने से न हम फिरंगी हो जाएंगे और न देशद्रोही, हमें देश की चिंता औरों से कहीं ज्यादा है।