अजब है मप्र और यहां की सरकार

– राकेश अचल


हमारे यहां कहावत है कि कोई अपनी जंघा खुद नहीं दिखाता या कोई अपनी मां को भट्टी नहीं कहता। लेकिन मध्य प्रदेश के संदर्भ में ये दोनों कहावतें लागू नहीं होतीं, ये बात हाल की कुछ घटनाओं से प्रमाणित होती है।
मप्र से केन्द्र में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं, दो दशक तक मुख्यमंत्री भी रहे, किंतु आज तक संविधान को नहीं समझ पाए और एक संवैधानिक पद पर होते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की संघ के दत्तात्रय होंसबोले की मांग का समर्थन कर बैठे। संघ में अपना महत्व जो बढाना है, अन्यथा उनकी हरकत संविधान की अवमानना है। शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक में ऐसी मांग नहीं की।
अब आइये मप्र में सुशासन पर, मप्र में सुशासन की स्थिति ये है कि यहां मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कारकेट में शामिल 19 वाहनों में पेट्रोल के बजाय पानी भर दिया जाता है और किसी को शर्म नहीं आती। बाद में विभागीय मंत्री पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपों की जांच के आदेश दे देते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में मिलावट का स्तर कहां से कहां पहुंच गया है?
इसी मप्र में देवास इंदौर हाईवे पर 36 घण्टे का जाम लगा रहता है, 3 लोग इलाज न मिने से मर जाते हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होता, किसी को शर्म नहीं आती, अन्यथा कोई तो इस घोर लापरवाही क लिए क्षमा मांगता। मप्र की राजधानी भोपल में लोनिवि के इजीनियर 90 डिग्री का आरओबी बना देते हैं और सरकार बेशर्मी से कहती है नया पुल बनवा देंगे। मामला उजागर होने के एक पखवाडे बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को दोषियों पर कार्रवाई की सुध आती है।
मप्र की सरकार इस समय विकास के नाम पर केवल धाम बनाने में जुट जाती है। मुख्यमंत्री अगडे, पिछडे सभी को खुश करने के लिए प्रतिदिन नए धाम बनाने की घोषणाएं कर रहे हैं। मप्र के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अभी तक ये यकीन नहीं कर पाए कि वे स्वतंत्र मुख्यमंत्री हैं। उनका पूरा समय सिंधिया, तोमर, चौहान और कैलाश विजयवर्गीय को साधने में ही खर्च हो रहा है।
आपको बता दें कि मप्र पर कर्ज का स्तर चिंताजनक है। 2025 तक राज्य पर 4.10 लाख करोड रुपए का कर्ज बताया गया है और 18 फरवरी 2025 को 5 हजार करोड रुपए का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना है। सीएजी की रिपोर्ट में कर्ज की स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें कर्ज चुकाने के लिए और कर्ज लेने की प्रवृत्ति उजागर हुई है। 2021-22 में कर्ज 2 लाख करोड रुपए से अधिक था और ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 10 प्रतिशत से अधिक रहा। गरीबी और सामाजिक सूचकांक 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में मप्र को सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों की तुलना में पिछडा बताया गया। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 31.65 प्रतिशत था, जो राष्ट्रीय औसत 21.92 प्रतिशत से अधिक है। और तो और शिशु मृत्यु दर में मप्र पहले स्थान पर है, यहां एक हजार में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते। क्योंकि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञों के 70 फीसदी पद खाली हैं। मेरे पांच दशक के कार्यानुभव में ऐसा लचर मुख्यमंत्री कोई दूसरा नहीं रहा। लेकिन ये राजनीती का नया दौर है, इसमें सब कुछ चलता है।