हिन्दी-चीनी भाई-भाई तो हिन्दी-मराठी भाई-भाई क्यों नहीं

– राकेश अचल


हिन्दी चीनी भाई-भाई हो गए थे, लेकिन आज 65 साल बाद भी न मराठी और न तमिल, हिन्दी भाई-भाई हो पाए। महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध आज भी न सिर्फ जारी है बल्कि इस पर बाकायदा, बेमुलाहिजा सियासत भी हो रही है। हिन्दी, चीनी भाई-भाई का नारा 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच मजबूत दोस्ती और सहयोग के संबंधों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का मतलब था कि दोनों देश, भारत और चीन, एक दूसरे के साथ भाईचारे और सदभावना के साथ रहेंगे। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, यह नारा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा।
महाराष्ट्र के स्कूलों में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राज्य की राजनीति को तेज कर दिया है। बाला साहेब ठाकरे के सामने ही अलग हो गए राज और उद्दव ठाकरे इस मुद्दे पर एक साथ होकर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दोनों ही नेताओं से अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व करते हुए फडणवीस सरकार के खिलाफ विरोध मार्च निकाला है। इस प्रदर्शन पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने विपक्ष पर निशाना साधा है। नितेश राणे ने महाराष्ट्र में मराठी भाषा की अनिवार्यता और उसकी जगह पर किसी के न आने को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि हमने इतनी जोर से कहा है, इतनी बार चिल्लाए हैं कि महाराष्ट्र में हिन्दी अनिवार्य नहीं है, अब क्या हम इस बात को अपनी छाती पर लिखकर घूमना चालू कर दें?
ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए राणे ने कहा कि यह लोग केवल और केवल भाषा के नाम पर हिन्दुओं को विभाजित करना चाहते हैं। मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा कि जावेद अख्तर, आमिर खान और राहुल गांधी हिन्दी में बात करते हैं उनके हिन्दी थोपने से किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्हें मराठी बोलने के लिए कहिए। उन्हें (ठाकरे बंधुओं) कहिए कि वे मोहम्मद अली रोड या बेहरामपाडा से अपना विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश करें। अगर उन्हें वाकई मराठी से प्यार है, तो कल से अजान मराठी में पढवाएं, तब हम मानेंगे कि उन्हें मराठी भाषा का सम्मान है।
दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिन्दी को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर यूटर्न लेने उद्धव ठाकरे ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठी मानुष की शक्ति के आगे हार गई है। महाराष्ट्र सरकार के हिन्दी अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने फडणवीस सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने रविवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में तीन भाषा नीति के तहत हिन्दी अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है। मतलब सरकार ने मराठी मानुष के सामने हार मान ली है। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर खडे होने वाले उनके चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस सफलता का श्रेय मराठी मानुष को ही दिया।
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे बंधुओं के राज्य में हिन्दी अनिवार्य करने के विरोध में आने को लेकर तंज कसा है। मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी, जावेद अख्तर और आमिर खाने के हिन्दी थोपने से किसी को दिक्कत क्यों नहीं है? तमिलनाडु में भी हिन्दी का सनातन विरोध है। तमिलनाडु के हिन्दी विरोधी तर्क दे रहे हैं कि कर्नाटक में हिन्दी अनिवार्य किए जाने से वहां हाईस्कूल परीक्षा में 90 हजार बच्चे फेल हो गए। तमिलनाडु में हिन्दी का विरोध 1937 से अनवरत चल रहा है। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, तमिलनाडु में हिन्दी विरोध फिर से उभरा है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फार्मूले के कारण, जिसे डीएमके सरकार हिन्दी थोपने की कोशिश मानती है। डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया कि नई शिक्षा नीति के जरिए हिन्दी और संस्कृत को थोपा जा रहा है, जो तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।
आपको याद होगा कि फरवरी 2025 में चेन्नई में रेलवे स्टेशनों और डाकघरों के साइनबोर्ड पर हिन्दी शब्दों पर कालिख पोतने की घटनाएं हुईं। अयप्पक्कम हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में लोगों ने रंगोली बनाकर ‘तमिल का स्वागत, हिन्दी थोपना बंद करो’ का संदेश दिया। डीएमके और अन्य द्रविड दल हिन्दी विरोध को तमिल पहचान और स्वायत्तता से जोडते हैं। स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने चेतावनी दी है कि हिन्दी का बढता प्रभाव तमिल भाषा को नष्ट कर सकता है, जैसा कि उत्तर भारत में अवधी और भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ हुआ। तमिलनाडु की राजनीति में हिन्दी विरोध को द्रविड आंदोलन की विरासत के रूप में देखा जाता है, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके को सत्ता में लाने में मदद की।
तमिलनाडु के लोग तमिल भाषा को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। हिन्दी को अनिवार्य बनाने को तमिल संस्कृति पर हमले के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी को व्यापार और शिक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है। हिन्दी सीखने को आर्थिक या करियर के लिए आवश्यक नहीं समझा जाता। हिन्दी विरोध के साथ-साथ, परिसीमन को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इससे दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज कमजोर हो सकती है।
मजे की बात ये है कि विरोध के बावजूद, तमिलनाडु में हिन्दी सीखने की रुचि बढ रही है। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के अनुसार, 2022 में 2.86 लाख लोग हिन्दी की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें 80 फीसदी स्कूली छात्र थे। तमिल फिल्मों को हिन्दी में डब करने की अनुमति और हिन्दी सीखने की बढती मांग से पता चलता है कि आम लोगों में हिन्दी के प्रति विरोध उतना तीव्र नहीं है, जितना राजनीतिक स्तर पर दिखाया जाता है।